For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

महामारी और कानून

03:14 AM Feb 14, 2024 IST | Aditya Chopra
महामारी और कानून

भारत में महामारी से निपटने के लिए पहला कानून एपीडेमिक डिसीज एक्ट यानि महामारी कानून ब्रिटिश शासनकाल में 1897 में लागू किया गया था। ब्रिटिश शासन में पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी 1860 में अस्तित्व में आई। इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया। समय-समय पर कानूनों में कई तरह के बदलाव किए जाते रहे। भारत ने कोविड-19 की चुनौतियों को पार तो कर लिया लेकिन जहां तक कानूनी प्रावधानों का सवाल है उसमें कई कमियां देखी गईं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महामारी से लड़ने के लिए लॉकडाउन की घोषणा की थी तो यह घोषणा महामारी एक्ट 1897 के तहत ही की गई थी। भारतीय दंड स​ंहिता की धारा 188 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति लॉकडाउन या उसके दौरान सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान है। किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध भी ऐसी ही धारा लगाई जा सकती है। दोषी को कम से कम एक महीने की जेल और 200 रुपए जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते हैं।
विधि आयोग समय-समय पर कानूनों में बदलाव की ​िसफारिश करता रहा है। क्योंकि समय और परिस्थितियों के अनुसार कानूनों को प्रासंगिक बनाया जाना जरूरी है। मोदी सरकार के दौरान बेकार हो चुके हजारों कानूनों और नियमों को खत्म किया जा चुका है। ब्रिटिशकालीन कानूनों को बदला जा चुका है। यहां तक कि भारतीय दंड संहिता से जुड़े तीन अापरा​िधक कानूनों को बदला जा चुका है। अब इस बात की जरूरत है कि महामारी कानून में भी आवश्यक बदलाव किए जायें। कोरोना महामारी के दौरान भी सरकार ने 123 साल पुराने कानून का इस्तेमाल किया था। अंग्रेजों ने यह कानून तब लागू किया था तब भूतपूर्व बम्बई स्टेट में बूबोनिक प्लेग ने महामारी का रूप धारण किया था।
भारत में कई बार महामारी या रोग फैलने की दशा में यह एक्ट लागू किया जा चुका है। सन् 1959 में हैजा के प्रकोप को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने पुरी जिले में ये अधिनियम लागू किया था। साल 2009 में पुणे में जब स्वाइन फ्लू फैला था तब इस एक्ट के सेक्शन 2 को लागू किया गया था। 2018 में गुजरात के बडोदरा जिले के एक गांव में 31 लोगों में कोलेरा के लक्षण पाये जाने पर भी यह एक्ट लागू किया गया था। सन् 2015 में चंडीगढ़ में मलेरिया और डेंगू की रोकथाम के लिए इस एक्ट को लगाया जा चुका है। 2020 में कर्नाटक ने सबसे पहले कोरोना वायरस से निपटने के लिए महामारी अधिनियम, 1897 को लागू किया।
केन्द्र सरकार ने 2020 में महामारी रोग अधिनियम में संशोधन जरूर किया था लेकिन यह संशोधन बहुत कम किए गए थे। अधिनियम में महत्वपूर्ण खामियां और चूक रह गई थी। विधि आयोग ने अब महामारी एक्ट में महत्वपूर्ण खामियों की पहचान कर सरकार से सिफारिश की है कि इन कमियों को दूर करने के लिए कानून में उचित संशाेधन किया जाए और भविष्य में महामारी से निपटने के लिए एक कानून लाया जाए। सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के सदस्यों के साथ कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटीं, जिसमें डॉक्टरों और नर्सों को निशाना बनाया गया। उन्हें कर्त्तव्य पूरा करने से रोका गया। मेडिकल और नॉनमेडिकल स्टाफ ने 24 घंटे दिन-रात लोगों की जानें बचाने का काम किया लेकिन दुर्भाग्य से वह आसान शिकार बन गए। कुछ लोग तो उन्हें वायरस फैलाने वाला वाहक मानने लगे। बीमारी का प्रसार रोकने के लिए हैल्थ कर्मियों का श्मशान घाट तक उत्पीड़न हुआ। दवाइयों की ब्लैक ही नहीं हुई बल्कि निजी अस्पतालों में एक-एक बैड लाखों रुपए में बि​का। मुश्किल इसलिए भी आई कि राज्य के मौजूदा कानूनों की सीमा और प्रभाव व्यापक नहीं था। हद तो उस समय हो गई जब ऑक्सीजन का एक-एक सिलैंडर दुगने दामों पर ​बिका। बहुत कुछ ऐसा हुआ जो हम सबके लिए बहुत शर्मनाक था। अनेक लोगों ने तो नकली टीके तक बेच डाले और शव ले जाने के लिए एम्बुलैंस वालों ने जमकर पैसा वसूला। महामारी के दौरान समाज का सहयोग और समर्थन मिलना एक मूलभूत जरूरत है ताकि महामारी से निपटने के लिए हर विभाग पूरे विश्वास के साथ काम कर सके। इसलिए जरूरी है कि राज्यों और केन्द्र के अधिकारों का पूरी तरह से विकेन्द्रीयकरण किया जाए और महामारी की चुनौतियों को पूरी तरह से परिभाषित कर अपराधों के लिए दंड का प्रावधान किया जाए। चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक कानून ही इसका जवाब हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अधिक उपयुक्त शब्द जिसका उपयोग किया जाना चाहिए था वह है शारीरिक दूरी। इसी तरह क्वारंटाइन और आइसोलेशन को उचित रूप से परिभाषित करके इनके बीच अंतर को स्पष्ट किया जाना चाहिए था। उम्मीद है कि कानून मंत्रालय गहन चिंतन-मंथन कर महामारी से निपटने के लिए केन्द्र और राज्य के अधिकारों को व्यापक और संतुलित बनाएगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×