Parivartini Ekadashi Vrat Katha: परिवर्तिनी एकादशी पर जरूर पढ़ें ये कथा, इसके बिना अधूरा माना जाता है व्रत
Parivartini Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व है। हर महीने में 2 एकादशी तिथि पड़ती हैं एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष, दोनों तिथियां भगवान विष्णु को समर्पित हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है, इस एकादशी का व्रत बहुत पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन एकादशी के व्रत की कथा पढ़ना बहुत जरुरी है, इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। जो व्यक्ति इस एकादशी व्रत के दिन इस कथा का पाठ करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। यहां पढ़ें परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा:
परिवर्तिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi Shubh Muhurat)
- ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04:30 बजे से सुबह 05:15 बजे तक
- रवि योग – सुबह 06:00 बजे से रात 11:08 बजे तक रहेग
- विजय मुहूर्त – दोपहर 02:27 बजे से दोपहर 03:18 बजे तक
- अमृत काल – शाम 06:05 बजे से शाम 07:46 बजे तक
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha)
त्रेता युग में भगवान विष्णु का एक महान भक्त राजा बलि था, जो दैत्यों का राजा था। वह राक्षस कुल में जन्मा था लेकिन भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था, उसकी नियमित भक्ति और प्रार्थनाओं से भगवान विष्णु प्रसन्न हो उठे। राजा बलि ब्राह्मणों का बहुत सम्मान करता था और उन्हें कभी खाली हाथ नहीं लौटाता था। राजा बलि ने अपने तप, भक्ति और प्रार्थनाओं से अनेकों शक्तियां अर्जित कर ली थी, इसके अलावा इंद्र देव के देवलोक और तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। इंद्र देव को उनका लोक वापस दिलवाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार में जन्म लिया।
भगवान विष्णु वामन अर्थात बौने ब्राह्मण का रूप धरकर राजा बलि के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम बराबर भूमि दान में देने का आग्रह किया। भगवान विष्णु के वामन अवतार ने एक हाथ में लकड़ी का छाता लिया हुआ था। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि से भूमि देने के लिए माना किया, क्योंकि वह समाज गए थे कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के अवतार हैं और बलि से सम्पूर्ण लोकों को दान में ले लेंगे। इसके बावजूद भी राजा बलि ने वामन को भूमि देने का वचन दे दिया।
वचन सुनकर वामन अपना आकार बढ़ाने लगे और बढ़ाते-बढ़ाते इतना आकार कर लिया कि पहले कदम में पूरी पृथ्वी, दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया, तीसरा कदम रखने के लिए कोई भूमि ही नहीं बची। वचन के पक्के राजा बलि ने तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत किया। वामन रूप ने राजा बलि कि भक्ति और वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राज्य दे दिया।
इसके साथ ही भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि चतुर्मास अर्थात चार माह में उनका एक रूप क्षीर सागर में शयन करेगा और दूसरा रूप राजा बलि के पाताल में उस राज्य कि रक्षा के लिए रहेगा। इस प्रकार देवताओं को तीनों लोक वापस दिला दिए और संसार का संतुलन दोबारा स्थापित हो गया।
Disclaimer: इस लेख में बताए गए तरीके और सुझाव सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित है, Punjabkesari.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.