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दो नावों पर सवार हैं पवार

04:00 AM Aug 24, 2025 IST | त्रिदीब रमण
दो नावों पर सवार हैं पवार
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राकांपा नेता शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सूले ने हालिया दिनों में कांग्रेस के एक बड़े नेता से मिलकर उन्हें अपनी पार्टी हैडक्वार्टर के लिए आवंटित नई दिल्ली स्थित 81, लोदी एस्टेट निवास रहने के लिए ऑफर किया है, कहते हैं इस नेता ने सुप्रिया के इस ‘गुडविल ऑफर’ को आसानी से स्वीकार भी कर लिया है। सनद रहे कि यह नेता पहली बार के सांसद हैं, इस नाते उन्हें रहने को छोटा सरकारी आवास ही आवंटित हुआ है, पर उनके मुलाकातियों की संख्या को देखते हुए उन्हें एक बड़े घर की दरकार थी, सुप्रिया ने मौके की इसी नजाकत को भांपते हुए नेता जी को 81 लोदी एस्टेट का अपनी पार्टी का दफ्तर ही ऑफर कर दिया।
दरअसल, शरद पवार पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र की अपनी जमीन को बरकरार नहीं रख पा रहे हैं, वे जब भी उद्धव ठाकरे से बात करते हैं तो ​िशवसेना प्रमुख उनकी रंग बदलती सियासत को देखते हुए बेसाख्ता कह देते हैं कि ‘आपके बारे में कहा जाता है कि आपकी मोदी जी से इतनी गहरी छनती है कि आप महीने में कम से कम दो बार उनसे बात जरूर करते हैं। उन्होंने आपसे यह भी वायदा किया हुआ है कि बिहार चुनाव के बाद वे आपकी पुत्री को अपनी सरकार में शामिल करेंगे।’
इसी कड़ी में बड़े पवार ने अपने घर अपने कुछ मंुहलगे पत्रकारों को डिनर पर आमंत्रित किया और उनसे ‘ऑफ द रिकार्ड’ बात करते हुए उन्होंने कहा-मैं चाहता हूं कि हम विपक्ष में रह कर अब अपनी भूमिका मजबूत करें, आजकल शरद पवार परिवार कंग्रेस के प्रति इतनी आस्था दिखा रहा है।
क्यों बेचैन हैं एनडीए के ओबीसी नेता?
सूत्रों की मानें तो करीब दो सप्ताह पहले केंद्रीय मंत्री व अपना दल (सोनेवाल) की नेता अनुप्रिया पटेल और यूपी की मल्लाह राजनीति के केंद्र रहे संजय निषाद के बीच एक लंबी और सारगर्भित मुलाकात हुई। कहते हैं कि अनुप्रिया ने अपने दर्द को स्वर देते हुए कहा कि ‘भाजपा की नजरों में हमारी कोई वकत नहीं, हमें 6-7 सीटों पर ही निपटा देंगे, चूंकि आपका बेटा भी इस बार चुनाव हार गया है सो, आपका समय तो और भी मुश्किलों भरा है।’ संजय निषाद भी चाहते हैं कि यूपी के ये छोटे-छोटे दल इकट्ठे होकर अपना एक ‘संयुक्त मंच’ बना लें जिससे कि भाजपा नेतृत्व से ठीक से तोलमोल के बोल हो सकें।
कहते हैं इसी कड़ी में इन नेताओं ने केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी से भी बात की। जयंत से कहा गया कि ‘हम सभी नेताओं को एक मंच पर आकर एकजुटता में अपनी ताकत दिखानी होगी तभी हम भाजपा नेतृत्व पर कोई दबाव बना पाएंगे।’ माना जाता है कि जयंत चौधरी भी इन दिनों भाजपा नेतृत्व से थोड़े खफा-खफा चल रहे हैं क्योंकि भले ही उन्हें स्किल डेपलपमेंट मंत्रालय का मंत्री बना दिया गया हो, पर पिछले सालभर में उनके मंत्रालय को कोई फंड ही आवंटित नहीं हुआ है, ऐसे में वे स्वयं को मंत्री ‘विदआउट पोर्टफोलियो’ जैसा ही महसूस कर रहे हैं। इसके बाद इस नए मंच के गठन के लिए यूपी में पिछड़ों के एक बड़े नेता ओम प्रकाश राजभर से भी बात की गई है। फिलवक्त इन नेताओं ने मिल कर यही सामूहिक रणनीति बनाई है कि ये नेतागण घूम-घूम कर अपने-अपने क्षेत्रों में रैलियां व जनसंपर्क अभियान करेंगे और भाजपा को यह संदेश देने का प्रयास करेंगे कि ‘वह सिर्फ अगड़ी जातियों के दम पर सरकार में नहीं हैं, उन्हें पिछड़ी जातियों की भी इतनी ही जरूरत है।’
चिराग को फटकार
अभी दो-तीन दिन पहले ही भाजपा ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान को तलब कर उनकी अच्छी खासी क्लास लगा दी। दरअसल, चिराग को लेकर बिहार चुनाव में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, कभी खबर आती है कि वे बिहार की सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे, कभी यह कि वे प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के साथ सीटों का तालमेल कर सकते हैं। इस पर भाजपा के एक कद्दावर नेता ने चिराग को तलब कर उनसे दो टूक पूछ लिया-आप अलग-अलग जगह पर अलग-अलग स्टेटमेंट दे रहे हैं, हमारा असमंजस बना हुआ है कि आप करेंगे क्या? इस पर चिराग ने कहा कि ‘वे एनडीए में रह कर एनडीए के हाथ ही मजबूत करना चाहते हैं, पर भाजपा बताए कि उनके लिए वह कितनी सीटें छोड़ेंगी।’
कहते हैं इस पर उक्त बड़े भाजपा नेता ने कहा कि हम सीटों की बात बाद में करेंगे, पहले आप यह बयान जारी करें कि आप एनडीए के अंदर रह कर ही चुनाव लड़ेंगे।’ दरअसल इस पूरे कथानक के पीछे भाजपा का अपना एक जनमत सर्वेक्षण है। सूत्र बताते हैं कि अभी पिछले दिनों भाजपा ने बिहार में अपना एक अंदरूनी सर्वेक्षण करवाया है, यह सर्वे ‘एसआईआर’ और वोट चोरी के हंगामे के बाद के तापमान को नापने के लिए आहूत हुआ था। इस सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि अगर इस दफे के चुनाव में भाजपा अपने दम पर सारी सीटों पर चुनाव लड़ जाए तो वह 70-75 सीटों पर सिमट सकती है, अगर वह लोक जनशक्ति यानी चिराग के साथ लड़ी तो उसे 10 सीटों का इजाफा हो सकता है, पर अगर वह जदयू के साथ चुनाव में गई तो वह जरूरी बहुमत के आंकड़ों के करीब पहुंच सकती है। वैसे भी नीतीश ने भाजपा नेतृत्व से दो टूक कह दिया है कि ‘चिराग पासवान के साथ रहने या ना रहने से गठबंधन को कोई खास फायदा होने वाला नहीं है, अगर चिराग के लिए भाजपा सीटें छोड़ना चाहती है तो वह अपने कोटे से छोड़ें।’
धनखड़ की धमक कहां गई?
महीने भर का वक्त हो गया, पर देश के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कहीं नज़र नहीं आ रहे, वे किसी से मिलने-जुलने से भी गुरेज कर रहे हैं। कहते हैं अभी पिछले सप्ताह पश्चिमी यूपी के जाट नेताओं का एक जत्था उनसे मिलने उसके आवास पर पहुंचा, उन्हें सम्मान के साथ बिठाया गया, चाय-वाय पिलाई गई और बाद में उन्हें बता दिया कि अभी धनखड़ जी किसी से मिल नहीं रहे, जब मिलना-जुलना शुरू करेंगे तो आप लोगों को भी बुला लिया जाएगा। पर अभी भी गुत्थी सुलझ नहीं पा रही कि अचानक से भाजपा हाईकमान ने उन्हें बाहर का रास्ता क्यों दिखा दिया? उनसे जुड़े एक विश्वस्त सूत्र का दावा है कि धनखड़ पिछले दिनों (जब से विपक्ष ने खास कर कांग्रेस ने उन पर महाभियोग चलाने की धमकी दी थी) विपक्षी नेताओं से खूब मेल-जोल बढ़ाने में जुट गए थे।
खास कर राहुल गांधी को लेकर उनका आग्रह भाजपा शीर्ष के गले नहीं उतर रहा था। वे टीएमसी नेताओं से मिल रहे थे, अरविंद केजरीवाल से मिल रहे थे और उनसे कह रहे थे-मनी ड्रेन व ब्रेन ड्रेन हो रहा है, अगर अभी स्थितियां ठीक नहीं करोगे तो आगे चल कर बेहद मुश्किल होगी। सूत्रों का यह भी दावा है कि उन्होंने कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता को सलाह दी कि उन्हें चंद्रबाबू व एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं से बात करनी चाहिए।’ कहते हैं धनखड़ के इन मनोभावों की जानकारी भाजपा की ‘बी टीम’ कहे जाने वाले दिल्ली के एक बड़े नेता ने भाजपा शीर्ष तक पहुंचा दी, इस नेता ने भाजपा शीर्ष से यह भी कह दिया कि ‘धनखड़ विरोधी गुट के 300 सांसदों का एक धड़ा तैयार करने में मदद कर रहे हैं,’ फिर क्या था गुस्से से लाल-पीला होते भाजपा शीर्ष ने धनखड़ की विदाई की पटकथा लिख दी।
...और अंत में
लगता है बिहार में मुद्दतों बाद कांग्रेस संगठित रूप से चुनावी मैदान में दमखम दिखाने को उतारू है। कहते हैं कांग्रेस ने अपने संभावित उम्मीदवारों की एक लिस्ट भी तेजस्वी यादव को सौंप दी है। माना जाता है कि इस लिस्ट में 6-7 सीटें कोसी अंचल की भी हैं। यह भी कहा जा रहा है कि लिस्ट की बाकी सीटों पर तो तेजस्वी को कोई खास एतराज नहीं, पर वह कोसी अंचल की सीट कांग्रेस के लिए छोड़ने को राजी नहीं। तेजस्वी की सोच है कि कांग्रेस ये सीटें अपरोक्ष तौर पर पप्पू यादव के लिए चाह रही है। राहुल गांधी की 17 अगस्त से बिहार में ‘वोट अधिकार यात्रा’ जारी है। इस यात्रा की सफलता-असफलता ही तय करेगी कि राहुल कोसी अंचल की सीटों को लेकर तेजस्वी से कितना मोल-भाव कर पाएंगे। फिलवक्त तो राहुल बिहार में मिल रहे रिस्पांस से बम-बम लग रहे हैं।

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त्रिदीब रमण

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