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उत्तर प्रदेश में पुलिस राज!

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08:13 AM Oct 01, 2018 IST | Desk Team

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मंे जिस तरह एक बाइज्जत शहरी विवेक तिवारी को पुलिस ने अकारण अपनी गोलियों का शिकार बनाया है उससे जाहिर होता है कि देश के इस सबसे बड़े राज्य में कानून का शासन न होकर ‘चंगेजी राज’ चल रहा है। लोकतन्त्र में जिस सरकार को आम जनता अपने एक वोट के ‘संवैधानिक अधिकार’ से चुनती है उसका पहला दायित्व संविधान का शासन स्थापित करना होता है। यही साबित हो रहा है कि ‘थाने’ लोकतन्त्र के नये ‘शाही दरबारों’ में तब्दील हो रहे हैं मगर इसमें पुलिस का कोई दोष नहीं है जिसे इस प्रदेश के राजनीतिज्ञों ने अपनी निजी राजनैतिक फौज में बदल डाला है। पुलिस किसी भी पार्टी की सरकार की नौकर नहीं होती बल्कि वह संविधान की नौकर होती है और जो कानून कहता है उसके अनुसार काम करती है। चुनी हुई सरकारों का काम यही देखना होता है कि वे सुनिश्चित करें कि पुलिस के एक सिपाही से लेकर महानिदेशक तक कानून के अनुसार काम कर रहा है अथवा नहीं। हमारे संविधान मंे कानून-व्यवस्था को राज्यों का विशिष्ट विषय बनाने का यही उद्देश्य था कि प्रत्येक राज्य में लोगों द्वारा चुनी गई प्रादेशिक सरकार समाज के हर सामान्य नागरिक के जीवन जीने के एक समान अधिकारों की न्याय सम्मत तरीके से रक्षा करे।

इसके लिए कानून का राज स्थापित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को ही दी गई। पुलिस का काम यही देखना होता है कि प्रत्येक नागरिक कानून का पालन करते हुए अपना कार्य करे जिससे समाज में ‘व्यवस्था’ बनी रहे। इसी को संविधान में अंग्रेजी में ‘पब्लिक आर्डर’ कहा गया और प्राथमिक स्तर पर पुलिस को इसे कायम रखने की जिम्मेदारी इस प्रकार सौंपी गई कि वह प्रत्येक कानून तोड़ने वाले को न्याय प्रणाली के सामने लाकर उसका दोष साबित होने पर सुनाई गई सजा को अमल में लाये परन्तु उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से पुलिस अपराधियों की खुद ही पहचान करके मुठभेड़ के नाम पर उनका सफाया कर रही हैै उससे पुलिस की भूमिका में अचानक परिवर्तन आ गया है। अपराधी को उसके अपराधों के अनुसार सजा देने का अधिकार केवल न्यायालय के पास है। जब पुलिस को यह अधिकार अपराधी को समाप्त करने के नाम पर मिल जाता है तो वह स्वयं एेसे निरंकुश तत्वों का समूह बन जाती है जिन्हें कानून का दायरा बेमतलब लगने लगता है और फिर वही होता है जो लखनऊ में स्व. विवेक तिवारी के साथ हुआ।

क्या कभी यह संभव है कि पुलिस का एक कांस्टेबल कार चलाते हुए सामान्य निहत्थे नागरिक को अपनी भरी पिस्तौल से गोली इस तरह मारे कि वह उसके माथे को आर-पार करती हुई जाये और वह वहीं मौके पर दम तोड़ दे! स्व. राजीव गांधी की केन्द्र में सरकार रहते और राजस्थान में भी कांग्रेस पार्टी का शासन रहते एेसी ही घटना इस राज्य के भरतपुर जिले मंे हुई थी जब तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमन्त्री स्व. शिवचरण माथुर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। भरतपुर जिले के डीग के पूर्व राजा रहे मान सिंह ने यहां हवाई पट्टी पर स्व. माथुर के हैलीकाप्टर पर गुस्से में भरकर अपनी जीप से टक्कर पर टक्कर मारी थी। तब पुलिस ने उन्हें अपनी गोली का शिकार बना दिया था लेकिन इस पर पूरा राजस्थान उबल पड़ा था। वजह यही नहीं थी कि मान सिंह एक पूर्व राजा थे बल्कि वजह यह थी कि पुलिस ने उन्हें कानूनन गिरफ्तार करने की जगह घटनास्थल पर ही गोलियों से भून डाला था। बेशक मुख्यमन्त्री के विमान या हैलीकाप्टर पर टक्करें मार कर मान सिंह ने कानून को अपने हाथ में लिया था मगर पुलिस ने उनकी हत्या करके कानून की ही हत्या कर दी थी।

इस कांड पर इतना बावेला मचा था कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को मुख्यमन्त्री को हटाना पड़ा था। लोकतन्त्र में किसी शहरी की पुलिस द्वारा हत्या किया जाना कानून-व्यवस्था की सीधे हत्या किया जाना माना जाता है। क्योंकि पुलिस सीधे इस बारे में सरकार का प्रतिनिधित्व करती है। पुलिस कांस्टेबल के हाथ में डंडा इसी कानून और सरकार की ताकत का प्रतीक होता है। इसी वजह से पुलिस के किसी कांस्टेबल पर किया गया हमला सरकार पर हमला माना जाता है और एेसा करने वाले व्यक्ति को सख्त सजा दी जाती है। ठीक इसके उलट जब पुलिस किसी निरपराध व्यक्ति की हत्या करती है तो इसका दोष सीधे सरकार पर होता है मगर उत्तर प्रदेश एेसा ‘उलटा-पुल्टा’ प्रदेश पिछले तीस सालों से बन चुका है कि यहां के क्षेत्रीय व जातिवादी दलों ने अपना राजनैतिक एजेंडा चलाने के लिए सबसे पहले पुलिस को ही ‘बेनंग-ओ-नाम’ करने का काम किया है। समाजवादी पार्टी की सत्ता में पुलिस अपराधियों को संरक्षण देने के काम के लिए बदनाम हुई तो बहुजन समाज पार्टी के शासन में भ्रष्टाचार को संस्थागत तरीके से नीचे से ऊपर तक ले जाने का काम हुआ। जिस राज्य में स्व. चरण सिंह व चन्द्रभानु गुप्ता जैसे मुख्यमन्त्री रहे हों और जिनके शासन में पुलिस हमेशा न्यायालय की समीक्षा की मोहताज रही हो वहां इस प्रकार का माहौल सिवाय पुलिस अराजकता के और क्या कहा जा सकता है?

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