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फेस बुक पर राजनैतिक ‘फसाद’

फेस बुक पर जारी पोस्ट और भारत में इस कम्पनी की नीति को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है उसका एक प्रमुख आयाम भारत का वह संविधान है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इस शर्त के साथ दी गई है कि हिंसा फैलाने वाले विचारों या समाज के विभिन्न वर्गों में किसी भी आधार पर नफरत या घृणा का प्रचार-प्रसार करने की छूट किसी भी कीमत पर किसी व्यक्ति या संस्था अथवा संगठन को नहीं मिलेगी।

12:07 AM Aug 18, 2020 IST | Aditya Chopra

फेस बुक पर जारी पोस्ट और भारत में इस कम्पनी की नीति को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है उसका एक प्रमुख आयाम भारत का वह संविधान है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इस शर्त के साथ दी गई है कि हिंसा फैलाने वाले विचारों या समाज के विभिन्न वर्गों में किसी भी आधार पर नफरत या घृणा का प्रचार-प्रसार करने की छूट किसी भी कीमत पर किसी व्यक्ति या संस्था अथवा संगठन को नहीं मिलेगी।

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फेस बुक पर राजनैतिक ‘फसाद’
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फेस बुक पर जारी पोस्ट और भारत में इस कम्पनी की नीति को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है उसका एक प्रमुख आयाम भारत का वह संविधान है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इस शर्त के साथ दी गई है कि हिंसा फैलाने वाले विचारों या समाज के विभिन्न वर्गों में किसी भी आधार पर नफरत या घृणा का प्रचार-प्रसार करने की छूट किसी भी कीमत पर किसी व्यक्ति या संस्था अथवा संगठन को नहीं मिलेगी। ऐसा करना राष्ट्र विरोधी कृत्य समझा जायेगा क्योंकि नफरत के विचारों की परिणिती अन्ततः सामाजिक हिंसा में हो सकती है और इससे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
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देखना केवल इतना  है कि क्या फेसबुक ने अपने मंच का इस्तेमाल घृणा या द्वेष फैलाने के लिए खुला छोड़ रखा है और यदि ऐसा है तो उसने ऐसी पोस्टों को तुरन्त हटा देने या ऐसे तत्वों की पहुंच ( अकाउंट) खत्म करने के कारगर उपाय क्यों नहीं किये। एक बात और समझने वाली है कि भारत में कोई भी देशी या विदेशी कम्पनी इस देश के कानून व नियम और संविधान के प्रावधानों के अनुरूप ही व्यापार या वाणिज्य कर सकती है।
फेसबुक या व्हाट्स एप जैसे मंच नये टैक्नोलोजी युग के नवीन प्रचार-प्रसार व अभिव्यक्ति व्यक्त करने के माध्यम हैं। इन्हें भारत के संविधान से ऊपर जाने की छूट नहीं दी जा सकती मगर इसे लेकर जिस प्रकार कांग्रेस व भाजपा में वाक् युद्ध हो रहा है उसका औचित्य संसद की सूचना टैक्नोलोजी स्थायी समिति को सिद्ध करने की जरूरत नहीं है बल्कि यह सिद्ध करने की जरूरत है कि फेस बुक के दोषी पाये जाने पर उसे उचित दंड मिल सके। स्थायी समिति का अधिकार क्षेत्र इस मामले में जाहिर तौर पर बनता है जिसमें ताजा विवाद की बारीकी से जांच-पड़ताल की जा सकती है। संभवतः यह कार्य समिति करे भी क्योंकि इसके अध्यक्ष श्री शशि थरूर ने कहा है कि वह फेसबुक के भारत प्रमुख को तलब करेंगे।
आजाद भारत की सबसे बड़ी ताकत इसका लोकतन्त्र है जिसकी वजह से इसने पिछले 73 सालों में जो भी तरक्की की है वह यहां के लोगों की कड़ी मेहनत और भरोसे के बल पर ही की है। जिस एकजुटता के साथ भारत के लोगों ने अपने देश के उत्थान में चहुं ओर प्रगति के झंडे गाड़े हैं उस पर कोई भी वाणिज्यिक कम्पनी प्रहार नहीं कर सकती।
दरअसल अमेरिका के अखबार ‘वाल स्ट्रीट जरनल’ ने यह खबर छापी कि भारत में फेस बुक पर एक राजनीतिक दल से जुड़े चार लोगों या संगठनों ने ऐसी पोस्ट डालीं जिन्हें इस कम्पनी ने भड़काऊ माना मगर उनके खिलाफ कार्रवाई करना अपने व्यापारिक हितों के विरुद्ध माना। इससे  पूर्व अन्य दलों के कई नेतागण भी ऐसा ही काम कर चुके हैं। अतः इस विवाद को दल-गत विवाद में सीमित करना भूल होगी। फेस बुक और व्हाट्सएप को लेकर अक्सर गलत खबरें देने या अफवाहें फैलाने के आरोप भी लगते रहे हैं। इस बारे में इन कम्पनियों की कोई स्पष्ट नीति नहीं है, यही सबसे खतरनाक बात है। आने वाला समय ऐसे ही सूचना मंचों का रहेगा। अतः इस बारे में सरकार को एेसी स्पष्ट नीति बनाने की जरूरत है।
जिससे किसी भी राजनैतिक दल को पक्षपात करने की शिकायत करने का मौका न मिले। इसका सीधा रास्ता यह है कि संविधान के प्रवधानों के अनुरूप अपनी ‘पोस्ट’ नीति बनाने के लिए फेसबुक जैसी कम्पनियों को मजबूर किया जाये और इसका उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था का अकाउंट हमेशा के लिए रद्द करने के आदेश दिये जायें।
कोई भी कम्पनी केवल मुनाफा कमाने के लिए भारत के आधारभूत लोकतान्त्रिक ढांचे को कमजोर बनाने की जुर्रत नहीं कर सकती  मगर कांग्रेस पार्टी ने इस मामले की जांच करने के लिए संसद की संयुक्त जांच समिति बनाने की मांग कर डाली है। तर्कपूर्ण ढंग से देखें तो कांग्रेस को थोड़ा सब्र से काम लेना चाहिए था और संसद की स्थायी समिति के निष्कर्षों का इन्तजार करना चाहिए था।
बेशक संसदीय जांच समित के अधिकार असीमित होते हैं और अन्य देशों में फेस बुक मामले में ऐसा हो भी चुका है फिर भी स्थायी समिति संसद का ही प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि इसमें भी सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के सांसद शामिल होते हैं। वैसे गौर से देखें तो यह मामला फौजदारी का बनता है क्योंकि फेसबुक ने भारत का कानून तोड़ा है और अपने मंच का कथित दुरुपयोग होने दिया है। यह आपराधिक षड्यन्त्र तक के दायरे में पहुंच सकता है परन्तु फेस बुक की भारत प्रमुख श्रीमती अंखी दास ने उल्टे पुलिस में एफआईआर दर्ज करा दी है कि सोशल मीडिया पर उन्हें धमकियां मिल रही है।
यह भी पूर्णतः अनुचित है, किसी को भी उन्हें धमकी देने का अधिकार नहीं है क्योंकि वह अपनी कम्पनी की अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों के अनुसार ही काम कर रही हैं। असली सवाल तो भारत में उनकी कम्पनी के लिए भारत के कानून के मुताबिक काम करने की बाध्यता पैदा करने का है।
इस बारे में श्री थरूर के नेतृत्व वाली स्थायी समिति ठोस कदम उठायेगी। इसकी अपेक्षा हर भारतवासी को है, क्योंकि सवाल भारत के लोकतान्त्रिक मूल्यों का है जो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से इस प्रकार जुड़े हैं कि गाली-गुफ्तार इस दायरे मंे नहीं आते। यह समस्या इतनी गंभीर है कि स्वयं राजनैतिक दल भी इससे कभी भी प्रभावित हो सकते हैं। देखना यह भी होगा कि किसी पोस्ट पर ‘ट्रोल’ करने की सीमा क्या हो और उसका दायरा क्या हो।
यह सब कार्य तो फेसबुक को ही करना होगा। भारत में इसके 28 करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो दुनिया भर में सबसे ज्यादा हैं। इसी प्रकार 40 करोड़ भारतीय व्हाट्सएप का प्रयोग करते हैं। यदि इन मंचों को हम असभ्यता की भाषा का पर्याय बना देंगे तो सभ्यता किस दरवाजे पर माथा फोड़ने जायेगी। अतः फेस बुक को पोस्ट ‘फिल्टर’ करने का मजबूत तन्त्र स्थापित करना ही होगा।
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