W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू

जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज की जड़ें मजबूत करने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है। इसके तहत राज्य में पहली बार जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव करवाए जा रहे हैं।

12:00 AM Nov 09, 2020 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज की जड़ें मजबूत करने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है। इसके तहत राज्य में पहली बार जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव करवाए जा रहे हैं।

Advertisement
जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू
Advertisement
जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज की जड़ें मजबूत करने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है। इसके तहत राज्य में पहली बार जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव करवाए जा रहे हैं। पिछले वर्ष पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद ये पहली राजनीतिक गतिविधि होने जा रही है।
Advertisement
केन्द्र सरकार अब 73वें संविधान संशोधन के सभी प्रावधानों को केन्द्र शासित प्रदेेश जम्मू-कश्मीर में लागू करने जा रही है, जो राज्य में 28 वर्ष से लटका हुआ है। राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज पूर्ण  रूप से लागू होगा। ये जम्मू-कश्मीर के इतिहास में पहली बार होगा। जिला विकास परिषद की स्थापना के लिए केन्द्र ने हर जिले में 14 पद सृजित किए हैं। इन सभी पदों को प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिये भरा जाएगा।
केन्द्र को उम्मीद है कि इससे राज्य में नेतृत्व का एक नया वर्ग तैयार होगा, जिसका भारत के संविधान में विश्वास होगा। नया नेतृत्व राज्य के विकास की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। डीडीसी को प्रभावी बनाने के लिए जिला विकास परिषद के चेयरमैन को राज्यमंत्री का दर्जा देने का फैसला किया गया है। हर डीडीसी काउंसिल में पांच स्थाई समितियां बनाई गई हैं। ये समितियां वित्त, विकास, लोक निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण के मुद्दे पर होंगी।
ये डीडीसी की जिम्मेदारी होगी कि वो अपने इलाके के विकासकी रूपरेखा बनाने और वहां का त्वरित विकास करें और आर्थिक समृद्धि का रास्ता प्रशस्त करें। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक अच्छी बात यह हुई है कि 15 अक्तूबर को गठित हुए पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिकलेरेशन ने जिला विकास परिषद के चुनावों में साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है।
नेशनल कांफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने नजरबंदी से रिहाई के बाद बहुत तीखे बयान दिए थे। फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए चीन की मदद तक लेने की बात कह दी थी आैर महबूबा मुफ्ती ने कश्मीरियों के अधिकार वापस मिलने तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था।
जहरीले बयान देना दोनों नेताओं के अपने खिसकते जनाधार को फिर से मजबूत करने के लिए मजबूरी ही समझा जाना चाहिए लेकिन गुपकार एलायंस का डीडीसी चुनाव लड़ने का फैसला एक तरह से देश की मुख्यधारा में शामिल होना ही माना जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों में भी कश्मीरी अवाम बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती रही है, इसका अर्थ यही है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की लोकतंत्र में आस्था है और वह भारतीय सविधान को स्वीकार करती है। अब गुपकार एलायंस में शामिल नेशनल कांफ्रैंस, पीडीपी, पीपुल्स कांफ्रैंस, अवामी नेशनल कांफ्रैंस, जम्मू-कश्मीर प​ीपुल्स मूवमेंट के साथ सीपीआई अैर सीपीएम सभी मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया है। कांग्रेस ही जम्मू-कश्मीर की सबसे पुरानी पार्टी है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कभी अलग नहीं रही है। कांग्रेस भाजपा को खुला रास्ता नहीं दे सकती है। हालांकि नेशनल कांफ्रैंस के कुछ नेताओं ने इन चुनावों का विरोध करते हुए कहा है कि यह मुख्यधारा के नेताओं के चुनाव में शामिल होने के लिए केन्द्र सरकार का बिछाया हुआ जाल है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में असहमति के स्वर उठना भी स्वाभाविक हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का चुनावों में भाग लेना अच्छा और सुखद फैसला है। यद्यपि कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि डीडीसी को ज्यादा शक्ति देने से चुनावों के बाद विधायकों की शक्ति कमजोर होगी।
इससे चुनी हुई विधायिका कमजोर और शक्तिहीन हो जाएगी। यदि डीडीसी विकास के ​लिए काम करती है तो अच्छा है लेकिन राज्य के बाबू ऐसा नहीं चाहते। राज्य के सरकारी अधिकारी पंचायती राज को फलने-फूलने नहीं दे रहे, इसकी वजह से ही ब्लाक डैवलमेंट काउंसिल सिर्फ दिखावे की रह गई है।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव भी कराए जाएंगे। अभी परिसीमन की प्रक्रिया चल रही है। डीडीसी चुनावों में नई जैनरेशन सामने आएगी। जो जीतेंगे उनमें से अधिकांश विधायक का चुनाव लड़ेंगे ही। केन्द्र की यह कोशिश एक गेमचेंजर साबित हो सकती है और नेतृत्व की एक नई पौध तैयार हो सकती है। इनमें से अगर कोई परिश्रमी और योग्य हुए तो वे जम्मू-कश्मीर का बड़ा नेता बन सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं तो यह संदेश भी जाएगा कि वे अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करने की हालत में नहीं हैं। यह बात समझी जानी चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों का मुख्यधारा में शामिल होना ही सही है।
विगत 16 अक्तूबर को गृह मंत्रालय ने राज्य के 1989 के पंचायत कानून में संशोधन किया था जिसे केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी देते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी जिले की जिला ​विकास परिषद के चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा ​किए जाएंगे और विकास का बजट इन्हीं परिषदों द्वारा खर्च  किया जाएगा।
वास्तव में सत्ता के ​िवकेन्द्रीयकरण की प्रक्रिया ही है जो लोकतंत्र की सफलता के लिए एक शर्त के रूप में देखी जाती है। जिला परिषद चुनाव राजनीतिक आधार पर ही होंगे, जिससे राज्य में राजनीतिक गतिविधियों की सामान्य शुरूआत होने में मदद मिलेगी। पूरे मामले में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि जिला परिषदों का पूर्ण रूप से लोकतंत्रीकरण होगा। राजनीतिक सक्रियता बढ़ने से इसमें सीधे आम आदमी की भागीदारी भी बढ़ेगी।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×