W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजनीति

01:25 AM Jan 13, 2024 IST | Shera Rajput
Advertisement
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजनीति
Advertisement

भ्रष्टाचार समाज का कैंसर है। खासकर राजनीतिक भ्रष्टाचार, पिछले लगभग दस साल से केंद्र की मोदी सरकार में भ्रष्टाचार की बीमारी का इलाज शुरू हुआ है। जांच एजेंसियां जैसे ही किसी भ्रष्टाचारी पर कार्रवाई करती हैं तो वो चिल्लाना शुरू कर देता है। बीमारी पुरानी है तो दवा की डोज भी कुछ बढ़ाकर देना मजूबरी हो जाता है। राजनीतिक दलों के नेताओं ही नहीं भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी मोदी सरकार लगातार कार्रवाई कर रही है। राजनेताओं के भ्रष्टाचार पर जब कार्रवाई होती है तो वो सत्ता पक्ष पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की बात करता है। भ्रष्ट नेता जांच एजेंसी की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताता है। भ्रष्टाचार के मामलों की जांच-पड़ताल की बात शुरू होते ही विपक्षी दलों को परेशानी क्यों होती है? खासतौर से कांग्रेस को। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी के दामन पर भ्रष्टाचार का एक भी धब्बा नहीं है, इसलिए उन्होंने जांच एजेंसियों को भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई की छूट दे रखी है।
जांच एजेंसियों की ताबड़तोड़ कार्रवाईयों से परेशान राजनीतिक दल और नेता अब जांच एजेंसी के अधिकारियों और कर्मचारियों पर हमलावर हो गए हैं। पिछले दिनों ऐसा ही दृश्य पश्चिम बंगाल में देखने को मिला। पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में राशन घोटाले के संबंध में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं के यहां छापा मारने गए ईडी के दल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ द्वारा हमला कर जरूरी दस्तावेज, लैपटॉप, मोबाइल, नगदी आदि छीनने के साथ ही उनके वाहनों को भी तोड़ा-फोड़ा गया। हमलावर ईंट ,पत्थर और लाठियों से लैस थे। ईडी के अनेक अधिकारी घायल हो गए। उक्त घोटाले को लेकर ईडी द्वारा राज्य के 15 स्थानों पर छापेमारी की गई थी। जिन नेताओं के यहां उक्त वारदात हुई वे लगातार बुलाए जाने पर भी जब नहीं आए तब ईडी द्वारा इस बारे में जिले के पुलिस अधीक्षक से भी संपर्क किया गया किंतु उन्होंने भी कोई सहयोग नहीं किया।
ये पहला अवसर नहीं है जब पश्चिम बंगाल में किसी केंद्रीय जांच एजेंसी के साथ इस तरह का व्यवहार किया गया हो। पांच साल पहले सीबीआई दल चिटफंड घोटाले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने गया तो बजाय सहयोग करने के उस दल के सदस्यों को ही गिरफ्तार कर लिया गया जिसकी गूंज संसद तक में हुई। बाद में राज्य सरकार द्वारा सीबीआई को राज्य में आने से रोकने का फरमान भी जारी कर दिया गया। पश्चिम बंगाल में केंद्रीय जांच दलों के साथ आपत्तिजनक व्यवहार की बढ़ती घटनाएं देश के संघीय ढांचे के लिए खतरनाक संकेत हैं। सैकड़ों हथियारबंद लोगों ने जिस प्रकार ईडी दल पर आक्रमण किया उस पर ममता की खामोशी साधारण नहीं है।
गौरतलब है कि उनके शासनकाल में घोटालों की बाढ़ आ गई जिनमें तृणमूल कांग्रेस के तमाम नेता, सरकार के मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी फंसे हुए हैं। यहां तक कि ममता के भतीजे अभिषेक और उनकी पत्नी भी जांच के घेरे में हैं। इसीलिए उनका केंद्र सरकार से टकराव बना हुआ है। लेकिन जिस कांग्रेस के साथ सुश्री बनर्जी इंडिया नामक गठबंधन में शामिल हैं वह भी वामपंथी दलों के साथ मिलकर उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाती है। सबसे अधिक चौंकाने वाली बात ये है कि वामपंथी सत्ता द्वारा किए गए अत्याचारों के विरुद्ध जमीनी संघर्ष करते हुए सत्ता में पहुंची ममता उन्हीं को दोहरा रही हैं।
पनामा पेपर्स में जब बालीवुड और उद्योगपतियों के नाम आए तो आरोप लगा कि सरकार जांच क्यों नहीं करवा रही? जरूर मिलीभगत है। जांच शुरू हुई तो कपड़े फाड़ने लगे कि यह तो राजनीतिक विद्वेष के कारण हो रहा है। वर्ष 2021 में संसद के शीतकालीन सत्र में समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य जया बच्चन सदन में रौद्र रूप में थीं। कारण यह था कि उसी दिन उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन को प्रवर्तन निदेशालय ने पनामा पेपर्स के बारे में पूछताछ के लिए बुलाया था। जया बच्चन ने सरकार के बुरे दिन आने का श्राप दे दिया। जैसे कि वह कोई संत-महात्मा हों।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भ्रष्टाचार को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। साल 2014 में केंद्र में आने के बाद से मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस का रवैया अपनाया है, जिसके चलते जांच एजेंसियों ने भी सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर लाखों करोड़ों रुपये की संपत्ति अब तक जब्त की है। ईडी सहित अन्य एजेंसियों ने पिछले 9 वर्षों में टैक्स चोरी करने वालों पर जमकर एक्शन लिया है। ईडी का चाबुक केवल कारोबारियों पर ही नहीं बल्कि भ्रष्ट नेताओं पर भी चला है। संसद के पिछले शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि साल 2014 से लेकर अब तक ईडी ने 1.16 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की काली कमाई को अस्थायी रूप से कुर्क किया है। ईडी ने एक जनवरी 2019 से अब तक चार लोगों को भारत प्रत्यर्पित किया है और अदालतों ने तीन और लोगों के प्रत्यर्पण का आदेश जारी किया है।
हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री मोदी ने करप्शन को बड़ा मुद्दा बनाया था। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी तकरीबन हर चुनावी रैली में पीएम भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर-शोर से उठाते थे। कभी महादेव ऐप घोटाला तो कभी खनन घोटाला, कभी लाल डायरी में दर्ज काले कारनामे तो कभी भर्तियों में धांधली और पेपर लीक...। राजस्थान की ऐसी ही एक रैली में पीएम मोदी ने लाल किले से दिए अपने भाषण की बातों को दोहराते हुए कहा कि भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण देश के 3 बड़े दुश्मन हैं। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस इन तीनों की ही प्रतीक है।
विपक्ष के कई नेता आज भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद हैं और कई जमानत पर बाहर हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ ईडी, आईटी, सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयों को विपक्ष बदले की राजनीति करार देता है। केंद्रीय एजेंसियों को बीजेपी का गठबंधन साझेदार बताता है। लेकिन हालिया चुनाव नतीजों से उत्साहित केंद्र सरकार इन आरोपों से दबाव में आने वाली नहीं है, ये पीएम मोदी ने भी साफ कर दिया है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीतिक गलियारों में छाया रहेगा। भ्रष्टाचार पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर राजनीति की प्रवृत्ति से राजनीतिक दलों को परहेज बरतना चाहिए।

- राजेश माहेश्वरी

Advertisement
Advertisement
Author Image

Shera Rajput

View all posts

Advertisement
Advertisement
×