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एक बड़े कर सुधार की तैयारी

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12:16 AM Oct 15, 2018 IST | Desk Team

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भारत आज विश्व की सबसे बड़ी छठी अर्थव्यवस्था है और आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था और भी विस्तार पाएगी। 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अर्थव्यवस्था के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियां और योजनाएं बनाई गईं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से इन्हें कार्यान्वित किया गया। 1950 में जब भारत ने 3.5 फीसदी की विकास दर हासिल की थी तो अनेक अर्थशास्त्रियों ने इसे ब्रिटिश शासन के अन्तिम 50 वर्षों की विकास दर से तिगुना हो जाने का जश्न मनाया था। भारत में कर ढांचा लागू किया गया लेकिन आर्थिक सुधार किसी भी विकासशील देश के लिए सतत् प्रक्रिया होती है और कर ढांचे में सुधार भी आर्थिक सुधारों के तहत ही आते हैं। भारत में 1980 तक जीएनपी की विकास दर कम थी, लेकिन 1981 में आर्थिक सुधारों के शुरू होने के साथ ही इसने गति पकड़ ली थी। 1991 में सुधार पूरी तरह से लागू होने के बाद ताे यह मजबूत हो गई थी।

1950 से 1980 के तीन दशकों में जीएनपी की विकास दर केवल 1.49 फीसदी थी। इस कालखंड में सरकारी नीतियों का आधार समाजवाद था। आयकर की दर में 97.75 प्रतिशत तक की वृ​िद्ध देखी गई। कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। सरकार ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से नियंत्रण के प्रयास आैर ​अधिक तेज कर दिए थे। 1980 के दशक में हल्के से आर्थिक उदारवाद ने प्रति व्यक्ति जीएनपी की विकास दर को बढ़ाकर प्रतिवर्ष 2.89 कर दिया। 1990 के दशक में अच्छे-खासे आर्थिक उदारवाद के बाद तो प्रति व्यक्ति जीएनपी बढ़कर 4.19 फीसदी तक पहुंच गई। 2001 में यह 6.78 फीसदी तक पहुंच गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 1991 में महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे कि इनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार आैर विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शािमल था। इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था काे गति देने में मदद की। तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है।

सकल स्वदेशी उत्पाद की आैसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951-91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गई। इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गई। आर्थिक सुधारों के तहत औद्योगिक लाइसेंस प्रथा की समाप्ति, पूंजी बाजार का उदारीकरण, सार्वजनिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र का प्रवेश, निजीकरण, आयकर तथा निगम कर में कमी, सेवा कर की शुरूआत, पेंशन क्षेत्र में सुधार, मूल्य संवर्धित कर (वैट) शुरू किया गया, सब्सिडी में कमी की गई। निरंतर किए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को आकर्षक अर्थव्यवस्था बना दिया। नरेन्द्र मोदी ने ‘एक देश एक टैक्स’ यानी जीएसटी लागू किया। शुरूआती मुश्किलों के बाद अब जीएसटी को समूचे देश में आत्मसात कर लिया गया और व्यापारियों को आने वाली समस्याओं को भी एक के बाद एक सुलझाया जा रहा है। जीएसटी के बाद भारत में ‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस’ को बढ़ाने के लिए सरकार एक बड़े कर सुधार की ओर बढ़ रही है।

स्टॉक्स, डिबेंचर सहित किसी भी फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट के ट्रांसफर पर सरकार देशभर में समान स्टाम्प ड्यूटी दर को लागू करने की तैयारी में है। यह कदम भी पिछले वर्ष कर प्रणाली को लेकर किए गए बदलाव जीएसटी की तरह है जिसने राज्यों और केन्द्र के दर्जनों टैक्सों को एक कर दिया। संसद के शीतकालीन सत्र में इस बदलाव को पारित कराने के लिए लाया जा सकता है। स्टाम्प ड्यूटी भूमि खरीद से जुड़े ट्रांजैक्शन्स आैर डॉक्यूमेंट्स पर लगता है, लेकिन इसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया था। बिल्स ऑफ एक्सचेंज, चैक, लेडिंग बिल्स, लेटर्स ऑफ क्रेडिट, इंश्योरेंस पॉलिसीज, शेयर ट्रांसफर, इकरारनामा जैसे वित्तीय साधनों पर स्टाम्प ड्यूटी संसद से तय होता है। हालांकि अन्य वित्तीय साधनों पर स्टाम्प ड्यूटी की दर राज्य तय करते हैं। स्टाम्प ड्यूटी में भिन्नता की वजह से अक्सर लोग ट्रांजैक्शन ऐसे राज्यों के जरिये करते हैं, जहां दर कम होती है।

मार्केट रेग्युलर सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ने इससे पहले राज्यों को सलाह दी थी कि इलेक्ट्रोनिक माध्यम से होने वाले फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन पर स्टाम्प ड्यूटीज को एक समान बनाएं या माफ कर दें। एक समान स्टाम्प ड्यूटी रेट के लिए 1899 के कानून में बदलाव के लिए प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन राज्यों ने इस अपील को खारिज कर दिया, क्योंकि वे स्टाम्प ड्यूटी पर अधिकार खोना नहीं चाहते। अक्सर देखा गया है कि जिन राज्यों में स्टाम्प ड्यूटी कम होती है तो लोग प्रॉपर्टी के कागजात दूसरे राज्यों में जाकर तैयार करवाते थे। दिल्ली में जब पावर आॅफ अटार्नी बन्द की गई तो लोग हरियाणा और पंजाब जाकर पावर आॅफ अटार्नी कराने लगे थे। जाहिर है इससे दिल्ली को राजस्व का नुक्सान ही हुआ। कई राज्य महिलाओं को सम्पत्ति खरीदने पर उन्हें स्टाम्प ड्यूटी में छूट देते हैं। इसका भी लोग फायदा उठाते हैं। मोदी सरकार अगर देशभर में एक समान स्टाम्प ड्यूटी लागू करती है तो यह एक और बड़ा कर सुधार होगा।

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