राष्ट्रपति ट्रम्प और जेलेंस्की
अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति में भद्रता और सौम्यता का अपना विशिष्ट स्थान होता है…
अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति में भद्रता और सौम्यता का अपना विशिष्ट स्थान होता है। कूटनीति कहती है कि अपने दुश्मन को भी मधुरता के साथ स्पष्ट बोली से घायल किया जाये। मगर वाशिंगटन में शुक्रवार को जो घटा वह कूटनीति के लिए भी नया अनुभव था क्योंकि इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ एेसा व्यवहार किया जिसकी किसी राष्ट्राध्यक्ष के लिए कल्पना भी नहीं की जा सकती। दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच खुलकर वाकयुद्ध हुआ। यह वाकयुद्ध ट्रम्प के ओवल आफिस में पत्रकारों के सामने हुआ जिससे इसकी गूंज पूरी दुनिया में हो रही है। इस वाकयुद्ध के बाद ट्रम्प ने जेलेंस्की के सम्मान में दिये जाने वाले दोपहर के भोज को भी रद्द कर दिया। दुनिया जानती है कि विगत वर्ष के अन्त में जब अमेरिका में चुनाव हो रहे थे तो वहां की रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी ट्रम्प ने साफ कहा था कि अगर वह सत्ता में आये तो रूस व यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रुकवा देंगे। इसके साथ ही उन्होंने पश्चिम एशिया में चल रहे इजराइल-हमास युद्ध को भी रुकवाने का वादा किया था। इसमें उन्हें सफलता मिली क्योंकि इजराइल अपनी शर्तों पर युद्ध विराम के लिए राजी हो गया।
एक मायने में ट्रम्प गलत नहीं हैं क्योंकि वह युद्ध के स्थान पर शान्ति चाहते हैं। पिछले महीने ही उन्होंने सऊदी अरब की राजधानी रियाद में यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने उच्च अधिकारियों को रूस के समकक्ष प्रतिनिधिमंडल से मिलने भेजा था जिसमें रूसी प्रतिनिधि भी शान्ति वार्ता के लिए तैयार हो गये थे। मगर इस पर यूक्रेन के राष्ट्रपति ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि बिना उनके देश को बीच में डाले किसी प्रकार की शान्ति वार्ता नहीं हो सकती और वह रूस व अमेरिका के बीच हुई युद्ध विराम की सहमति से सहमत नहीं हो सकते। इसके बाद राष्ट्रपति ट्रम्प ने साफ किया था कि जेलेंस्की को उनसे बातचीत करने के लिए वाशिंगटन आना होगा और जेलेंस्की ने एेसा ही किया। इससे पहले 24 फरवरी को फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्राें वाशिंगटन की यात्रा पर गये और उन्होंने ट्रम्प से बिना हिचकिचाहट यह कहा कि यूरोपीय देश यूक्रेन को अकेला नहीं छोड़ सकते। इसके बावजूद ट्रम्प की नीति बहुत स्पष्ट थी कि युद्ध रुकना चाहिए और इस पर जो धन की बर्बादी हो रही है वह बन्द होनी चाहिए। उन्होंने इससे भी आगे बढ़कर साफ कर दिया था कि जेलेंस्की एक तानाशाह हैं जिन्होंने अपने देश को रूस के साथ पिछले तीन साल से युद्ध में उलझा रखा है। ट्रम्प जानते हैं कि यूक्रेन बिना अमेरिका की मदद से यह युद्ध नहीं लड़ सकता अतः उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद यह भी कहा था कि यूरोपीय देशों के सामरिक संगठन नाटो की अब कोई जरूरत नहीं है।
यह जगजाहिर है कि 1949 में अमेरिका की पहल पर ही यह संगठन अस्तित्व में आया था जिसका सदस्य बनने के लिए जेलेंस्की बहुत लालायित हैं। वास्तव में जेलेंस्की की यही जिद युद्ध का कारण भी है जिसका तीव्र विरोध रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन कर रहे हैं। उनका कहना है कि रूस अपने दरवाजे पर नाटों सेनाओं को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यूक्रेन 1990 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस से ही निकला है जिसकी वजह से उसकी सीमाएं इस देश से मिलती हैं। यूक्रेन के दो राज्यों में रूसी भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं जिन्हें पुतिन रूस का ही भाग मानते हैं। अतः तीन वर्ष पहले रूस ने अपने इन इलाकों को लेने के लिए युद्ध छेड़ा। उधर जेलेंस्की ने नाटों का सदस्य बनने के लिए अभियान तेज किया मगर यूरोपीय देशों ने इसे अपनी सदस्यता तो नहीं दी अलबत्ता युद्ध में उसकी मदद करने की गारंटी जरूर दी। इसके बाद यूक्रेन यूरोपीय मदद से युद्ध लड़ रहा है और रूस को जमकर चिड़ा रहा है।
सवाल यह है कि यूक्रेन नाटों की सदस्यता क्यों चाहता है जबकि वह जानता है कि नाटों देश 1990 में रूस के साथ की गई इस सन्धि से बंधे हुए हैं कि वे सोवियत संघ से अलग हुए किसी भी देश को अपनी सदस्यता नहीं देंगे क्योंकि नाटों के जवाब में रूस द्वारा की गई सेन्टों सामरिक सन्धि तभी समाप्त हो गई थी। इसके बावजूद नाटों ने सोवियत संघ के सदस्य रहे कई देशों को अपना सदस्य बनाया। ट्रम्प की नीतियां पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीतियों से पूरी तरह उलट हैं। बाइडेन ने यूक्रेन को पूरी सामरिक व नागरिक मदद दी थी। जबकि ट्रम्प इसकी आवश्यकता नहीं मानते । बेशक तल्ख अन्दाज में ही वह विश्व शान्ति के समर्थक हों मगर युद्ध तो रोकना ही चाहते हैं। इस बारे में उनका जेलेंस्की से यह कहना कि उन्होंने तीसरे विश्व युद्ध का ही माहौल बना दिया बहुत मायने रखता है। भारत का रुख इस मामले में बहुत स्पष्ट है। वह भी शान्ति का समर्थक है। इसलिए पिछले दिनों राष्ट्रसंघ में रूस के खिलाफ जो प्रस्ताव रखा गया था भारत मतदान के समय अनुपस्थित रहा था। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि रूस भारत का परखा हुआ सच्चा मित्र है। वैसे भी भारत की विदेशनीति सर्वदा विश्व शान्ति के पक्ष में रही है। यदि ट्रम्प युद्ध विराम चाहते हैं तो उसका विरोध कैसे किया जा सकता है। मगर यूरोपीय देश यूक्रेन को समझाने के बजाय उसे बांस पर ही चढे़ हुए देखना चाहते हैं और रूस के विरुद्ध अपने आर्थिक प्रतिबन्ध और कड़े कर रहे हैं जबकि श्री ट्रम्प इनमें ढिलाई दे रहे हैं और रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध विराम चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने जेलेंस्की को वाशिंगटन से यह कहते हुए विदा कर दिया कि जब शान्ति समझौते के लिए आप तैयार हों तो अमेरिका आ जाइयेगा।