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राष्ट्रपति चुनाव : बन सकती है आम सहमति

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02:54 PM May 16, 2017 IST | Desk Team

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राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी के शुरू होते ही बिहार से यह आवाज आयी है कि वर्तमान राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी को ही पुन: इस पद का दावेदार बनाया जाना चाहिए क्योंकि उनके नाम पर सत्ता और विपक्ष दोनों में आम सहमति बन सकती है। भारत में वर्तमान में राजनीति का जो कर्कश प्रतिद्वन्दिता का दौर चल रहा है उसे देखते हुए यह सुझाव समय की मांग है। देश का सर्वोच्च संवैधानिक शासक हर प्रकार के राजनीतिक आग्रहों से ऊपर निर्विवाद व्यक्ति इसलिए होना चाहिए क्योंकि वह भारत की प्रकट विविधता का एकात्म बिन्दु होते हुए विभिन्न राज्यों के संघ भारत का राजप्रमुख होता है। उसकी सर्वत्र स्वीकार्यता विविधता में एकता का संबल प्रदान करती है। उसका व्यक्तित्व भारत के जन-जन के लोकतान्त्रिक अधिकारों का पोषण करता है। वह राजनीति से ऊपर रहते हुए भारत की संसदीय राजनीतिक प्रणाली को संवैधानिक तराजू पर तोलता है और लोकतन्त्र को निरापद रखने की गारंटी देता है। वह संविधान के संरक्षक के तौर पर देशवासियों की व्यवस्था में अटूट आस्था का अवलम्बन होता है। इसके साथ ही वह देश के सभी सुरक्षा बलों का सुप्रीम कमांडर होता है जिनका धर्म राष्ट्र की आन्तरिक व बाहरी सुरक्षा होती है। यह खूबसूरत व्यवस्था जब हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत को दी थी तो उनकी नजर में इस देश की वह ताकत थी जिसे भारतीयता कहा जाता है। राष्ट्रपति इसी भारतीयता के सर्वशक्तिमान अभिभावक होते हैं। यह बेवजह नहीं था कि आजादी मिलने के बाद राष्ट्रपति के रूप में डा. राजेन्द्र प्रसाद का चयन किया गया था जबकि स्वतन्त्र भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी थे।

स्व. राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व में उस समय के राजनेताओं को भारत खिलखिलाता नजर आया था। यह वह भारत था जो अंग्रेजों की दासता से बाहर आकर अपने सर्वांगीण विकास के लिए कुलबुला रहा था तब राष्ट्रपति भवन जनता को मिली हुई लोकतान्त्रिक शक्ति का अक्स बना था। राजेन्द्र बाबू विद्वता के पुंज होने के साथ ही आम आदमी की अपेक्षाओं की छाया थे मगर यह 21वीं सदी चल रही है और भारत के आम आदमी की अपेक्षाओं की तस्वीर भी बदल चुकी है। आम भारतीय को चालू दौर की गर्म लपटें उठाती राजनीति के बीच लोकतन्त्र की ठंडी बयार बहाने वाली वाणी चाहिए जिससे उसकी आस्था उस व्यवस्था से विचलित न हो जो संविधान के तहत उसके लिए बनाई गई है। प्रणव मुखर्जी ऐसी ही ठंडी बयार बहाने वाले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने आवेशों और उन्माद में आये भारत को पिछले पांच वर्षों में राह दिखाई है। भारत की प्राचीन संस्कृति के वैभव गान से लेकर वर्तमान की चुनौतियों को सीधे लक्ष्य पर लेने की जिनमें हिम्मत है। विपक्षी पार्टियों से लेकर सत्ता पक्ष को रोशनी दिखाने की जिनमें अद्भुत क्षमता है। संसद को चौराहा बनने से रोकने की ताकीद करने की जिनमें योग्यता है और भारत के चहुंमुखी विकास के लिए राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहकर एकजुट होकर काम करने की सलाह देने की जिनकी विशेषज्ञता है। संसदीय लोकतन्त्र की बारीकियों में माहिर माने जाने वाले श्री मुखर्जी ने न जाने कितने राजनीतिक दलों के साथ मिलकर कार्य किया। उनका 40 वर्ष से अधिक का संसदीय जीवन रहा। यह जीवन उतार-चढ़ावों का रहा।

सत्ता और विपक्ष का रहा मगर सभी परिस्थितियों में उनका लक्ष्य राष्ट्र हित ही रहा। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब अमेरिका के साथ परमाणु करार के मुद्दे पर संसद में गर्मागर्म बहस चल रही थी तो उन्होंने कहा था कि ‘इस सदन में बैठे प्रत्येक सदस्य को याद रखना चाहिए कि जनता ने हम पर विश्वास करके हमें चुना है और हमें खुद पर विश्वास होना चाहिए कि हम जो कुछ कर रहे हैं इस देश के हित में कर रहे हैं और आने वाली पीढिय़ों का हित सुरक्षित रखने के लिए कर रहे हैं। यदि हम अपने कत्र्तव्य से विमुख हो गये तो आने वाली सन्ततियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। यह बेवजह नहीं है कि राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई बार चेताया कि भारत ऐसा देश है जिसकी संस्कृति पांच हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है, जिसमें सात जातीय वर्ग (रेस) के लोग रहते हैं, जिसमें 200 से ज्यादा बोलियां और भाषाएं बोली जाती हैं। सदियों से ये लोग मिलजुल कर रहते आए हैं। विचार वैविध्य इस देश की संस्कृति का मूल अंग है। एक-दूसरे के प्रति सहनशीलता इसका गुण है। सातवीं और आठवीं सदी तक यह देश दुनिया के दूसरे देशों के लिए शिक्षा और ज्ञान का केन्द्र रहा है। यह किस प्रकार खुद को पुन: विज्ञान व टैक्नोलोजी में प्रगति करते हुए स्थापित नहीं कर सकता? भारत में नवाचार (इन्नोवेशन) की बात किसी ने सबसे पहले की तो श्री मुखर्जी ने ही विभिन्न विश्वविद्यालयों में जाकर की। अत: बदलते वक्त में उनसे बेहतर राष्ट्रपति और कौन हो सकता है, सभी राजनीतिक दलों को अपने-अपने आग्रह छोड़कर इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जो सुझाव बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने दिया है, उस पर मनन करना चाहिए।

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