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आजाद भारत का गौरव

सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट को लेकर बहुत सियासत भी हुई।

01:03 AM Sep 09, 2022 IST | Aditya Chopra

सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट को लेकर बहुत सियासत भी हुई।

आजाद भारत का गौरव
सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट को लेकर बहुत सियासत भी हुई। विवाद भी खड़े करने की कोशिश की गई। सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट की उपयोगिता लेकर केस देश की सर्वोच्च अदालत तक भी पहुंचा। लेकिन सर्वोच्च अदालत द्वारा परियोजना को हरी झंडी दिखाए जाने के बाद विपक्ष शांत हो गया। आज भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस परियोजना का उद्घाटन कर दिया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने राजपथ को कर्त्तव्यपथ बना दिया। लाख बहस हुई, आरोप-प्रत्यारोप भी चले लेकिन आज सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट आजाद भारत के गौरव का प्रतीक बन गया। यह आत्मनिर्भर भारत के सृजन का गवाह बन गया है। पुराना संसद भवन कहीं न कहीं गुलामी का अहसास दिलाता रहा। इसमें कोई संदेह  नहीं कि पुराने संसद भवन में स्वतंत्रता के बाद भारत को नई दिशा दी। लेकिन नया संसद भवन भारत की एकता अखंडता को लेकर किए गए प्रयास लोकतंत्र के इस नए मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की ऊर्जा बन गए। अब सवाल यह है कि सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट की जरूरत क्यों पड़ी।
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वर्तमान में संसद भवन का निर्माण 1921 से 1927 के दौरान ब्रिटिश सर एडविन लुटियन और हर्बट बेकर के बनाए डिजाइन के अनुसार हुआ था। मूल रूप से इसे ‘काउंसिल हाउस’ कहा जाता था। यह भवन आज लगभग 100 साल पुराना हो चुका है और हेरिटेज ग्रेड-1 बिल्डिंग में शामिल है। समय के साथ संसदीय गतिविधियों में तेजी से बढ़ौतरी हुई और इसमें काम करने वाले और वि​जिटर की संख्या काफी अधिक हो गई है। संसद भवन का निर्माण पूर्णकालिक लोकतंत्र के दो सदनों के अनुसार नहीं किया गया था। लोकसभा में सीटों की संख्या 1971 की जनगणना के अनुसार 545 ही है। 2026 के बाद लोकसभा की सीटों में बढ़ौतरी होने का अनुमान है जब सीटों की कुल संख्या पर लगी रोक हट जाएगी। सैंट्रल हाल में सिर्फ 440 लोगों के बैठने की व्यवस्था है और दोनों सदनों के संयुक्त सत्र के दौरान अक्सर बैठने की समस्या का सामना करना पड़ता है। नई लोकसभा में सांसदों के बैठने की सुविधा के साथ 888 सीटों के साथ तीन गुना बड़ी होगी। एक बड़े राज्यसभा हाल की क्षमता 384 सीटों तक होगी।इस परियोजना की खासियत यह है कि एक ही छत के नीचे सभी 51 मंत्रालय आ गए हैं। इससे बेहतर तालमेल स्थापित होगा और अधिकारियों और कर्मचारियों को विश्व स्तरीय सुविधाओं का लाभ मिलेगा। परियोजना के तहत किसी भी हैरीटेज ​​बिल्डिंग को नहीं गिराया गया है। केन्द्र सरकार सैंट्रल दिल्ली में विभिन्न सरकारी कार्यालयों के किराए पर 1000 करोड़ रुपए खर्च करती रही है। अब हर साल 1000 करोड़ रुपए की बचत होगी। परियोजना पर जितना खर्च आया है इसको लेकर विपक्ष हंगामा करता रहा है। लेकिन सच तो यह है कि यह परियोजना किफायती ढंग से पूरी की गई है। प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली से सभी लोग वाकिफ हैं। प्रधानमंत्री कोई भी बड़ा या ऐतिहासिक फैसला लेने से पहले वे सही समय का इंतजार करते हैं और  पूरे देश को चौंका देते हैं। दरअसल मोदी सरकार ने अंग्रेजों के वास्तुविद् एडमंड लुटियंस द्वारा रायसीना हिल्स पर बनाई गई नई दिल्ली के स्वरूप को पूरी तरह बदल डाला। इसके साथ ही राजपथ का नामकरण कर्त्तव्यपथ बन गया है। इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की पूरी सड़क अब कर्त्तव्यपथ कहलाएगी और राजपथ अतीत में चला गया है। इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन को जोड़ने वाली इस सड़क का नाम जार्ज, पंचम की शान में रखा गया था। पहले इसका नाम किंग्जवे यानि राजा का मार्ग था लेकिन आजादी के आठ वर्ष बाद तत्कालीन नेहरू सरकार ने किंग्जवे का हिन्दी अनुवाद राजपथ रख दिया। इसका अर्थ भी यही है कि इस रास्ते पर सिर्फ राजा ही आ-जा सकते हैं। राजपथ हमें उस ओपनिवेशक काल की याद दिलाता रहा जिस पर अंग्रेजों ने 200 साल तक राज किया और भारत के खजाने के लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अगर भारत की सरकार देश पर लगे गुलामी के चिन्हों को मिटाना चाहती है तो इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जिस आजादी के लिए देश के अनेक लोगों ने शहादतें दीं, हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा उनके सम्मान में स्वतंत्र भारत के गौरव का अहसास कराना गलत नहीं है। मोदी सरकार गुलामी के चिन्हों को मिटो के लिए कटिबद्ध है।
लोकतांत्रिक भारत में जनता ही सर्वोच्च है। जो लोग कहते हैं नाम में क्या रखा है उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि नाम बदलने से बहुत कुछ बदला जा सकता है। राजपथ का कर्त्तव्यपथ में बदलना महज एक सड़क का नाम बदलना नहीं है, बल्कि तीन शता​ब्दियों से भाररतीयों के दिलो-दिमाग में छाई दासतां के लबादे से मुक्ति दिलाना है। इसलिए उस सड़क का नाम ही बदल दिया गया है जिस सड़क पर पीएम रहता है। मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट के जरिये उसने देशवासियों को उनके सामर्थ्य का एहसास दिलाया है।
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Aditya Chopra

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