स्पेस में प्राइवेट सैक्टर की पॉवर
एक्सिओम-4 मिशन यानी एएक्स-4 एक कमर्शियल स्पेस मिशन है जिसे अमेरिका की प्राइवेट कंपनी एक्सिओम स्पेस चला रही है। एक्सिओम-4 मिशन में शुभांशु शुक्ला की सीट के लिए इसरो ने करीब 500 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। हालांकि यह रकम पहली नजर में भारी लग सकती है लेकिन देखा जाए तो ये निवेश है। आने वाले समय में यही निवेश भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान और मानव मिशन की दिशा में नई ऊंचाई देगा। यह ट्रेनिंग, रिसर्च और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दिशा में बड़ा कदम है। शुभांशु शुक्ला न केवल मिशन के पायलट हैं, बल्कि 14 दिन तक आईएसएस में रहकर विज्ञान से जुड़े 60 प्रयोगों में हिस्सा भी लेंगे। इन प्रयोगों में 7 भारत के इसरो द्वारा डिजाइन किए गए हैं। इनमें माइक्रोएल्गी को स्पेस में उगाने, स्पेस में मसल लॉस का अध्ययन, बीजों के विकास, कंप्यूटर स्क्रीन के प्रभाव और टार्डिग्रेड जैसे जीवों की स्पेस में ताकत की जांच शामिल है। इन एक्सपेरिमेंट्स से भविष्य में स्पेस में खेती करने, लंबे अंतरिक्ष मिशनों के दौरान मानव शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को समझने और स्पेस मिशनों में जीवन सपोर्ट के नए तरीके खोजने में मदद मिलेगी।
अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर 286 दिनों की अनिश्चितता और 4,576 बार पृथ्वी की परिक्रमा करने के बाद आखिरकार फ्लोरिडा तट के पास सुरक्षित लैंड कर गए। दोनों अंतरिक्ष यात्री स्पेसएक्स के कैप्सूल में वापस लौटे, जबकि उन्होंने अपनी यात्रा बोइंग के नए स्टार लाइनर यान से शुरू की थी। इस मिशन ने एक बार फिर अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को दर्शाया है। यह गगनयान जैसे भारतीय मानव मिशनों की तैयारी में भी मददगार साबित होगा। अंतरिक्ष में अब सरकारों के नहीं, बल्कि निजी कंपनियों के अंतरिक्ष स्टेशन बनने जा रहे हैं। एक्सिओम-4 मिशन के साथ इस दौड़ ने नई रफ्तार पकड़ ली है। एक्सिओम स्पेस के अलावा ब्लू ओरिजिन, वोयेगर स्पेस, नॉर्थरप ग्रुमैन और वास्ट जैसी बड़ी कंपनियां ऐसे अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की होड़ में हैं, जहां भविष्य में आम लोग भी कुछ लाख डॉलर खर्च कर शून्य गुरुत्वाकर्षण का अनुभव ले सकेंगे। न केवल अंतरिक्ष पर्यटन, बल्कि चिकित्सा अनुसंधान, उच्च तकनीकी निर्माण और फिल्म शूटिंग के लिए भी ये स्टेशन बड़े केंद्र बनेंगे। 2030 तक सेवानिवृत्त होगा आईएसएस। वर्ष 2030 के बाद जब अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) सेवानिवृत्त होगा, तब ये निजी स्टेशन अंतरिक्ष में मानव उपस्थिति का नया अध्याय शुरू करेंगे।
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निजी कंपनियों की बढ़ती भागीदारी के साथ बदलाव के दौर में है। इसरो ने उपग्रह लांचर निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को सौंपकर पुन: प्रयोज्य रॉकेट और कक्षीय सुरक्षा जैसी तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है। यह स्काईरूट, अग्निकुल और पिक्सल जैसे स्टार्टअप्स के प्रयासों को मजबूती देता है। वैश्विक अंतरिक्ष हब बनने की राह में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का तालमेल बेहद अहम है।
वर्ष 2020 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र की स्थापना एक ऐतिहासिक बदलाव था जिससे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ गई। इसरो और गैर-सरकारी संस्थाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर इन-स्पेस ने उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को काफी हद तक बढ़ा दिया है। उदाहरण के लिये एक निजी कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस वर्ष 2022 में सबऑर्बिटल रॉकेट, विक्रम-एस लॉन्च करने वाली पहली कंपनी बन गई। भारत के अंतरिक्ष स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तीव्र वृद्धि देखी गई है, जिसमें अग्निकुल कॉसमॉस और ध्रुव स्पेस जैसे स्टार्टअप प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी, उपग्रह निर्माण और अंतरिक्ष सेवाओं में अग्रणी हैं। सिर्फ वर्ष 2021 में ही भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप्स ने 68 मिलियन डॉलर का निवेश प्राप्त किया, जो वर्ष-दर-वर्ष 196 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अवसंरचना के निर्माण के लिये इसरो और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, गोदरेज एयरोस्पेस और एल एंड टी जैसी उद्योग की दिग्गज कंपनियों के बीच साझेदारी के माध्यम से सार्वजनिक-निजी सहयोग को और बढ़ावा मिला है। ये कंपनियां प्रक्षेपण वाहनों, अंतरिक्ष यान और उपग्रह उप-प्रणालियों के लिये घटकों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जिससे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ती है। आज हमारे पास अंतरिक्ष अवशेष प्रबंधन, नैनो उपग्रह, प्रक्षेपण यान, ग्राउंड सिस्टम, अनुसंधान जैसे नवीनतम क्षेत्रों में काम करने वाले 250 स्टार्टअप मौजूद हैं। पिछले साल से अब तक भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग और भारत के पहले सौर मिशन आदित्य-एल1 के सफल प्रक्षेपण के साथ नई ऊंचाइयों को छुआ। भारत का लक्ष्य अब 2035 तक ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ स्थापित करने और 2040 तक पहले भारतीय को चंद्रमा पर भेजने का है।
नि:संदेह, अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ने से देश को बड़ा फायदा होगा। असल में इसरो के मुताबिक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य करीब तीन सौ साठ अरब डाॅलर है लेकिन भारत की इसमें सिर्फ दो प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इसरो का अनुमान है कि देश 2030 तक इस हिस्सेदारी को बढ़ा कर नौ प्रतिशत तक ले जा सकता है।