प्रियंका के भइया और अमेठी की तुलसी
जब तक राजीव गांधी जीवित रहे, उत्तर भारत में ‘अमेठी’ एक जादुई नाम माना जाता था। सख्त निर्देश थे कि अमेठी से आने वाले किसी भी व्यक्ति को 10, जनपथ (जो उस समय राजीव गांधी का निवास था) के द्वार पर रोका न जाए। यही स्थिति प्रधानमंत्री निवास, रेस कोर्स रोड (अब लोक कल्याण मार्ग) पर भी थी। चूंकि अमेठी प्रधानमंत्री की संसदीय सीट थी, इसलिए वहां के लोगों को स्वतः ही विशिष्ट व्यक्ति माना जाता था लेकिन यह कोई 40 साल पुरानी बात है। वही अमेठी, जो कभी कांग्रेस की शान मानी जाती थी, समय के साथ उपेक्षित हो गई और उसकी चमक फीकी पड़ गई। राजीव गांधी के चुनाव हारने और विपक्ष में चले जाने के बाद यह क्षेत्र वीआईपी दर्जा भी खो बैठा और वहां के लोग राजनीतिक रूप से जैसे अनाथ हो गए। और फिर 2019 में उन्होंने कांग्रेस के पहले परिवार को एक कड़ा संदेश दिया- यह रोष, निराशा और विश्वासघात का नतीजा था। वह क्षेत्र जिसने राजीव गांधी की हत्या के बाद भी अधिकतर चुनावों में गांधी परिवार को जिताया था, खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा था और उसने यथास्थिति को बदलने का फैसला किया।
तभी भाजपा की स्मृति ईरानी ने प्रवेश किया और उनकी जीत की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए कि उन्होंने गांधी परिवार के गढ़ में एक गांधी को हराया। राहुल गांधी, स्मृति ईरानी से हार गए। इसलिए जब 2024 में स्मृति ईरानी के खिलाफ किशोरी लाल शर्मा जैसे अपेक्षाकृत अनजान चेहरे को उतारा गया, जो एक केंद्रीय मंत्री और सिटिंग सांसद के सामने नगण्य लग रहा था, तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह जीतेंगे लेकिन उन्होंने जीत दर्ज की। सिर्फ अमेठी ही नहीं हारी, बल्कि स्मृति ईरानी 2019 में मिले “जायंट स्लेयर” (दिग्गज को हराने वाली) के तमगे से भी हाथ धो बैठीं। इस बार हालात पलट चुके थे। 2024 की जीत के बाद किशोरी लाल को ही “जायंट स्लेयर” कहा जाने लगा, वही व्यक्ति जिसे ईरानी ने कभी ‘गांधी परिवार का सेवक’ कहा था। आलोचकों ने उन्हें गांधी परिवार का वफादार, यहां तक कि पूरी तरह समर्पित बताया, जो कांग्रेस के पहले परिवार को खुश करने के लिए किसी भी हद तक झुक सकता है।
किशोरी लाल ने इन आरोपों को नकारा नहीं, बल्कि खुले तौर पर गांधी परिवार के प्रति अपनी कृतज्ञता जताई। उन्होंने मीडिया से कहा “आज मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं की वजह से हूं। गांधी परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया। उन्होंने मुझे चुना, मेरी निष्ठा का मूल्य समझा और मुझे यह सम्मान दिया। मैं कभी नहीं भूल सकता कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया है।” ईरानी ने उन्हें ‘गांधी परिवार का सेवक’ कहकर तंज कसा था। उनके विरोधियों ने उन्हें ‘कठपुतली’ करार दिया। इसे आप चाहे वफादारी कहें, अधीनता, भक्ति, समर्पण या फिर एल.के. अडवाणी के शब्दों में ‘झुकने को कहा गया तो रेंगने की तत्परता’ लेकिन किशोरी लाल अपनी निष्ठा को लेकर स्पष्ट हैं। उनका कहना है -मुझे उस परिवार में अपनी बात कहने का हक है और वे यह कहकर यह भी नकारते हैं कि वे केवल एक ‘रबर स्टैम्प’ हैं।
एक वर्ष बीत जाने के बाद किशोरी लाल उस पल को याद करते हैं जब वे चुनाव लड़ने को लेकर हिचक रहे थे और मैं कभी नहीं भूल सकता कि जब मैं चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छुक था, तब प्रियंका गांधी ने मुझसे क्या कहा। उन्होंने कहा कि दशकों तक मैंने गांधी परिवार के हर सदस्य के चुनाव में मेहनत की है। अब उनकी बारी है, अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए। यह बताते हुए किशोरी लाल की आंखें भर आईं। इन दोनों के बीच एक समान शब्द है ‘भइया’। यह एक विशेष रिश्ता है, जो वर्षों की कसौटियों पर खरा उतरा है।
अगर इस रिश्ते को समझें तो पता चलता है कि दोनों एक-दूसरे को ‘भइया’ कहकर पुकारते हैं -किशोरी लाल, प्रियंका गांधी के लिए ‘भइया जी’ हैं तो प्रियंका उन्हें ‘किशोरी भइया’ कहती हैं। किशोरी लाल बताते हैं, “मैं हमेशा उन्हें भइया जी कहता आया हूं। जब भी कोई संदेश भेजता हूं तो उन्हें भइया जी कहकर ही संबोधित करता हूं और वो मुझे किशोरी भइया कहती हैं। दरअसल, 1999 के चुनावों के दौरान जब वे सोनिया गांधी जी के साथ अमेठी आई थीं, तब मैंने एसपीजी से पूछा कि प्रियंका जी को कैसे संबोधित करें। उन्होंने बताया कि वह हमें हमेशा भइया जी कहती हैं, इसलिए हम भी उन्हें भइया जी कहने लगे, हमें लगा उन्हें यही पसंद है। बस तभी से मैंने उन्हें हमेशा भइया जी कहा है।” पिछले साल चुनाव प्रचार के दौरान जो एक तस्वीर सबसे ज़्यादा वायरल हुई, वह थी प्रियंका गांधी और किशोरी लाल का साथ भोजन करना।
कांग्रेस की अमेठी में जीत न केवल पार्टी के लिए, बल्कि किशोरी लाल के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि रही है, खासकर तब जब संसदीय क्षेत्र के बाहर वे लगभग अज्ञात थे। सच तो यह है कि यदि उन्होंने स्मृति ईरानी जैसी चर्चित नेता को नहीं हराया होता तो शायद वे सुर्खियों में भी न आते। सभी मानकों पर देखें तो स्मृति ईरानी एक प्रभावशाली नेता हैं, उन्हें 2014 में स्वयं नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्री के रूप में चुना था। इससे पहले वे दोनों सदनों की सांसद रह चुकी हैं। 2019 में जब स्मृति ईरानी ने अमेठी में राहुल गांधी को उनके ही गढ़ में पराजित किया तब वह सुर्खियों में छा गईं। तेज़-तर्रार, मुखर और आक्रामक तेवरों वाली ईरानी राजनीति में वह महिला थीं जिन पर सबकी नज़र थी लेकिन पिछले साल परिस्थितियां बदल गईं, जब अमेठी में उन्हें किशोरी लाल शर्मा ने हराया, वही व्यक्ति जिसे उन्होंने कभी “गांधी परिवार का सेवक” कहकर खारिज कर दिया था। इस हार के बाद उनका राजनीतिक ग्राफ थम सा गया। उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली और इधर-उधर कुछ मामूली ज़िम्मेदारियां ही सौंपी गईं। सीधे शब्दों में कहें तो वे राजनीतिक रूप से हाशिये पर चली गईं।
मगर ईरानी, ईरानी हैं| न तो वे समय नष्ट करने वालों में हैं, न ही किसी के सहारे की मोहताज। भाजपा के प्रति उनकी निष्ठा निर्विवाद है और उनके अनुसार वे पार्टी की हर ज़रूरत के लिए हमेशा तैयार रहती हैं लेकिन उनकी पहचान यही रही है कि उन्होंने खुद को समय-समय पर नए रूप में ढाला है। राजनीति में आने से पहले वे एक जाना-पहचाना चेहरा थीं, एक ऐसी शख्सियत जिसे देश के ज़्यादातर लोग पहचानते थे। जिन्हें यह जानकारी नहीं है, उनके लिए बता दें कि स्मृति ईरानी एकता कपूर के लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिक ‘सास भी कभी बहू थी’ की मुख्य पात्र ‘तुलसी विरानी’ के रूप में जानी जाती थीं। यह धारावाहिक वर्षों तक भारत के घर-घर में देखा गया और ‘तुलसी’ हर परिवार का हिस्सा बन गईं। दरअसल, उन्हें ‘तुलसी’ की छवि से बाहर निकल कर ‘स्मृति’ के रूप में स्थापित होने में कई साल लग गए।
करीब दो दशक लंबे राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने के बाद अब स्मृति ने फिर से अभिनय की ओर रुख किया है और वह भी उसी धारावाहिक के नए संस्करण के साथ जिसने उन्हें घर-घर पहुंचाया था। 2000 से 2008 के बीच 1800 से अधिक एपिसोड्स पूरे करने वाले इस शो में अब स्मृति फिर से ‘तुलसी’ की भूमिका निभाते नज़र आएंगी।
इस महीने के अंत तक, ‘तुलसी’ यानी स्मृति एक बार फिर छोटे पर्दे पर लौट रही हैं, अपने अभिनय कौशल को नए रूप में सामने लाने और राजनीतिक छवि को थोड़े समय के लिए पीछे रखने के लिए। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं कि वह राजनीति छोड़ रही हैं। बल्कि, उनके पास समय है और वे उसका बेहतर उपयोग करना चाहती हैं। जैसा कि खुद स्मृति कहती हैं “मैं एक पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ हूं और अंशकालिक अभिनेत्री।” तो जहां प्रियंका गांधी के “किशोरी भइया” संसद में अमेठी की नुमाइंदगी कर रहे हैं, वहीं स्मृति ईरानी एक बार फिर टेलीविजन पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने को तैयार हैं।