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हिन्दी पर नाज है

हिंदी को लेकर लोगों का नजरिया जैसा भी हो हम टिप्पणी नहीं करना चाहते परंतु एक बात कहना चाहती हूं कि हमारे हिंदुस्तान में हिंदी का सम्मान होना चाहिए। अगर अंग्रेजी नहीं आती तो शान से हिंदी बोलनी चाहिए।

12:57 AM May 01, 2022 IST | Kiran Chopra

हिंदी को लेकर लोगों का नजरिया जैसा भी हो हम टिप्पणी नहीं करना चाहते परंतु एक बात कहना चाहती हूं कि हमारे हिंदुस्तान में हिंदी का सम्मान होना चाहिए। अगर अंग्रेजी नहीं आती तो शान से हिंदी बोलनी चाहिए।

हिंदी को लेकर लोगों का नजरिया जैसा भी हो हम टिप्पणी नहीं करना चाहते परंतु एक बात कहना चाहती हूं कि हमारे हिंदुस्तान में हिंदी का सम्मान होना चाहिए। अगर अंग्रेजी नहीं आती तो शान से हिंदी बोलनी चाहिए। हिंदी ने अपने दम पर अनेक लोगों को सैलिब्रिटी बनाया है और अगर आप सैलिब्रिटी बन जाते हैं तो आपको इस हिंदी का सम्मान करना चाहिए।
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पिछले दिनों बॉलीवुड के जाने-माने सितारे अजय देवगन ने देश की मातृभाषा हिंदी को लेकर कन्नड़ के एक स्थापित कलाकार किच्चा सुदीप को हिंदी को ही लेकर एक करारा जवाब दिया। दरअसल किच्चा ने एक मौके पर कह दिया कि हिंदी का अब वह महत्व नहीं रहा। इतना ही नहीं वह काफी आगे बढ़ गए और उन्होंने कहा कि हिंदी अब राष्ट्रीय भाषा नहीं रही। सोशल मीडिया पर उनके इस बयान का लोगों ने विरोध किया परंतु अजय देवगन जो सोशल मीडिया से दूर रहते हैं ने ट्वीटर पर इस कन्नड़ कलाकार को टैग करते हुए लिखा कि अगर आप कहते हैं कि हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है तो आप अपनी मातृभाषा की फिल्मों को हिंदी में डब करके क्यों रिलीज करते हैं। देवगन ने आगे कहा कि हिंदी मातृभाषा थी और हमेशा रहेगी। बात यही खत्म हो जाती है हालांकि किच्चा ने इसके बाद अपनी सफाई दी है। 
हमारा मानना है कि हिंदी को लेकर राष्ट्रीय सम्मान जो उसे मिलता रहा है वह मिलता रहेगा लेकिन हमें अपनी इस मातृभाषा को लेकर विवादों से बचना ही चाहिए और उसके महत्व को लेकर कोई कितना भी बड़ा स्टार क्यों न हो उसे बेमतलब टिप्पणियों से बचना चाहिए। इस मुद्दे को छोड़कर अगर हम जमीनी हकीकत पर ध्यान दें तो वह इसलिए जरूरी है कि हिंदी को स्कूली स्तर पर अंग्रेजीकरण से बचाना होगा। छोटी-छोटी शिक्षाप्रद कहानियां आज नजरंदाज की जा रही है। चतुर कौआ या फिर लालची कुत्ते की कहानियां जो कल तक हिंदी में पढ़ाई जाती थी और जो उनकी शिक्षाएं थी उन्हें जीवित रखना बहुत जरूरी है अर्थात जहां चाह वहां राह यह चतुर कौए की कहानी से मिली हुई शिक्षा है। इसी प्रकार लालच बुरी बला है यह शिक्षा हमें लालची कुत्ते की कहानी से मिलती है परंतु पब्लिक स्कूलों में बढ़ती अंग्रेजी की मांग और अंग्रेजी के बढ़ते प्रचलन ने इसे एक अलग स्टैंडर्ड की भाषा बना दिया है। अंग्रेजी ऊंचे स्टैंडर्ड से जोड़कर देखी जाने लगी है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि हिंदी को नजरंदाज कर दिया जाए।
कई ऐसे देश हैं जहां आज भी किसी न किसी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। इंग्लिश विश्व की एक कॉमन भाषा जरूर है लेकिन हमारा मानना है कि पूरी दुनिया में हिंदी को महत्व दिया जाना चाहिए। चाहे स्वामी विवेकानंद हों या फिर पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी हों उन्होंने यूएनओ तक हिंदी में अपनी बात कहकर इसका रूतबा बढ़ाया है। चाहे हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी हों। सामान्य जीवन में हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। 
आज हिंदी का तेजी से अंग्रेजीकरण हो रहा है। अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी से अंग्रेजी का चलन घट रहा है। कभी यह दसवीं-बारहवीं में इंग्लिश के विषय में स्कोरिंग मामला हुआ करता था। समय के साथ चीजें बदलती हैं। हमारा मानना यही है कि बच्चों को हिंदी का एक आधार जरूर मिलना चाहिए। हम अंग्रेजी के लिए कोई बुरी बात या दुर्भावना नहीं रख रहे लेकिन यह सच है कि शिक्षा के क्षेत्र में ज्यादा तड़क-भड़क वाले पब्ल्कि स्कूलों ने अपने आपको ऊंचे स्टैंडर्ड में रखते हुए बड़ी शान से अपने यहां यह घोषणा कर रखी है कि मीडियम इंग्लिश ही अच्छा है।
कृपया अपने बच्चों को भी घर पर हिंदी न बोलने दे और केवल इंग्लिश में बात करें। केजी से लेकर नर्सरी और प्राइमरी तक बच्चों को ए, बी, सी, डी का इंग्लिश ज्ञान दिया जा रहा है जो बुरी बात नहीं है परंतु हिंदी का वह ज्ञान अ, आ, इ, ई, उ, ऊ या क, ख, ग से जुड़ा है उसे नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसे सरकारी स्कूलों तक सीमित माना जा रहा है। हिंदी-इंग्लिश को लेकर सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में एक बड़ा भेद समाज में पैदा हुआ दिख रहा है। हर भाषा एक समान है उसका सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे देश में अलग-अलग राज्य, अलग भाषाएं, अलग-अलग संस्कृतियां और अलग-अलग बोलियां हैं। हर राज्य की अपनी भाषा है लेकिन यह सच है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है और यह सम्मान की हकदार है। किसी भी सेलिब्रिटी को या किसी भी बड़ी हस्ती को इसके बारे में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है। इस हिंदी ने कितने ही लोगों को स्टार बना दिया है।
हिंदी में जो अभिव्यक्ति दी जा सकती है वह किसी और भाषा में नहीं दी जा सकती, यही वजह है कि हिंदी के मुहावरे और लौकोकतियां आज भी बहुत वजनदार और प्रासांगिक हैं। कबीर, रहीम, तुलसीदास जैसे लेखकों द्वारा लिखे दोहों, चौपाईयों और सौरठों पर इंग्लिश में काम हो रहा है, रिसर्च चल रहा है यह सब हिंदी का सम्मान ही है।  मुझे बहुत ही अजीब लगता है जब कुछ लोग शान से कहते हैं मुझे ​िहन्दी बोलनी नहीं आती। अरे हिन्दी मां बोली भाषा है, जो कहता है मुझे हिन्दी बोलने में मुश्किल आती है बड़ी शर्म की बात है। हम हिंदुस्तानी हैं और इस हिंदी पर नाज था, है और रहेगा।
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