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आपदा में देवदूत बने पंजाबी

04:00 AM Sep 07, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

जीवन देने वाला पानी जब विकराल रूप धारण कर लेता है तो कितना भयानक और विनाशकारी हो जाता है, इस बार मानसून की वर्षा से पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में तबाही के मंजर देखने को मिल रहे हैं। लोग पानी के आवेग से डरने लगे हैं। पंजाब में दशकों बाद पानी का जलजला आया है। 1988 के बाद आई बाढ़ से राज्य के सभी​ जिले जलमग्न हो चुके हैं। रावी, सतलुज, ब्यास समेत सभी नदियां और नहरें उफान पर रहीं जिससे लाखों एकड़ भूमि की फसल बह गई है। 45 मौतें हो चुकी हैं और बड़ी संख्या में पशुधन की बर्बादी हो चुकी है। हजारों लोग अस्थाई डेरों में शरण लिए हुए हैं। इस संकट की घड़ी में पंजाब के लोगों को अपनों का साथ मिल रहा है। इतिहास हमें बताता है कि अतीत में तमाम चुनौतियों के बावजूद पंजाब एक गतिशील और विकासशील स्थल बना रहा है। विविध सामाजिक और धा​िर्मक समूह निरंतर संवाद करते रहते हैं।
पंजाबियत वास्तव में रंगों और रूपों का एक समूह है। सिखों, हिन्दुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों की साझी विरासत है जो सिख गुरुओं, हिन्दुओं के विचार दर्शन आैर सूफियों की उदारता से धर्मनिरपेक्ष भावना के बीच सदियों के भाईचारे से विकसित हुई है। देश विभाजन की त्रासदी के बाद भी पंजाब मेहनतकश लोगों के चलते जल्दी ही उबर आया था। पंजाब ने दो दशक तक आतंकवाद का दंश सहा, फिर भी भाईचारा कायम रहा। व्यवस्थागत विफलताओं के बावजूद पंजाब ने देश की हरित क्रांति में बड़ी भूमिका निभाई। पंजाब में आई बाढ़ में जिस तरह से पंजाब में फिल्म उद्योग, राज्य के लोकप्रिय गायकों, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, स्वयंसेवी संगठनों, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ग्रामीण स्तर पर धा​िर्मक एवं सामाजिक संगठनों ने लोगों की मदद की है, वह सराहनीय तो है ही, बल्कि अनुकरणीय है।
पंजाबी फिल्म उद्योग से जुड़े अभिनेताओं और गायकों ने संकल्प लिया है कि पानी उतरने के बाद भी वे पीडि़तों की मदद करते रहेंगे, जब तक पीडि़तों का जनजीवन पटरी पर नहीं आता। कई अभिनेताओं ने गांव गाेद ले लिए हैं। मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े पंजाबी मूल के अभिनेता भी बढ़-चढ़कर आगे आ रहे हैं। दलजीत दोसांझ, सोनू सूद, मनकीरत औलख, हर्फ चीमा, अक्षय कुमार, रणवीर हुड्डा आैर अन्य सभी न केवल धन से बल्कि लोगों में कई आशाएं जगाने का काम भी कर रहे हैं। जगह-जगह लंगर लगा दिए गए हैं, बाढ़ पीड़ितों को दवाइयां, पानी और जरूरत की सामग्री बांटी जा रही है। पंजाब का हर नागरिक इस समय देवदूत बना हुआ है।
पंजाब में ‘चढ़दी कलां’ शब्द काफी प्रचलित है। इस शब्द का हिन्दी अर्थ है उत्साह, आशावाद और शाश्वत, लचीलेपन की मानसिक स्थिति बनाए रखना। चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों हमेशा सकारात्मक बने रहना। यह सिख धर्म का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों के बावजूद ईश्वर की इच्छा (भाणा) स्वीकार करना और उत्साही दृष्टिकोण से आगे बढ़ना है। चढ़दी कलां का अर्थ सदैव प्रगतिशील, विपरीत परिस्थितियों में ही आत्मबल बनाए रखना है।
आपदा में भगवंत मान सरकार, केन्द्र सरकार भी अपना काम कर रही है। हर राजनीतिक दल भी लोगों की सहायता में जुटे हुए हैं। लोगों को सरकारों से काफी उम्मीद है कि केन्द्र भरपूर ढंग से सहायता करेगा और वे पुनः अपने पांवों पर खड़े हो जाएंगे। एनडीआरएफ और अन्य बलों के जवान देवदूत बने हुए हैं। सरकारें तो अपनी गति से काम करेंगी ही लेकिन पंजाबियों ने स्वयं जिस तरह से मदद का हाथ बढ़ाया है उससे पंजाब आघात सहकर भी उबर जाएगा। यही कारण है कि सिख अरदास के दौरान कहते हैं-‘‘नानक नाम चढ़दी कलां, तेरे भाणे सरबत्त दा भला।’’ अर्थात नानक नाम परम चेतना है और आपकी दया से हम सभी की भलाई की कामना करते हैं। इस संकट की घड़ी में उबरने के लिए सभी को राजनीतिक मतभेदों को किनारे रखकर काम करना होगा। बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास, किसानों की मदद, शीघ्र जल निकासी की व्यवस्था और हर बाधा को दूर करना प्रशासन का काम है। एक बात पूरी दुनिया में साबित हो चुकी है कि पंजाबियत की भावना ​िजंदा है और ​िजंदा रहेगी।

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