For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

महुआ को राहत का सवाल?

02:36 AM Jan 05, 2024 IST | Aditya Chopra
महुआ को राहत का सवाल

पूर्व सांसद सुश्री महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता संसद की ही आचार समिति द्वारा रद्द किये जाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें कोई फौरी राहत देने से इन्कार करते हुए मामले की सुनवाई मार्च महीने तक टाल दी है और कहा है कि यह मामला बहुत उलझा हुआ व संवैधानिक पेचीदगियों से भरा हुआ है। यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि यह मामला कोई साधारण मामला नहीं है क्योंकि संसद के विशेषाधिकार और न्यायिक समीक्षा का सवाल है। बेशक आचार समिति ने महुआ की लोकसभा सदस्यता उनके निजी लाॅग-इन पासवर्ड के किसी एेसे दूसरे व्यक्ति को देने पर की है जिसका संसद से कोई ताल्लुक नहीं है मगर विचारणीय प्रश्न यह है कि यह कृत्य अनैतिक व गैर कानूनी तो है ही। आचार समिति ने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जोड़ दिया जो उसका अपना नजरिया और निष्कर्ष है। महुआ लोकसभा से अपने निष्कासन को लेकर राहत की अपेक्षा में सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गई हैं और चाहती हैं कि न्यायालय उनके मामले को संविधान की कसौटी पर कस कर उनके साथ न्याय करे परन्तु न्याय केवल संवैधानिक प्रावधानों और उनसे उपजे हुए इलाज के आधार पर ही हो सकता है अतः सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी पूरी तरह तार्किक और परिस्थिति मूलक है।
महुआ पर उनके पुराने मित्र जय अनन्त देहादराय ने भाजपा के लोकसभा सांसद निशिकान्त दुबे की मार्फत आरोप लगाया था कि उन्होंने उद्योगपति दर्शन हीरानन्दानी को अपना सांसद का लाॅग-इन पासवर्ड दिया जिसकी मार्फत हीरानन्दानी ने उनके इंटरनेट खाते से संसद में सवाल पूछे। इन सवालों को लोकसभा में महुआ ने ही उठाकर औपचारिकता निभाई। महुआ की व्यक्तिगत छवि बेशक विदुषी महिला की है मगर उनसे भारी चूक तो हुई है जिसे उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया। देहादराय ने अपने आरोपों में यह भी कहा है कि संसद में सवाल पूछने के लिए उन्होंने दर्शन हीरानन्दानी से कुछ उपहार आदि व धन की प्राप्ति भी की। हालांकि इन आरोपों की आचार समिति के सामने कोई पुष्टि नहीं हो सकी और उसने इनकी जांच सरकार की किसी जांच एजेंसी से कराने की सिफारिश की किन्तु वह समिति के सामने लाॅग-इन पासवर्ड मामले में दोषी तो सिद्ध हो ही गईं। इसे समिति ने अपराध के दर्जे में रखते हुए उनकी संसद सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की। इसकी औपचारिकता संसद के पिछले सत्र में पूरी कर दी गई और जिससे वह संसद से बाहर हो गईं।
अब वर्तमान लोकसभा का पांच वर्ष का कार्यकाल मई महीने में पूरा हो जायेगा और इससे पहले इसके चुनाव होंगे। इस बीच लोकसभा का बजट सत्र बुलाया जायेगा। जाहिर है इस सत्र में वह भाग नहीं ले सकेंगी लेकिन चुनाव में खड़े होने के लिए उन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। हालांकि हीरानन्दानी से प्रश्न के बदले धन व उपहार लेने के मामले में सीबीआई पृथक से जांच कर रही है परन्तु फिलहाल देश में कोई एेसा कानून नहीं है कि उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जा सके। इससे महुआ को जनता की अदालत में जाने का रास्ता मिलेगा। सर्वोच्च न्यायालय को मूल रूप से यह विचार करना है कि क्या महुआ का अपराध इतना बड़ा है कि उनकी संसद सदस्यता ही रद्द कर दी जाये? लेकिन इसके साथ यह भी संवैधानिक प्रश्न जुड़ा हुआ है कि क्या संसद के कार्यक्षेत्र और विशेषाधिकारों में सर्वोच्च न्यायालय दखल दे सकता है? इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का पिछला आदेश बहुत ही स्पष्ट है जो एक नजीर के रूप में इस मामले में सामने रहेगा। यह आदेश 2005 में धन के बदले संसद में प्रश्न पूछने के लिए दोषी पाये गये 11 सांसदों के मामले में 2007 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया था। इन सभी 11 सांसदों की सदस्यता संसद की समिति ने ही रद्द कर दी थी। जिसके खिलाफ एक सांसद सर्वोच्च न्यायालय में गया था। तब न्यायमूर्तियों ने आदेश दिया था कि संसद से सदस्यों के निष्कासन का विशेषाधिकार लोकसभा अध्यक्ष व राज्यसभा के सभापति के पास है। यह अधिकार संसद के विशेषाधिकारों का ही हिस्सा है। अतः बहुत स्पष्ट है कि महुआ संसद के इस विशेषाधिकार को चुनौती नहीं दे सकती है। मगर महुआ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकसभा के सचिव को नोटिस भेजा है। यह इस बात का संकेत है कि न्यायालय संसदीय प्रणाली के पेंचों से अवगत होना चाहता है और महुआ की शिकायत की तह तक पहुंचना चाहता है परन्तु पुरानी नजीर के अनुसार वह संसद के प्रक्रिया सम्बन्धी मामलों में दखल नहीं देगा क्योंकि वे विशेषाधिकार के दायरे में आते हैं।
हमारे संविधान में संसद हालांकि सार्वभौम है परन्तु उसकी सकल कार्यवाही संविधान के अनुरूप ही होनी चाहिए और उसके द्वारा बनाये गये कानून संविधान की कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरने चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय इसी पक्ष की समीक्षा करने के लिए स्वतन्त्र रहता है। यही वजह है कि सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा बनाये गये कानूनों को भी कभी- कभी अवैध या असंवैधानिक करार दे देता है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×