सवाल...वहीं का वहीं...आखिर कब तक
भारत की नारी ने देश और दुनिया में जितनी ऊंची पहचान बनाई है उसका उदाहरण अन्यत्र नहीं मिल सकता लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू बहुत ही चौंकाने वाला है। अभी जो हाथरस में हुआ वो दिल दहला देने वाली घटना है। उसे देखकर सवाल वहीं का वहीं पैदा होता है, आखिर कब तक…?
01:23 AM Oct 04, 2020 IST | Kiran Chopra
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भारत की नारी ने देश और दुनिया में जितनी ऊंची पहचान बनाई है उसका उदाहरण अन्यत्र नहीं मिल सकता लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू बहुत ही चौंकाने वाला है। अभी जो हाथरस में हुआ वो दिल दहला देने वाली घटना है। उसे देखकर सवाल वहीं का वहीं पैदा होता है, आखिर कब तक…?
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भारत आजादी के बाद से ही बड़े राजनीतिक आंदोलनों का गवाह रहा है लेकिन आजादी के बाद कोई ऐसा सामाजिक आंदोलन सामने नहीं आया जिससे देश को नई दिशा मिल सके। आजादी से पहले समाज सुधारक राजा राम मोहन राय, महर्षि अरविन्द, ऋषि दयानंद ने बाल विवाह, सती प्रथा, बहु विवाह प्रथा और धार्मिक पाखंडों के खिलाफ सशक्त सामाजिक आंदोलन चलाए, जिसके चलते हिन्दू समाज सामाजिक विकृतियों से मुक्ति पा सका। स्वामी विवेकानंद का जीवन हमारे लिए एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। श्रीराम का चरित्र हमारे रोम-रोम में है लेकिन भारत में कई ऐसी घटनाएं सामने आ जाती हैं, जिससे पता चलता है कि समाज ने रामायण को पढ़ा जरूर लेकिन जीवन में नहीं उतारा। सबसे बड़ा सवाल यही है कि भारत में महिलाओं के प्रति अपराधों को कैसे रोका जाए। समाज की सोच को पवित्र कैसे बनाया जाए। पश्चिमी संस्कृति के लगातार हमलों के बीच इंटरनैट और स्मार्ट फोन ने आज बहुत कुछ खोलकर रख दिया है। अब सवाल यह है कि बच्चों को अच्छे संस्कार कहां से मिलें। इसके लिए हमें सामाजिक आंदोलन की जरूरत है तो दूसरी तरफ समाज को खुद भी अच्छे संस्कार पैदा करने के लिए आगे आना चाहिए। आज हमें उन समाज सुधारकों की जरूरत है जो प्राइमरी एजुकेशन से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों तक महिलाओं के सम्मान के संस्कार जागृत करें लेकिन असल काम परिवार, समुदाय और नागरिक समाज को भी करना होगा। हमें अपने बच्चों की जीवनशैली और दिनचर्या पर भी नजर रखते हुए यह समझने की जरूरत है कि हमारे बच्चे क्या पढ़ते हैं, क्या देखते हैं, क्या बच्चे किसी व्यक्ति का शिकार तो नहीं हैं, हमारे आसपास का वातावरण हमने कैसे बनाया है। हमें खुद और परिवारों को इंटरनेट और सोशल मीडिया इत्यदि का विवेकपूर्ण और सुरक्षित ढंग से उपयोग सीखना होगा। शिक्षा को नैतिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाए। केवल कड़े कानूनों से समाज नहीं सुधर सकता, देश बचेगा तो संस्कार और नैतिक मूल्य से बचेंगे। जब तक हम महिलाओं के सम्मान की संस्कृति नहीं सीखते तब तक यह समस्या बनी ही रहेगी।
परन्तु सवाल वही है और वहीं का वहीं है कि आखिर कब तक, जब भी किसी लड़की के साथ दिल दहला देने वाला वाक्य होगा वही बातें दोहराई जाएंगी, कोई राजनीतिक रंग देगा, कोई कैंडल मार्च में हिस्सा लेगा, कोई धरना देगा। खबर टीवी, अखबारों में सुर्खियां बनकर रह जाएगी। थोड़ी देर शांति होगी, फिर समस्या वहीं की वहीं। कभी छोटी बच्ची, कहीं युवती, कहीं बुजुर्ग महिला। पिछले दिनों खबर थी कि 90 साल की महिला से रेप। समझ नहीं आ रहा था उसको रोऊं या उसको पैदा करने वाली मां को रोऊं। हर घटना के बाद रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दिल चीर जाता है, बहुत गुस्सा आता है और दिल चाहता ऐसे लोगों को उसी समय फांसी हो जाए। फिर समय के साथ सभी लोग अपनी समस्याओं में व्यस्त हो जाते हैं।
ऐसे कुछ सख्त कानून बन जाएं कि कोई व्यक्ति ऐसा करने से पहले खुद कांप जाए। कुल मिलाकर जिस देश में नारी को दुर्गा और भवानी माना जाता रहा है और देश की बेटी के सम्मान में खुद पीएम मोदी जैसे महान व्यक्ति जुटे हुए हों वहां अगर निर्भया कांड की वापसी होती है तो उम्मीद भी मोदी जी से ही लगाई जाएगी जिन्होंने बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का नारा दिया है। समाज में हैवानियत बर्दाश्त नहीं की जा सकती। मोदी जी ने सीएम योगी को इस मामले में कड़ा एक्शन लेने की बात कही है। बलात्कारियों का दैत्यों की तरह संहार होना चाहिए, यह समय की मांग है और पुलिस का जो भी एक्शन है वह अगर किसी की मौत पर परिजनों से अंत्येष्टि का अधिकार छीनती है तो इसकी न सिर्फ जांच होनी चाहिए बल्कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही बलात्कारियों को फांसी पर लटकाए जाने की बात का भी सम्मान किया जाना चाहिए। अगर राष्ट्रीय स्तर पर नारी के प्रति बढ़ते अपराधों की सूची बनाएं जो तो रिकार्ड में यौन शोषण से जुड़े मामलों की संख्या 50 लाख से ज्यादा है, जिसमें रेप भी शामिल है। समय आ गया है कि अब रेप जैसे अपराध और रैपिस्ट जैसे अपराधियों का खात्मा होना चाहिए।
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