जम्मू-कश्मीर: शहीद दिवस पर उमर अब्दुल्ला को नमाज़ पढ़ने से रोका गया, प्रशासनिक कार्रवाई पर उठे सवाल
श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में शहीद दिवस (13 जुलाई) के अवसर पर उत्पन्न हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस दिन घाटी में कई नेताओं को नजरबंद किया गया, जबकि कुछ को गिरफ्तार भी किया गया। इन्हीं घटनाओं के बीच पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को श्रीनगर स्थित ऐतिहासिक मज़ार-ए-शुहदा पर फातिहा पढ़ने से कथित रूप से रोका गया, जिसके चलते तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई।
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक वीडियो साझा करते हुए दावा किया कि उन्हें नमाज़ पढ़ने से रोकने के प्रयास में पुलिस ने शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। उन्होंने आरोप लगाया कि, “मैं कोई गैरकानूनी काम नहीं कर रहा था। इन कानून के रक्षकों को यह स्पष्ट करना होगा कि किस कानून के तहत हमें फातिहा पढ़ने से रोका गया। यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।” उमर अब्दुल्ला के अनुसार, जब वे मज़ार-ए-शुहदा पर पहुंचे तो गेट बंद था। उन्होंने चारदीवारी फांदकर अंदर जाने का निर्णय लिया, जिससे पुलिसकर्मियों और उनके बीच झड़प की स्थिति बन गई। उन्होंने दावा किया कि प्रशासन ने न सिर्फ़ उन्हें बल्कि अन्य विपक्षी नेताओं को भी उनके घरों में नजरबंद किया, ताकि वे शहीद दिवस पर कार्यक्रम में हिस्सा न ले सकें।
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"रात 12-1 बजे तक मेरे घर के बाहर बंकर था"
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “मैंने जब प्रशासन को बताया कि मैं मज़ार जाना चाहता हूं, तो कुछ ही मिनटों में मेरे घर के बाहर बंकर लगा दिया गया, जो देर रात तक हटाया नहीं गया। आज मैंने उन्हें बताए बिना निकलने का फैसला किया, लेकिन फिर भी मुझे रोका गया। यह बेशर्मी की पराकाष्ठा है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने झंडा फाड़ने की कोशिश की, लेकिन वह और उनके समर्थक मज़ार तक पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उमर अब्दुल्ला ने कहा, “हम किसी के गुलाम नहीं हैं। हम सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर के लोगों के सेवक हैं। वे हमें 13 जुलाई को रोक सकते हैं, लेकिन हम जब चाहें तब यहां आएंगे और शहीदों को याद करेंगे।”
प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल
इस पूरी घटना को लेकर अब तक प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। विपक्षी दलों और सिविल सोसायटी संगठनों ने इस घटना को लोकतांत्रिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। शहीद दिवस पर मज़ार-ए-शुहदा पर फातिहा पढ़ने की परंपरा जम्मू-कश्मीर में दशकों से निभाई जाती रही है। इस दिन 1931 में डोगरा शासन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान मारे गए 22 कश्मीरी लोगों की याद में श्रद्धांजलि दी जाती है।