सीएम की रेस, ऐसे चूक गए प्रवेश
भाजपा के एक प्रमुख युवा जाट नेता प्रवेश वर्मा इस बार सीएम बनते-बनते कैसे…
भाजपा के एक प्रमुख युवा जाट नेता प्रवेश वर्मा इस बार सीएम बनते-बनते कैसे रह गए, यह कहानी निहायत दिलचस्प है। दरअसल, प्रवेश दिल्ली के पुराने भगवा नेताओं में शुमार होते हैं, उन्हें अपने पिता स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा की विरासत भी हासिल है, इस नाते भी भाजपा के कई धुरंधर नेताओं से उनका पुराना परिचय है। चुनांचे जब पार्टी शीर्ष दिल्ली के सीएम का नाम खंगाल रहा था तो प्रवेश ने कई केंद्रीय मंत्रियों मसलन हरदीप पुरी, एस. जयशंकर आदि के मार्फत अपना नाम ऊपर पहुंचाना चाहा, पर कहीं न कहीं उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। राजस्थान, हरियाणा व पश्चिमी यूपी के कई प्रमुख जाट नेता प्रवेश के नाम की पैरवी के लिए अमित शाह से मिलने का टाइम मांग रहे थे, पर शाह के यहां से उन्हें बुलावा ही नहीं आया।
जब प्रवेश वर्मा भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने पहुंचे, तो कहते हैं नड्डा से इस बात को लेकर उनसे नाराज़गी जताई कि ‘उनकी पत्नी व बेटे उनको यानी प्रवेश को लेकर मीडिया में इंटरव्यू दे रहे हैं, यह भाजपा की परंपरा नहीं है।’ सूत्रों की मानें तो सबसे हद तो प्रवेश के मीडिया सलाहकारों ने कर दी, उन्होंने बकायदा दिल्ली भाजपा कवर कर रहे पत्रकारों का एक व्हाट्सऐप्प ग्रुप बना लिया जिस पर वे अपनी ओर से जानकारियां मुहैया कराते थे। इसी व्हाट्सऐप्प ग्रुप का कमाल था कि मीडिया वालों ने पहले ही ऐलान कर दिया कि ‘रेखा गुप्ता दिल्ली की नई सीएम होंगी और प्रवेश डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे।’ लेकिन जब शपथ लेने की बारी आई तो प्रवेश को पता चला कि उन्हें बस अदद मंत्री पद से ही संतोष करना पड़ेगा।
जब पीएम ने किया शुभ मुहूर्त का इंतज़ार
‘हम भी तो थे तेरी गली में बिखराने को क्या खूब यह हवा आई है
खूशबुओं सा बिखर गए हम तो लाज इन्हें भी आई है’
लोगों की भीड़ से खचाखच भरा दिल्ली का रामलीला मैदान। भगवा खेमे में एक अभूतपूर्व उत्साह का माहौल, और हो भी क्यों न जब 27 वर्षों के लंबे वनवास के बाद दिल्ली के निज़ाम पर एक बार फिर से भगवा पताका लहराने की शुभ घड़ी जो आई है। ठीक साढ़े बारह बजे मंच पर पीएम मोदी का आगमन होता है, मंच पर मौजूद अन्य लोगों से शिष्टाचार गत अभिवादन के बाद मोदी दिल्ली के उपराज्यपाल के साथ लगी अपनी कुर्सी पर विराजमान हो जाते हैं। एलजी हरकत में आते हैं और वे कार्यक्रम के उद्घोषक से राष्ट्रगान शुरू करने को कहते हैं, पर यह क्या पीएम उन्हें रोक देते हैं और अपनी कलाई में बंधी घड़ी को देखते हुए उनसे 5 मिनट का इंतज़ार करने को कहते हैं। फिर पीएम अपनी जगह से उठ कर मंच पर आसीन अन्य गणमान्य लोगों से गर्मजोशी से मिलने लगते हैं।
रास्ते में चंद्रबाबू नायडू आ जाते हैं, उनसे जरूरी अभिवादन के बाद पीएम लपक कर उनके साथ बैठे पवन कल्याण से बेहद आत्मीय तरीके से मिलते हैं। पांच मिनट के उपरांत शपथ ग्रहण समारोह आरंभ होता है। जब समारोह समाप्त होता है तो पीएम मंच से उतरने लगते हैं, दिल्ली की नवनियुक्त मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता हाथ जोड़े मंच पर ही एक ओर खड़ी रहती हैं कि अचानक से उन्हें अमित शाह और जेपी नड्डा इशारा करते हैं कि प्रोटोकॉल के तहत पीएम को ‘सीऑफ’ तो उन्हें ही करना है। यह सुनते ही माननीय मुख्यमंत्री तेज कदमों से पीएम के पीछे-पीछे भागती हैं।
दरअसल, पहली बार विधायक से सीएम की कुर्सी तक पहुंची रेखा गुप्ता को प्रोटोकॉल की सम्यक जानकारी देने वाले शख्स की कमी उन्हें जरूर खल रही होगी। हां, एक बात और जब मंच से नीचे उतरने के लिए पीएम चंद्रबाबू नायडू के सामने से गुजर रहे थे तो उन्होंने उन्हें देख कर भी अनदेखा कर दिया, इस बात के जरूर ही कोई सियासी निहितार्थ निकाले जा सकते हैं।
क्या शिंदे को केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा?
महाराष्ट्र की महायुति राजनीति में तूफान से पहले वाला सन्नाटा पसरा हुआ है। राज्य के उप- मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और यहां के भगवा सीएम देवेंद्र फडणवीस के रिश्तों के दरम्यान एक असहज़ सी खामोशी व्याप्त है। अभी कल शिंदे ने खम्म ठोक कर कह भी दिया कि ‘उन्हें कोई हल्के में लेने की गलती न करें।’ पर कहते हैं भाजपा शीर्ष के दखल के बाद इससे कुछ रोज पहले ही फडणवीस और शिंदे ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा था-यह सरकार अपने 5 साल पूरे करेगी।
शिंदे ने तो यह भी कहा था कि ‘वे सरकार में बेहद खुश हैं।’ इसके बाद दिल्ली से शिंदे को यह कहा गया कि ‘एक बार वे दिल्ली आकर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिल लें।’ पर शिंदे दिल्ली नहीं गए, इसके बजाए उन्होंने अपने सांसद पुत्र श्रीकांत शिंदे को नड्डा से मिलने भेज दिया। कहते हैं अध्यक्ष जी से अपनी बातचीत में श्रीकांत शिंदे ने इस बात पर सहमति जता दी है कि ‘अगर मोदी कैबिनेट में उनके पिता को कोई सम्मानजनक पोर्टफोलियो दिया जाता है तो एकनाथ शिंदे दिल्ली आने को तैयार हैं’, अब आखिरी फैसला तो दिल्ली को ही लेना है।
कांग्रेस में सिर्फ राहुल की चल रही
पिछले सप्ताह कांग्रेस संगठन में एक बड़ा फेरबदल देखने को मिला। कहते हैं संगठन में फेरबदल की कवायद में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पिछले काफी समय से जुटे थे। काफी मशक्कत के बाद उन्होंने अपनी ओर से एक सूची तैयार की जिसमें कांग्रेस के नए महासचिव और राज्य प्रभारियों के नाम दर्ज थे। अब खड़गे इस लिस्ट को लेकर राहुल के पास जाना चाहते थे, उनकी इच्छा थी कि ‘वे राहुल के साथ बैठ कर एक-एक नाम पर विस्तार से चर्चा करें।’ पर यह मुमकिन नहीं हो पाया, राहुल ने खड़गे से अपनी अति व्यस्तताओं का हवाला देते हुए कहा कि ‘मिलना अभी संभव नहीं हो पाएगा, पर वे लिस्ट भेज दें ताकि राहुल अपनी राय से अवगत करा सकें।’
राहुल के कहे अनुसार खड़गे ने अपनी लिस्ट राहुल को भेज दी, राहुल ने पेन से इस लिस्ट के कुछ नाम काट दिए और अपनी ओर से 4-5 लोगों के नाम जोड़ दिए। साथ ही खड़गे को यह हिदायत भी दे डाली कि एक बार वे यह लिस्ट प्रियंका को भी दिखा लें। कहते हैं फिर यह लिस्ट संशोधित कर प्रियंका तक पहुंचा दी गई, प्रियंका ने भी अपनी ओर से अजय कुमार लल्लू जैसे एक-दो नाम एडजेस्ट कर दिए। बाद में इसी लिस्ट को फिर सार्वजनिक कर दिया गया।
मिल्कीपुर की हार से खिन्न हैं अखिलेश
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव मिल्कीपुर उपचुनाव में पार्टी की इतनी बड़ी पराजय से एकदम सकते में हैं। उन्हें पार्टी से यहां इतने खराब प्रदर्शन की उम्मीद कतई नहीं थी। सो, हाल में संपन्न हुई पार्टी कोर कमेटी की बैठक में मौजूद नेताओं पर अखिलेश फट पड़े, ‘जो हाल मीरापुर का था, वही हाल मिल्कीपुर में हुआ, जबकि हम मिल्कीपुर सीट जीतने की स्थिति में थे। आप लोग जिद कर अपने बच्चों के लिए टिकट तो पा जाते हैं पर उन्हें जिता नहीं पाते। तो क्या अच्छा नहीं होगा कि आप लोग जीत सकने वाले उम्मीदवारों को ऊपर आने दीजिए।’ कहते हैं मिल्कीपुर के लिए अखिलेश के मन में कोई और नाम चल रहा था, पर फैजाबाद के सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने अपने बेटे को टिकट देने की मांग पर ऐसी ज़िद पकड़ ली कि अखिलेश को उनके आगे झुकना पड़ा।
…और अंत में
रेखा गुप्ता को दिल्ली का सीएम बनवाने का श्रेय लूटने की होड़ जारी है, ज्यादातर लोग इसका श्रेय संघ को दे रहे हैं। पर सच पूछिए तो रेखा गुप्ता के नाम का फैसला पूरी तरह पीएम मोदी का फैसला था। वे बखूबी समझते थे कि आज 20 राज्यों में भाजपा व उनके सहयोगियों की सरकार हैं, पर इनमें से एक भी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं है। जबकि भाजपा को विजयी बनाने में महिला वोटरों की सबसे महती भूमिका रहती है। वहीं जाने-अनजाने संघ की छवि कभी महिला समर्थक संगठन की नहीं बन पाई है।
2028 तक 21 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, अगले कुछ वर्षों में 13 राज्यों में चुनाव हैं, जिसमें इसी साल के अंत में बिहार, इसके अगले वर्ष असम, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं। सो, अगर भाजपा को अपनी छवि महिला हितों की मुखर वकालत करने वाली पार्टी की बनानी है तो फिर उसे चाहे दिखाने के लिए ही सही, एक महिला मुख्यमंत्री की दरकार होगी। आने वाले कुछ समय में ‘महिला आरक्षण विधेयक’ भी लागू होने वाला है, उसकी तैयारी भी अभी से शुरू हो जानी चाहिए। सो, मोदी की बड़ी साफ सोच है कि आने वाले जिन राज्यों के चुनाव होंगे वहां महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए दिल्ली की महिला सीएम को ज्यादा से ज्यादा घुमाया जाएगा।