भारत का उदय अपने साथ प्रतिक्रियाएं भी लाएगा : एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि भारत का उदय अपने साथ तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं भी लेकर आएगा और देश के प्रभाव को कम करने तथा उसके हितों को सीमित करने के प्रयास भी किये जाएंगे।
02:17 AM Dec 14, 2020 IST | Shera Rajput
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि भारत का उदय अपने साथ तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं भी लेकर आएगा और देश के प्रभाव को कम करने तथा उसके हितों को सीमित करने के प्रयास भी किये जाएंगे।
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संसद पर हमले की 19वीं बरसी पर विदेश मंत्री ने पाकिस्तान के परोक्ष संदर्भ में कहा कि भारत सीमापार आतंकवाद जैसी “स्थायी समास्याओं” का सामना कर रहा है और आने वाले समय में राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियां अलग होंगी।
दूसरे ‘मनोहर पर्रिकर स्मृति व्याख्यान’ में जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत ने अपने वैश्विक हितों और पहुंच का विस्तार किया है और उसके अपने ‘हार्ड पावर’ (सैन्य और आर्थिक शक्तियों) पर ध्यान केंद्रित करने के लिये स्थितियां अब और अकाट्य हैं।
जयशंकर ने कहा, “उदयमान भारत के सामने आने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियां भी निश्चित रूप से अलग होंगी। एक स्तर पर हमारे राष्ट्रीय सुदृढ़ीकरण और विकास से जुड़ी हमारी समस्याएं बरकरार रहेंगी।”
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उन्होंने कहा, “लंबे समय की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता आज एक पड़ोसी द्वारा सतत तौर पर सीमा पार आतंकवाद के रूप में व्यक्त की जा रही है।”
विदेश मंत्री ने संसद हमले की बरसी का उल्लेख किया और कहा कि “कुछ अन्य मामलों में, आतंकी समूहों की गतिविधियों पर लगातार नजर रखे जाने और उन्हें रोके जाने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा, “दुनिया एक प्रतिस्पर्धात्मक स्थल है और भारत के उदय को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं होंगी। हमारे प्रभाव को कम करने और हमारे हितों को सीमित करने के प्रयास होंगे। इनमें से कुछ प्रतिस्पर्धाएं सीधे सुरक्षा क्षेत्र में हो सकती हैं तो अन्य आर्थिक क्षेत्र, संपर्क और सामाजिक संदर्भों में भी परिलक्षित हो सकती हैं।”
उन्होंने जोर दिया कि विदेश और सैन्य नीतियों में ज्यादा एकरूपता व संमिलन होना चाहिए।
भारत के समक्ष विविध सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि देश राष्ट्रीय अखंडता और एकता को कमजोर करने वाले प्रयासों की अनदेखी नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा, “बेहद कम प्रमुख राष्ट्र हैं जिनकी अब भी उस तरह की अशांत सीमाएं हैं जैसी हमारी हैं। समान रूप से प्रासंगिक एक बेहद अलग चुनौती है जिसका सामना हम वर्षों से कर रहे हैं, वह है एक पड़ोसी द्वारा हम पर थोपा गया तीव्र आतंकवाद। हम अपनी राष्ट्रीय अखंडता और एकता को कमजोर करने की साजिशों की भी उपेक्षा नहीं कर सकते।”
उन्होंने कहा, “अपवाद वाले इन कारकों के अलावा बड़ी सीमाओं और लंबे समुद्री क्षेत्र की दैनिक चुनौतियां भी हैं। ऐसे अनिश्चित माहौल में संचालन करने वाली सरकार की सोच और योजना स्वाभाविक रूप से सख्त सुरक्षा को वरीयता देने वाली होनी चाहिए।”
जयशंकर ने कहा कि “असीमित सैन्य संघर्ष” का युग पीछे छूट सकता है लेकिन सीमित युद्ध और प्रतिरोधी कूटनीति आज भी काफी हद तक जीवन के तथ्य हैं।
भारत के बढ़ते वैश्विक कद के बारे में जयशंकर ने कहा कि देश के “दुनिया के साथ संबंध” तब की तरह नहीं हो सकते जब उसकी रैंकिंग काफी नीचे थी।
उन्होंने कहा, “दुनिया में हमारी हिस्सेदारी निश्चित रूप से ज्यादा हुई है और उसी के अनुरूप हमसे उम्मीदें भी बढ़ी हैं। आसान शब्दों में कहें तो भारत अब ज्यादा तवज्जो रखता है और दुनिया को लेकर हमारा नजरिया उसके सभी परिप्रेक्ष्यों में उसे नजर आना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “हमारे समय के बड़े वैश्विक मुद्दों, चाहे हम जलवायु परिवर्तन की बात करें या व्यापार प्रवाह अथवा स्वास्थ्य चिंता अथवा डाटा सुरक्षा की, भारत की स्थिति अंतिम नतीजों पर ज्यादा प्रभाव डालती है।”
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