W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

राजस्थान निकाय चुनावों का संदेश

स्थानीय निकाय चुनाव भारत के लोकतंत्र के प्रति जनता में जागरूकता पैदा करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हर चुनाव की अपनी अहमियत होती है चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का अथवा स्थानीय निकाय का।

04:07 AM Nov 21, 2019 IST | Ashwini Chopra

स्थानीय निकाय चुनाव भारत के लोकतंत्र के प्रति जनता में जागरूकता पैदा करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हर चुनाव की अपनी अहमियत होती है चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का अथवा स्थानीय निकाय का।

राजस्थान निकाय चुनावों का संदेश
Advertisement
स्थानीय निकाय चुनाव भारत के लोकतंत्र के प्रति जनता में जागरूकता पैदा करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हर चुनाव की अपनी अहमियत होती है चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का अथवा स्थानीय निकाय का।  कोई यह दावा नहीं कर सकता कि इनमें से किसकी अहमियत ज्यादा है। स्थानीय निकाय चुनावों की बात करें तो इसमें जनता और उम्मीदवारों का संबंध बहुत सीधा रहा है। स्थानीय पार्षद ही जनता के बीच सबसे ज्यादा रहते हैं और जनता का काम करते हैं। वे जनता से सीधा संवाद करने की कोशिश करते हैं।
Advertisement
इसमें प्रत्याशियों की सहज उपलब्धता और उनकी कारगुजारी ही मापदंड होती है। जो काम सांसद और विधायक नहीं कर पाते, उन्हें पार्षद कर दिखाते हैं। उनके कार्य सीधे लोगों से जुड़े होते हैं। नालियों, खडंजों और  सड़क का निर्माण, हर घर में पेयजल उपलब्ध कराना, गली-गली में रोशनी की व्यवस्था करना स्थानीय निकायों की ही जिम्मेदारी है। किसी भी पार्टी की जीत का श्रेय उन कर्मठ उम्मीदवारों को जाता है जो जनता के बीच रहकर काम करते हैं।निकाय चुनाव नतीजों के सीमित राजनीतिक महत्व होने के बावजूद कई बार वे राज्य विशेष की राजनीति के साथ-साथ देश की राजनीति की भावी दिशा-दशा का भी सूचक संदेशवाहक होते हैं, क्योंकि यह जनता के रुख से परिचित कराते हैं।
Advertisement
 इसलिए सीमित महत्व के बावजूद उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह भी सही है कि कई बार स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे कुछ ओर  होते हैं और विधानसभा और  लोकसभा के नतीजे कुछ और होते हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि राज्य सरकार में जो पार्टी सत्तारूढ़ होती है, स्थानीय निकाय चुनाव परिणाम भी उसके पक्ष में जाते हैं। यह एक धारणा है कि अगर राज्य में सत्तारूढ़ दल के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन भी उसी दल का होगा तो विकास के लिए  फंड की कोई कमी नहीं रहेगी। राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई थी और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे। ऐसे में उम्मीद थी कि स्थानीय निकाय चुनावों में विधानसभा नतीजों की झलक देखने को​ मिलेगी।
राजस्थान में स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस का दमखम देखने को मिला।  49 नगर निकायों के चुनावों में 20 निकायों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ है जबकि 6 निकायों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है। शेष बचे 23 निकायों में से 6 निकायों में निर्दलीय दोनों दलों पर भारी पड़े हैं, वहीं 18 निकायों में भाजपा और कांग्रेस को​ निर्दलीय व अन्य दलों के जीते हुए पार्षदों का सहयोग लेना होगा। अब निकाय अध्यक्षों के चुनावों के लिए  दोनों दल घेराबंदी के लिए  जुटे हैं। राजस्थान के 195 में से 49 निकाय के चुनाव में 6 नगरपालिकाएं नई थीं। वर्ष 2014 के चुनावों में 36 निकायों में भाजपा सत्तारूढ़ थी जबकि 7 में कांग्रेस का बोर्ड था। इस तरह इस बार के चुनावों में स्थिति पूरी तरह पलट गई और परम्परा अनुसार कांग्रेस को बढ़त मिली।
एक तरह से कांग्रेस को अगले वर्ष जनवरी-फरवरी में होने वाले पंचायत चुनावों से पहले बड़ा बूस्टर डोज मिला है। लोकसभा चुनावों में एकतरफा हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल को राज्य में कांग्रेस सरकार बनने के बाद बल मिला था। नए सिरे से परिसीमन कराया गया और वार्डों की भी संख्या बढ़ी। इसका बड़ा फायदा नगरपालिकाओं में मिला। इसके अलावा चुनाव से पहले आर्थिक आधार पर आरक्षण के नियमों को सरल बनाया गया जिससे शहरी युवा मतदाता को बड़ी राहत मिली। निकाय चुनावों की जिम्मेदारी अशोक गहलोत सरकार के मंत्रियों और स्थानीय नेताओं को सौंपी गई। मुख्यमंत्री गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने निगरानी की। परिणामों से स्पष्ट है कि जनता ने गहलोत सरकार के कामकाज पर संतोष जाहिर किया है।
लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत और पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा इन चुनावों में बड़ी जीत की उम्मीद लगाए बैठी थी। पार्टी नेताओं का मानना था कि शहरी मतदाताओं को ये मुद्दे काफी प्रभावित करते हैं लेकिन परिणामों ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया।इन चुनावों ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि विधानसभा, लोकसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में मुद्दे अलग-अलग होते हैं, हर चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं लड़ा जाना चाहिए। कांग्रेस ने दस माह के सरकार के कामकाज और उपलब्धियों, आ​िर्थक ​पिछड़ों के आरक्षण के प्रमाणपत्र के लिए सम्पत्ति संबंधी प्रावधान को हटाने, आर्थिक मंदी से उत्पन्न स्थितियों को मुद्दा बनाया। कांग्रेस ने ​जनता के मुद्दों को हवा दी, जिसका फायदा उसे चुनावों में मिला।
Advertisement
Author Image

Ashwini Chopra

View all posts

Advertisement
Advertisement
×