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राजनाथः मृदुता से भी मजबूती

रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ऐसे शालीन राजनीतिज्ञ माने जाते हैं जो कटु बात को भी मृदु शब्दों में अभिव्यक्त करके अपने विरोधियों का मन भी जीत लेते हैं।

01:20 AM Sep 21, 2022 IST | Aditya Chopra

रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ऐसे शालीन राजनीतिज्ञ माने जाते हैं जो कटु बात को भी मृदु शब्दों में अभिव्यक्त करके अपने विरोधियों का मन भी जीत लेते हैं।

राजनाथः मृदुता से भी मजबूती
रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ऐसे शालीन राजनीतिज्ञ माने जाते हैं जो कटु बात को भी मृदु शब्दों में अभिव्यक्त करके अपने विरोधियों का मन भी जीत लेते हैं।  उनके ऊपर फिलहाल देश की सीमाओं की सुरक्षा का भार है और वह इस कर्त्तव्य को इस भांति निभा रहे हैं कि चीन जैसे देश को भी अपने पुराने कारनामों के लिए पशेमां होना पड़ रहा है। पिछले ​दिनों एक चैनल पर बातचीत के दौरान श्री राजनाथ सिंह ने बदलते भारत की जो तस्वीर खींची उससे विपक्षी दल के नेतागण भी सहमत हुए बिना नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि आज केन्द्र की मोदी सरकार जो एक रुपया आम जनता की मदद के लिए भेजती है वह पूरा का पूरा एक रुपया ही लाभार्थी को मिलता है जबकि इससे पहले जब स्व. राजीव गांधी प्रधानमन्त्री थे तो उनके अनुसार केन्द्र से भेजे गये एक रुपये की धनराशि में केवल 15 पैसे ही लाभार्थी तक पहुंच पाते थे। इसके लिए उन्होंने स्व. गांधी की आलोचना नहीं की बल्कि यह कहा कि यदि श्री राजीव गांधी आज जीवित होते तो वह बहुत प्रसन्न होते। राजनाथ इस बहाने जो सन्देश देना चाहते थे उन्होंने उसे बहुत ही करीने से दे दिया कि आज की मोदी सरकार का सर्वाधिक जोर देश के सबसे गरीब आदमी को आर्थिक रूप से सशक्त करने का है और इसके लिए अद्यतन टैक्नोलोजी का प्रयोग जन हित को सर्वोपरि रख कर किया जा रहा है।
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 वास्तव में राष्ट्र सर्वोपरि केवल सीमाओं की सुरक्षा से ही नहीं जुड़ा है बल्कि यह आम लोगों को अधिकाधिक सशक्त बनाने से भी जुड़ा हुआ है। जिस राष्ट्र के लोग शक्तिशाली होंगे तो वह राष्ट्र स्वयं ही शक्तिशाली होता चला जायेगा। इसके साथ उन्होंने भारत के विश्व उत्पादन केन्द्र बनने की तरफ उठाये जा रहे विविध कदमों की तरफ भी इशारा किया और आज दुनिया भारत की तरफ आशा से देख रही है। अभी तक चीन ही दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादन केन्द्र बना हुआ है, मगर अब भारत की लोकतान्त्रिक पद्धति के तहत चलने वाली व्यवस्था की तरफ दुनिया की निगाह है और वह इसे बेहतर विकल्प समझ रही है। राजनाथ सिंह का अपना सन्देश देने का निराला अंदाज होता है। वह अपने विरोधी की आलोचना किये बिना ही वरीयता क्रम का चित्र खींचते हैं कि आम जनता का ध्यान उस तरफ जाये बिना नहीं रह पाता। मसलन उन्होंने कहा कि वह देश के प्रत्येक प्रधानमन्त्री का बहुत सम्मान करते हैं और उनके देश के विकास में किये गये योगदान की सराहना करते हैं परन्तु वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र को जिस तीव्र गति से विकास की तरफ ले जाना चाहते हैं उसमें जनता की भागीदारी प्रमुख है। भारत बिना जनता की भागीदारी के विश्व का उत्पादन केन्द्र नहीं बन सकता। इससे ही आत्म निर्भरता का भाव निकलता है और आत्मनिर्भरता केवल भारत की जरूरतों की भरपाई से नहीं बल्कि शेष दुनिया के लिए भी काम आयेगी।
भारत में बने माल की खपत दुनिया के दूसरे देशों में भी हो इसका रास्ता भी आत्मनिर्भरता से ही निकलेगा। दरअसल स्वावलम्बन और आत्मनिर्भरता में कोई फर्क नहीं है। महात्मा गांधी स्वावलम्बन पर जोर दिया करते थे । इस रास्ते पर भारत स्वतन्त्रता के बाद से ही चल रहा है, मगर 1991 में बाजार मूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के बाद चुनौतियां इस प्रकार बढ़ीं कि देश विश्व अर्थव्यवस्था का हिस्सा होते हुए इस रास्ते पर आगे बढे़। इस मामले में श्री राजनाथ सिंह का रक्षा मन्त्रालय ही इसकी सबसे बड़ी नजीर है क्योंकि रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में हम स्वदेशीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। श्री सिंह ने इस सम्मेलन में जानकारी दी कि रक्षा क्षेत्र में भारत टैक्नोलोजी हस्तांतरण के साथ विश्व के अग्रणी देशों के साथ ऐसे समझौते कर रहा है जिससे आधुनिक आयुद्ध सामग्री का उत्पादन भारत में हो और यहीं से उनकी सप्लाई अन्य देशों को भी हो। हकीकत में यह रास्ता स्व. प्रणव मुखर्जी तब सिखला कर गये थे जब वह 2006 से लेकर 2008  तक देश के रक्षामन्त्री थे। निजी क्षेत्र के लिए रक्षा उत्पादन का क्षेत्र खोलने की शुरूआत उन्होंने ही की थी। 2006 में चीन की आठ दिनों की यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने ही सबसे पहले चीनी सीमा क्षेत्र से लगे इलाकों में रक्षोन्मुख निर्माण कार्यों की मंजूरी दी थी। बीजिंग की धरती पर ही खड़े होकर उन्होंने तब उद्घोष किया था कि ‘आज का भारत 1962 का भारत नहीं है’। श्री राजनाथ सिंह बचपन से ही संघ की विचारधारा से जुड़े व्यक्ति रहे हैं और युवा अवस्था में जनसंघ व भारतीय जनता पार्टी की राजनीति से जुड़े कार्यकर्ता हैं मगर राष्ट्र सर्वोपरि मामले में वह देश को राजनैतिक दलों में बांटने के हिमायती नहीं माने जाते। यही वजह रही कि जून 2020 में जब लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना की हरकतें नाजायज तौर पर हो रही थीं तो उन्होंने ही सबसे पहले देशवासियों को सचेत किया था और उसका जवाब उन्होंने कैलाश की ऊंचाइयों पर भारत की सैनिक चौकी स्थापित करके दिया था जिसके बाद चीन अपनी हैसियत पहचानने लगा था। इसी से उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है। भारत ने उस युद्धक विमान वाहक युद्ध पोत ‘विक्रान्त’ को भारतीय नौसेना को दिया है जिसके 70 प्रतिशत से अधिक पुर्जे व साजो-सामान पूर्णतः स्वदेशी हैं।
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Aditya Chopra

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