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रामलला हम आएंगे-मंदिर वहीं बनाएंगे

मुगल काल गया, बाबर गया, हिंदुओं पर अत्याचार करने वाले गए और छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा भी गया, सुप्रीम कोर्ट में तर्क-वितर्क करने का दौर गया और सुनवाई की कथा खत्म हो गई।

05:06 AM Oct 20, 2019 IST | Aditya Chopra

मुगल काल गया, बाबर गया, हिंदुओं पर अत्याचार करने वाले गए और छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा भी गया, सुप्रीम कोर्ट में तर्क-वितर्क करने का दौर गया और सुनवाई की कथा खत्म हो गई।

मुगल काल गया, बाबर गया, हिंदुओं पर अत्याचार करने वाले गए और छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा भी गया, सुप्रीम कोर्ट में तर्क-वितर्क करने का दौर गया और सुनवाई की कथा खत्म हो गई। इसके साथ ही तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख का सिलसिला भी टूट गया और भारत के इतिहास में इस सबसे लम्बे चले केस में फैसला सुरक्षित कर लिया गया। लिहाजा उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि हिंदुस्तान में हिंदुओं की आस्था के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली पर अब मंदिर निर्माण भी हो सकेगा। 
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बड़ी बात यह है कि अदालत में हिंदू और मुस्लिम पक्षकार आमने-सामने रहे। स्कंदपुराण से लेकर आज की तारीख तक हजारों दलीलें दी गई होंगी लेकिन साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहना हिंदुस्तान में बहुत जरूरी है क्योंकि एक बार माहौल बिगड़ने की कीमत हिंदू और मुसलमानों को किस शक्ल में चुकानी पड़ी है, यह हम जानते हैं परंतु सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा  अब कोर्ट की सुनवाई के बाद खामोश रहें तो अच्छा है क्योंकि ऐतिहासिक फैसले का काउंट-डाउन शुरू हो चुका है। हिंदू महासभा और रामजन्म स्थान पुनरुत्थान समिति के बीच क्या समझौते हुए यह हम नहीं जानते, हम तो न्याय के मंदिर सुप्रीम कोर्ट से अब फैसले का इंतजार कर रहे हैं। 
कल तक तो कहा जाता था कि माता जानकी को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी लेकिन अयोध्या में मंदिर को लेकर श्रीराम को भी परीक्षा देनी पड़ रही है, यह कैसा संयोग है। पिछले तीन दशकों से मंदिर निर्माण को लेकर देश में जो माहौल बना उसके पीछे आरएसएस या विश्व हिंदू परिषद के प्रयास भुलाए नहीं जा सकते जब संत सम्मेलन और धर्म संसद तक बुलानी पड़ी। आह्वान दिया गया- सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे। सचमुच अब मंदिर के लिए असली कारसेवा का समय आ गया है। ऐसा अगर सोशल मीडिया पर भावनाओं के रूप में शेयर किया जा रहा है तो इसे किसी उन्माद के रूप में न देखकर जयघोष माना जाना चाहिए। 
सीजेआई रंजन गोगोई उम्मीद के मुताबिक 30 दिन बाद संभवत: 125 करोड़ देशवासियों और इससे भी कहीं ज्यादा विदेश में रहने वाले लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर एक ऐतिहासिक फैसला लिखेंगे, ऐसी टिप्पणियों से सोशल मीडिया लबरेज चल रहा है। हमारा मानना है कि अगर वोटों की राजनीति को  बीच में न लाया जाता तो श्रीराम मंदिर को लेकर मुकद्दमेबाजी से बचा जा सकता था। यूं हमारे देश में भ्रष्टाचार को लेकर या फिर वोट की खातिर कश्मीर से कन्याकुमारी तक बहुत कुछ दावा किया जा सकता है परंतु हे राम! मुझे माफ करना आपके मंदिर के निर्माण के लिए हमें अदालत में जाना पड़ा परंतु हमें सुकून है कि हम इंसाफ के मंदिर में हैं और इंसाफ लिखते वक्त पंचों और न्यायाधीशों को भगवान के रूप में माना गया है तो यकीनन इंसानी रिश्ते से ऊपर उठकर एक उदाहरण के रूप में फैसला लिखा जाएगा। 
हिंदू हो या मुसलमान, वे याद रखें कि अल्लाह हू अकबर या जय श्रीराम जैसे उन्मादी नारे अब नहीं चलने चाहिएं। हम इक्कीसवीं सदी में जा रहे हैं। भगवान राम को राजनीति से दूर रखकर अब भगवान राम ने जो मर्यादाएं स्थापित कीं, हमें उसका पालन करना है। भारतीय संस्कृति सबको स्वीकार करने की है। हिंदू हो या मुसलमान या सिख, ईसाई हम सब भारत में रहते हैं। हम भारतीय पहले हैं। भगवान ने दुनिया बनाई और हमने अपने-अपने धर्म बना लिए। लोकतंत्र में वोटों का नफा-नुकसान सोचने वालों ने राजनीतिक दल बना लिए परंतु यह कितनी अजीब बात है कि श्रीराम के प्रति हम कितने भी आस्थावान हों लेकिन उनकी जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण में इतना समय क्यों लग गया जबकि किसी वक्त श्रीराम लला मंदिर के द्वार भी अदालत ने ही खुलवाए थे। 
कितने ही राजनेता इस केस में अगर नायक और खलनायक बने तो इसके पीछे भी वोटों का हिसाब-किताब था लेकिन हमारा मानना है कि श्रीराम मंदिर का हमें अब इंतजार सुखद तरीके से करना है तथा जो हमारी मेलजोल की पवित्रता भरी संस्कृति रही है उसे निभाना है। सर्वसम्मति हमारी संस्कृति का सबसे बड़ा गहना है, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों को हम नतमस्तक हैं जिन्होंने यह सर्वसम्मति बनाई। अब हमें किसी इतिहास में नहीं बल्कि विश्वास में जाना है जो इस बात पर केंद्रित है कि चप्पे-चप्पे पर श्रीराम हैं। 
मोदी सरकार सचमुच भाग्यशाली है कि उसके शासनकाल में एक ऐतिहासिक फैसला आ रहा है और मंदिर का निर्माण संभव दिखाई दे रहा है। दस्तावेजों के सबूतों और श्रीराम के अस्तित्व का आकलन न्याय के मंदिर के पुजारी करेंगे लेकिन देश को अब एक ऐसे फैसले का इंतजार है जो उनके विश्वास को और मजबूत कर देगा कि श्रीराम सतयुग में भी थे और आज भी हैं। हम भ​क्तिभाव से उनके बताये मार्ग पर चलते हुए मर्यादाओं को निभाएंगे। इसके साथ ही पुरुषोत्तम होने के श्रीराम के गुणों को आत्मसात भी करेंगे और यह सब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर होगा जिसका पूरी दुनिया को इंतजार है और यह बहुत सुखद और शुभ होगा।
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