एजुकेट गर्ल्स को रेमन मैग्सेसे अवार्ड
भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले सफीना हुसैन के एनजीओ यानी नॉन-गवर्नमेंटल ऑर्गनाइजेशन ‘एजुकेट गर्ल्स’ को 2025 का रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड मिलेगा। यह पहला इंडियन ऑर्गनाइजेशन है जिसे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय गैर-सरकारी संस्था है। यह संस्था दूरदराज के गांवों में लड़कियों की शिक्षा के लिए काम करती है। सांस्कृतिक रूढ़ियों को तोड़ती है आैर लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित करती है।
साल 2007 में सफीना हुसैन ने इसकी शुरुआत की थी। रेमन मैग्सेसे को एशिया का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है। 'एजुकेट गर्ल्स' मैग्सेसे सम्मान पाने वाला पहला भारतीय एनजीओ है। सफीना हुसैन का जन्म 1971 में दिल्ली में हुआ। उनका बचपन आसान नहीं था। गरीबी,घरेलू हिंसा और मुश्किल हालातों ने उनके रास्ते में कई रुकावटें खड़ी कीं। एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। परिवार चाहता था कि उनकी जल्दी शादी कर दी जाए लेकिन एक रिश्तेदार आंटी ने उनका साथ दिया। उन्हें अपने घर में जगह दी और पढ़ाई दोबारा शुरू करने में मदद की। यहीं से उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया। सफीना ने 1987 से 1989 तक दिल्ली के डीपीएस स्कूल आरके पुरम से पढ़ाई की। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएट होने के बाद सफीना ने पारंपरिक रास्ता अपनाया। उन्होंने सिलिकॉन वैली में एक स्टार्टअप के साथ काम करना शुरू किया। हालांकि, ये सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चला और मात्र 9 महीने में नौकरी छोड़ दी। फिर उन्होंने कम्युनिटी-बेस्ड ग्लोबल डेवलपमेंट सैक्टर में अपना करियर शुरू किया। इसके चलते उन्होंने लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीका की यात्राएं कीं। सफीना ने दो साल तक गर्ल्स एजुकेशन की समस्या का अध्ययन किया और उसके बाद साल 2007 में 'एजुकेट गर्ल्स' नाम के एनजीओ की शुरुआत की। यह एनजीओ ग्रामीण और शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाकों में 5 से 14 साल की उम्र की लड़कियों की पहचान करता है और उन्हें स्कूलों में भर्ती करवाता है।
जब उन्होंने 50 स्कूलों से अपने काम की शुरुआत की तब उन्हें कोई फंड कहीं से नहीं मिला। उन्होंने अपने खर्चे से काम शुरू किया लेकिन जब रिजल्ट्स दिखने लगे तो राजस्थान सरकार ने 500 स्कूलों में काम करने की परमिशन दी और 5 प्रतिशत का सपोर्ट दिया। फिर जब सरकार ने एक पूरे पाली डिस्ट्रिक्ट के लिए काम करने की परमिशन दी तो 17 प्रतिशत का सपोर्ट िदया। यानी जैसे-जैसे गवर्नमेंट का भरोसा बढ़ता गया उनका सपोर्ट भी बढ़ता गया। एजुकेट गर्ल्स को यह सम्मान इसलिए दिया गया है क्योंकि इस संस्था ने उन परंपरागत सोच और सामाजिक धारणाओं को चुनौती दी जिनकी वजह से लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर रोक लगाई जाती थी। संस्था ने हजारों बच्चियों को निरक्षरता से बाहर निकाल कर शिक्षा, हिम्मत, हुनर और आत्मनिर्भरता की ताकत दी।
इस अवॉर्ड के साथ एजुकेट गर्ल्स अब उन महान हस्तियों की पंक्ति में शामिल हो गई है जिनमें सत्यजीत रे, एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी, किरण बेदी, विनोबा भावे, दलाई लामा, मदर टेरेसा और हायाओ मियाजाकी जैसे नाम आते हैं। “हमारे लिए शिक्षा सिर्फ प्रगति का रास्ता नहीं बल्कि हर लड़की का बुनियादी अधिकार है। यह सम्मान साबित करता है कि अगर सरकार, कॉरपोरेट और समाज साथ आएं तो बड़ी से बड़ी चुनौतियों को बदला जा सकता है। हम भारत सरकार का भी शुक्रिया अदा करते हैं, जिन्होंने इस मिशन को मजबूत बनाया।” यह बात सच है कि आज के आधुनिक दौर में भी हमारे समाज में ऐसी रूढ़िवादी सोच पल रही है जो लड़कियों की शिक्षा को तवज्जो देने से रोकती है। खासकर ग्रामीण इलाकों में इस धारणा की बेड़ियों को तोड़कर लड़कियों को निरक्षरता के अंधेरे से बाहर निकालने और उनका शिक्षा के उजाले से साक्षात्कार कराने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है। ‘एजुकेट गर्ल्स’ संस्था ने इस तरह के सफल प्रयासों की एक नई मिसाल पेश की है। इस संस्था ने राजस्थान से शुरूआत करते हुए देशभर में सबसे जरूरतमंद समुदायों की पहचान की, स्कूल न जाने वाली लाखों लड़कियों को कक्षा में पहुंचाया और उन्हें उच्च शिक्षा एवं रोजगार पाने के लिए सक्षम बनाया। एजुकेट गर्ल्स ने अब तक 20 लाख से ज्यादा लड़कियों को स्कूल में दाखिला दिलाया है। एजुकेट गर्ल्स की इस पहल से 1.55 करोड़ लोगों की जिंदगी पर असर पड़ा है। खास बात यह है कि वे सिर्फ स्कूल में दाखिला कराने तक नहीं रुकते। वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि बच्चियां स्कूल में टिकें और पढ़ाई में बेहतर करें। इसके लिए वे टीम बालिका नाम से 55,000 वॉलेंटियर्स की टीम के साथ काम करते हैं। ये वॉलेंटियर्स गांव-गांव जाकर उन परिवारों को समझाते हैं जो अपनी बेटियों को स्कूल भेजने में हिचकते हैं। संगठन ने प्रगति नाम का एक प्रोग्राम भी शुरू किया जिसके तहत 15 से 29 साल की 31,500 युवतियों को ओपन स्कूलिंग के जरिए पढ़ाई पूरी करने में मदद की जाती है। इसके अलावा 2015 में दुनिया का पहला डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड शुरू किया गया जिसने राजस्थान में दाखिला और पढ़ाई के नतीजों को बेहतर किया। सफीना की शादी मशहूर फिल्ममेकर हंसल मेहता से हुई है जो सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाते हैं। उनके पिता यूसुफ हुसैन बॉलीवुड अभिनेता थे, जिनका 2021 में कोविड-19 के कारण निधन हो गया। सफीना की कहानी और उनका काम लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है। वह कहती हैं कि एक लड़की को पढ़ाने का असर सिर्फ उसकी जिंदगी तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पूरे परिवार और समाज को बदल देता है। उनका लक्ष्य है कि 2035 तक 1 करोड़ बच्चों तक उनकी पहुंच हो और उनका मॉडल दुनियाभर में अपनाया जाए।