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राणा तो शिकंजे में आ गया, हेडली कब आयेगा?

मुंबई हमले के आरोपी राणा भारत में, हेडली का इंतजार…

01:30 AM Apr 15, 2025 IST | Rohit Maheshwari

मुंबई हमले के आरोपी राणा भारत में, हेडली का इंतजार…

राणा तो शिकंजे में आ गया  हेडली कब आयेगा

17 लंबे सालों और कुछ महीनों के बाद देश को दहला देने वाले मुंबई आतंकी हमले के सूत्रधार रहे पाकिस्तानी मूल के तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण हमारी बड़ी कानूनी व कूटनीतिक जीत है। 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमला भारत में सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक था, जिसमें लश्कर के 10 आतंकवादियों ने देश की आर्थिक राजधानी में कई जगहों पर हमला किया था। उसमें 166 निर्दोष नागरिक मार दिए गए थे। सुरक्षा बलों ने 9 आतंकियों को भी ढेर किया था। करीब 300 लोग घायल हुए। एक आतंकवादी अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया था, जिसे बाद में फांसी दे दी गई।

जिस समय ये आतंकी घटना घटी तब केंद्र में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार थी और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। उसके बाद छह साल तक केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह कांग्रेस की सरकार रही लेकिन उसने मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के दोषियों को पकड़ कर सजा दिलाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। पहले तो काफी समय तक कांग्रेस के नेता देश के हिंदू और राष्ट्रवादी संगठनों को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराते रहे थे। उसी समय ‘हिंदू आतंकवाद’ का जुमला खुलेआम कांग्रेस नेताओं की ओर से बोला जाने लगा था लेकिन अब उस हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर हुसैन राणा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों और सरकार की पहल से भारत लाया गया है तो विडम्बना देखिए कि कांग्रेस के नेता इसका भी श्रेय लेने सामने आ गए हैं।

भारत ने 2020 में प्रत्यर्पण का अनुरोध किया था। उसके बाद से ही अमरीकी प्रशासन से लंबे संवाद के साथ कूटनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर लगातार प्रयास जारी रखे। भारत ने न केवल राणा की संलिप्तता के ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि उसके साथ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप व्यवहार किया जाएगा। इसके बाद अमरीकी अदालतों में लंबी कानूनी प्रक्रिया चली। राणा ने भारत में निष्पक्ष सुनवाई न होने का तर्क देने के साथ अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रत्यर्पण का विरोध किया। यह मामला अमरीकी न्याय व्यवस्था के विभिन्न स्तरों से गुजरते हुए समय लेता रहा। इसी फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने राणा को भारत भेजने की घोषणा की थी।

मुंबई हमले के 17 वर्षों बाद ही सही, तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण पाकिस्तान के लिए घबराहट भरा है। उसने यह कहते हुए राणा से दूरी बना ली है कि वह कनाडाई नागरिक है और बीते 20 वर्षों से उसने अपने पाकिस्तानी दस्तावेजों का नवीकरण नहीं कराया है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प भी धन्यवाद के पात्र हैं, क्योंकि उनके प्रशासन के तहत ही राणा का प्रत्यर्पण संभव हो सका है।

अब भारत में राणा के खिलाफ ‘राष्ट्रीय जांच एजेंसी’ (एनआईए) की अदालत में केस चलेगा। राणा के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, यूएपीए, भारत के खिलाफ युद्ध आदि की धाराओं के तहत केस चलेगा। बेशक बहुत देर हो चुकी है लेकिन साक्ष्य आज भी जिंदा हैं। राणा भारत की गिरफ्त में है और सह-साजिशकार डेविड हेडली अब भी अमरीकी जेल में कैद है। उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया अभी शुरू भी नहीं हुई है। वह अमरीकी नागरिक है। हालांकि भारतीय एजेंसियां एक बार उसके साथ सवाल-जवाब कर चुकी हैं। उसी के बाद वह ‘सरकारी गवाह’ किस्म का आरोपित बन गया था। भारत सरकार को उसे भी हासिल करने की कोशिशें छोड़नी नहीं चाहिए। बहरहाल एनआईए के आरोप-पत्र के मुताबिक राणा ने भारत में ही हेडली से 231 बार संपर्क किया था। उन्होंने 8 रेकी मिशन भी चलाए थे और नरसंहार से पहले, अपने आखिरी मुंबई प्रवास के दौरान राणा ने 66 फोन कॉल की थीं। राणा नवंबर, 2008 में ही दिल्ली में भी 11 दिनों तक ठहरा था। फिर पवई के एक होटल में रहा। आतंकी हमले से पहले राणा दुबई चला गया था।

भारत सरकार का मकसद है कि अब तहव्वुर राणा के खुलासों के जरिए पाकिस्तान की आतंकी भूमिका दुनिया के सामने बेनकाब की जानी चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि भारत सरकार ने अमरीकी प्रशासन को जो डोजियर भेजा था उसमें राणा और हेडली के अलावा हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी, इलियास कश्मीरी, साजिद मीर और आईएसआई के मेजर इकबाल से संबंधित ब्यौरे भी दिए गए थे। राणा को आईएसआई, हेडली और लश्कर-ए-तैयबा के दरमियान का संपर्क बताया गया था। अब इन खुलासों को भारत सरकार राणा के जरिए सत्यापित करना चाहती है। इनमें अधिकतर आरोपी पाकिस्तान में आज भी सक्रिय हैं। हालांकि अब तक पाकिस्तान मुंबई आतंकी हमले में अपना हाथ होने से लगातार इन्कार करता रहा है लेकिन सभी प्राथमिक सूचनाएं और ठोस सबूत पाक की तरफ इशारा करते रहे हैं।

गौरतलब यह है कि यदि भारत सरकार नए सिरे से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी फाटफ के सामने पाकिस्तान के खिलाफ पुख्ता सबूत रखती है और फाटफ पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डालने का फैसला करता है तो दुनिया में पाकिस्तान को भीख मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक तौर पर इसी तरह लड़ी जा सकती है। तहव्वुर हुसैन राणा का अमरीका से भारत प्रत्यर्पण एक कानूनी सफलता भर नहीं है, बल्कि यह हमारी उस राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है जिसमें हम न्याय की राह में कोई कसर नहीं छोड़ते, चाहे समय कितना भी बीत जाए। निश्चित रूप से इस सफलता में भारत के राजनीतिक व कूटनीतिक प्रयासों की भी बड़ी भूमिका रही है। भारतीय अधिकारियों ने इस दिन के लिये कड़ी मेहनत की। हालांकि, अभी इस रहस्य से पर्दा उठना बाकी है कि अमेरिका ने क्यों अपने नागरिक डेविड कोलमैन हेडली को भारत को सौंपने से परहेज किया। जबकि उसने इस बड़े अपराध में बड़ी भूमिका निभाई थी। पूर्ण सफलता तभी मानी जाएगी जब डेविड कोलमैन हेडली का भारत प्रत्यर्पण हो सकेगा। जिसने आतंकियों द्वारा निशाने पर ली गई जगहों की कई बार रेकी करके आतंकी सरगनाओं की मदद की थी।

राणा और हेडली ने डेनमार्क पर भी आतंकी हमले की साजिश रची थी। उसका रहस्य खुल गया, लिहाजा दोनों ही जेल में थे। बहरहाल इस प्रत्यर्पण से उन शहीदों के परिजनों को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है जिनकी इस आतंकी हमले में मृत्यु हुई थी। अब तक उनके परिजनों को इस बात का मलाल था कि 16 साल बाद भी सभी अपराधियों को सजा नहीं मिली सकी है। एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे, इनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे सहित इस हमले में मारे गए 166 लोगों को तभी न्याय मिलेगा जब तहव्वुर हुसैन राणा जल्दी से जल्दी फांसी के फंदे पर लटकेगा।

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