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हरियाणा में कांग्रेस की हार के कारण

03:42 AM Oct 11, 2024 IST | Shera Rajput
हरियाणा में कांग्रेस की हार के कारण

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने जाति-आधारित रणनीतियों, कुशल नेतृत्व और बिखरे हुए विपक्ष का लाभ उठाकर लगातार तीसरी जीत हासिल की। सत्ता विरोधी लहर के बावजूद, पार्टी ने विविध मतदाता समूहों को आकर्षित करने और स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर अपनी बढ़त बनाए रखी।
कांग्रेस की आंतरिक कलह उसकी हार का प्रमुख कारण रही। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा पर अत्यधिक निर्भरता दिखाई और प्रमुख दलित नेता कुमारी शैलजा को नजरअंदाज कर दिया। इससे दलित मतदाता कांग्रेस से दूर हो गए और यह धारणा बनी कि सत्ता में आने पर भी उन्हें सत्ता में साझेदारी नहीं मिलेगी। दलितों ने सोचना शुरू कर दिया कि "लठमार राज आएगा और हमें सरकार में हिस्सा नहीं मिलेगा।"
भले ही बीजेपी और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में मामूली अंतर था बीजेपी 39.9% और कांग्रेस 39.1%—लेकिन सीटों में बड़ा अंतर रहा। 2024 में बीजेपी ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 37 पर ही सिमट गई। 2019 में बीजेपी को 36% वोट मिले थे लेकिन बहुमत नहीं मिला था। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और कभी प्रभावशाली इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के पतन ने इस चुनाव में बीजेपी के पक्ष में काम किया।
बीजेपी की सफलता गैर-जाट समुदायों जैसे ब्राह्मण, पंजाबी, अहीर (यादव) और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) का समर्थन जुटाने में रही, जो राज्य की 70% आबादी का हिस्सा हैं। परंपरागत रूप से जाट कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों से जुड़े रहे, लेकिन बीजेपी ने इस समर्थन को कमजोर कर दिया। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह ओबीसी नेता नायब सिंह सैनी को लाना बीजेपी के लिए एक साहसिक कदम साबित हुआ, जिससे पार्टी का गैर-जाट वोट बैंक मजबूत हुआ। जाट समुदाय के युवाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसरों के वादे से आकर्षित करके भी बीजेपी ने अपनी पैठ बनाई।
हरियाणा में विपक्ष बिखरा और असंगठित था। भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस समर्थन जुटाने में विफल रही। इनेलो, जो पारिवारिक झगड़ों से कमजोर हो गई थी, कोई ठोस चुनौती नहीं पेश कर सकी। जेजेपी, इनेलो से अलग होकर बनी पार्टी, का प्रभाव 2024 में और घट गया। विपक्ष में एकजुट जाट नेतृत्व की कमी से बीजेपी को फायदा हुआ, क्योंकि न तो हुड्डा और न ही ओम प्रकाश चौटाला समुदाय को एकजुट कर सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने हरियाणा में बीजेपी की संभावनाओं को और मजबूत किया। उनकी सशक्त नेतृत्व छवि, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पार्टी के पक्ष में रही। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों ने भी हरियाणा के सैन्य परिवारों में देशभक्ति की भावना को बढ़ावा दिया, जिससे बीजेपी को समर्थन मिला।
पीएम-किसान सम्मान निधि योजना से किसानों को आर्थिक राहत मिली, जिससे कृषि क्षेत्र में बीजेपी ने दोबारा पकड़ मजबूत की। बीजेपी का मजबूत चुनावी तंत्र, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा समर्थित था, ने बूथ स्तर पर मतदाताओं को संगठित किया और जोरदार अभियान चलाया। पार्टी ने घर-घर अभियान और डिजिटल प्रचार का इस्तेमाल करके महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित की।
हालांकि हरियाणा अन्य उत्तरी राज्यों की तरह सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत नहीं है, फिर भी बीजेपी के अभियान में सूक्ष्म धार्मिक ध्रुवीकरण के तत्व शामिल थे। राष्ट्रवादी बयानबाजी और अवैध प्रवास व राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों ने बीजेपी के हिंदुत्व संदेश को और मजबूती दी।
बीजेपी ने युवा और महिला मतदाताओं को आकर्षित करने में भी महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। रोजगार सृजन, कौशल विकास और महिलाओं की सुरक्षा पर केंद्रित नीतियों ने इन्हें प्रभावित किया। विशेष रूप से, उज्ज्वला योजना जैसी योजनाओं ने महिलाओं के जीवन में सुधार किया और उन्हें बीजेपी के पक्ष में किया।
हरियाणा में बीजेपी की तीसरी जीत जातिगत राजनीति, मजबूत नेतृत्व, मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता और बिखरे हुए विपक्ष का परिणाम थी। कांग्रेस की आंतरिक कलह और हुड्डा पर अति-निर्भरता, दलित नेताओं जैसे शैलजा को पर्याप्त रूप से शामिल न करने के कारण उसकी हार का मुख्य कारण बनी।
हरियाणा में दो बार सत्ता-विरोधी लहर होने के बावजूद, कई कारक कांग्रेस की हार में योगदान देते हैं। यह कारण कांग्रेस की आंतरिक कमजोरियों और बीजेपी के बाहरी लाभों को उजागर करते हैं।
हरियाणा में कांग्रेस लंबे समय से आंतरिक गुटबाजी से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा के बीच मतभेद ने एकजुट नेतृत्व की कमी पैदा की। इस आंतरिक कलह ने पार्टी की एकजुटता को कमजोर कर दिया और मतदाताओं के बीच उसकी अपील कम कर दी।
समय के साथ, कांग्रेस ने अपने जमीनी संगठन को कमजोर कर दिया। इसके विपरीत, बीजेपी ने आरएसएस द्वारा समर्थित मजबूत कैडर संरचना बनाए रखी। कमजोर संगठनात्मक ढांचे के कारण कांग्रेस बूथ स्तर पर मतदाताओं को संगठित करने में विफल रही, जबकि बीजेपी का मजबूत बूथ प्रबंधन उच्च मतदाता भागीदारी सुनिश्चित करता रहा।
हुड्डा के तहत कांग्रेस की जाट वोट बैंक पर निर्भरता इसकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई। जाट केवल 30% मतदाताओं का हिस्सा हैं, ऐसे में कांग्रेस गैर-जाट मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाई। वहीं, बीजेपी ने गैर-जाट मतदाताओं को सफलतापूर्वक संगठित किया। कांग्रेस ने बेरोजगारी, कृषि संकट और किसानों के विरोध पर बीजेपी की आलोचना तो की, लेकिन वह एक मजबूत वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश करने में विफल रही।
सारांश में, हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की जीत कई कारणों का परिणाम थी, जैसे कि कुशल जातिगत राजनीति, सैनी के तहत मजबूत नेतृत्व, मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता, बिखरा हुआ विपक्ष, और रणनीतिक गठबंधन। इसके अलावा, पार्टी की मजबूत चुनाव प्रबंधन रणनीति और सूक्ष्म ध्रुवीकरण की नीतियों ने राज्यभर में इसके मतदाता आधार को मजबूत करने में मदद की।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं रणनीतिकार मामलों के स्तम्भकार हैं)

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