Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

भारत-नेपाल रिश्ते में ‘गांठ’

स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार भारत-नेपाल सम्बन्धों के बीच ऐसी गांठ या गिरह लग गई है जिसे खोलने में दोनों देशों की आने वाली पीढि़यों को भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

12:08 AM Jun 13, 2020 IST | Aditya Chopra

स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार भारत-नेपाल सम्बन्धों के बीच ऐसी गांठ या गिरह लग गई है जिसे खोलने में दोनों देशों की आने वाली पीढि़यों को भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार भारत-नेपाल सम्बन्धों के बीच ऐसी गांठ या गिरह लग गई है जिसे खोलने में दोनों देशों की आने वाली पीढि़यों को भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है। भारत ने हमेशा नेपाल को अपना सहोदर भ्राता समझ कर आपसी सम्बन्धों का निर्धारण किया और हमेशा यह ध्यान रखा कि भारत की सतत् विकास प्रक्रिया का लाभ नेपाल को भी मिले। दोनों देशों के ताल्लुकात अलग-अलग संप्रभु राष्ट्र होने के बावजूद विश्व के सन्दर्भ में सांझा चिन्ताओं के इर्द-गिर्द ही रहे परन्तु भारत की चार सौ वर्ग किलोमीटर भूमि को नेपाल ने अपने नक्शे में शामिल करके वह काम कर डाला है जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच गिरह लगती दिख रही है। यह गिरह ‘नेपाली राष्ट्रवाद’ के नाम पर वहां की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने इस तरह लगाई है कि उसके दूसरे पड़ोसी चीन को स्वयं को नेपाल के और निकट लाने का अवसर प्रदान करे। भारत और नेपाल पूरी दुनिया में दो ऐसे देश हैं जिनकी संस्कृति से लेकर जीवन मूल्य एक जैसे रहे हैं और नेपाली राष्ट्रवाद भारत की राष्ट्रीय अखंडता और व सार्वभौमिकता में समाहित रहा है। नेपाल के लाखों  भूतपूर्व गोरखा सैनिक आज भी पेंशन पाते हैं। दोनों देशों की सांझा परंपराएं आपसी सम्बन्धों को ‘अतुलनीय’ श्रेणी में रखती रही हैं परन्तु नेपाल की वर्तमान पी.के. शर्मा औली सरकार ने भारत-चीन-नेपाल त्रिकोणात्मक क्षेत्र के कालापानी इलाके में भारतीय भूमि पर अपना दावा करके और इकतरफा तरीके से इसे अपने मानचित्र में शामिल करके प्राचीन एेतिहासिक सम्बन्धों को विवादास्पद बनाने की ठान ली है। 
Advertisement
 नेपाली संसद के निचले सदन ने इस नक्शे को पारित कर दिया है और अब यह इस देश के उच्च सदन में रखा जायेगा जहां से पारित होने के बाद यह वहां के राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए जायेगा। चूंकि यह कार्य नेपाल में संविधान संशोधन के जरिये होगा। अतः इस प्रक्रिया के पूरा होने में दो सप्ताह का समय और लग सकता है। इस प्रकार दोनों देशों के बीच वार्ता के जरिये विवाद को सुलझाने का समय है। औली सरकार इस मोर्चे पर भी जरूरत से ज्यादा होशियारी दिखा रही है और कह रही है कि दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये बातचीत (वर्चुअल मीटिंग) हो सकती है।  एक प्रकार से नेपाल चीन के नक्शे कदम पर जाने की कोशिश कर रहा है और भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहता है। अपनी संसद के निचले सदन में नक्शा पारित करा कर नेपाल भारत को वार्ता की मेज पर आने का निमंत्रण दे रहा है। ऐसा नहीं है कि नेपाल का चीन प्रेम पहली बार उमड़ रहा है।  पूर्व में भी राजशाही के दौरान कई मौके एेसे आये जब  नेपाल ने चीन की करवट बैठ कर भारत को अपनी महत्ता दिखाने की कोशिश की मगर नेपाली व भारतीय नागरिकों के प्रगाढ़ रिश्तों ने इसे जमीन नहीं पकड़ने दी। जहां तक नागरिकों का प्रश्न है तो परिस्थितियां आज भी नहीं बदली हैं। बदला है तो सिर्फ यह कि चीन ने नेपाल में अपनी आर्थिक ताकत की बदौलत नेपाल को अपनी धौंस में लेने की व्यूह रचना कर डाली है और इसकी राजनीति को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है।
 एकजमाना था जब नेपाल में लोकतन्त्र बहाली के आन्दोलन में भारतीय विशेषकर समाजवादी सोच के नेता सक्रिय भागीदारी करते थे और वहां की नेपाली कांग्रेस पार्टी महात्मा गांधी के सिद्धान्तों के प्रति निष्ठावान रहते हुए अहिंसक रास्तों से नागरिकों को राजनीतिक अधिकार दिये जाने की वकालत किया करती थी। नेपाली कांग्रेसी नेता स्व. गिरिजा प्रसाद कोइराला भारतवासियों के लिए घरेलू नाम होता था। राजशाही के दौरान पंचायती राज व्यवस्था नेपाली कांग्रेस के आन्दोलन की वजह से ही स्थापित हुई थी, परन्तु कालान्तर में नेपाल में माओवादी कम्युनिस्टों का प्रभाव बढ़ा और उन्होंने भारत विरोध को अपनी राजनीति का एक अंग बना कर पैर पसारने शुरू किये। इसके बावजूद 2008 में जब वहां राजशाही का खात्मा हुआ तो भारत ने नेपाली जनता का ही साथ दिया और कहा कि ‘भारत वही चाहता है जो नेपाल की जनता चाहती है।’ यह उत्तर तत्कालीन विदेश मन्त्री श्री प्रणव मुखर्जी ने दिया था और कहा था कि किसी भी देश की जनता को अपनी मनपसन्द सरकार चुनने का अधिकार है क्योंकि भारत किसी भी देश के अदरूनी मामलों में दखल देने का विरोधी है। यही उसकी घोषित विदेश नीति का मूल है परन्तु वर्तमान औली सरकार ने भारत की अन्दरूनी जमीन के एक हिस्से को ही आज विवादास्पद बना दिया है।
 इस मामले में क्या भारत की कूटनीति असफल कही जा सकती है? क्योंकि 2015 में जब भारत ने मानसरोवर झील तक बारास्ता काली नदी घाटी के जाने वाली सड़क के निर्माण के लिए चीन से समझौता किया था तो नेपाल ने इसका विरोध किया था। यह संकेत था कि नेपाल ‘बिचल’ रहा है, इसके बाद जब 2020 में सड़क पूरी हो गई तो नेपाल ने कालापानी क्षेत्र को ही अपने नक्शे में दिखा दिया और यह काम तब किया जब चीनी फौजें पिछले एक महीने से हमारे लद्दाख क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही हैं। क्या पूछा जा सकता है कि विदेश मन्त्री माननीय एस. जयशंकर कौन सी किताब पढ़ रहे हैं ?
Advertisement
Next Article