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गणतन्त्र दिवस और नागरिक

आज गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी है। यह वह ऐतिहासिक दिन है जब 1950…

10:48 AM Jan 25, 2025 IST | Aditya Chopra

आज गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी है। यह वह ऐतिहासिक दिन है जब 1950…

गणतन्त्र दिवस और नागरिक

आज गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी है। यह वह ऐतिहासिक दिन है जब 1950 में इसी दिन स्वतन्त्र भारत का संविधान लागू हुआ था। इसमें गण अर्थात भारत के हर व्यक्ति को इस देश के प्रजातन्त्र का मालिक होने का अधिकार दिया गया था। यह कार्य प्रत्येक नागरिक को एक वोट देने का अधिकार देकर किया गया। भारत के लोगों ने इस दिन बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा लिखे गये संविधान को अपने ऊपर लागू होने की घोषणा की और प्रण किया कि भारत की जो भी सरकार बनेगी वह उसके एक वोट के अधिकार से बनेगी। यह वोट का अधिकार ही है जो प्रजातन्त्र में आम नागरिक को इसका राजा घोषित करता है। इस आम आदमी को संविधान में हिन्दू , मुस्लिम या सिख, ईसाई करके नहीं देखा गया है बल्कि एक नागरिक के रूप में देखा गया है। अतः संविधान में हर भारतीय की पहचान एक नागरिक के रूप में है। यह नागरिक किसी भी धर्म को मानने वाला हो सकता है या स्त्री- पुरुष हो सकता है अथवा किसी भी जाति का हो सकता है। संविधान की नजर में वह केवल नागरिक ही होता है और संविधान में प्रत्येक नागरिक के अधिकार बराबर होते हैं। अतः सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि संविधान की नजर में न कोई हिन्दू है और न मुसलमान बल्कि वह सबसे पहले एक भारतीय नागरिक है। यह भारतीय नागरिक ही इस भारत का मालिक है जो अपने वोट के अधिकार का प्रयोग करके देश में अपनी मनपसन्द सरकारों का गठन करता है।

भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति की छटा भी हमें गणतन्त्र दिवस पर दिखाई पड़ती है। विभिन्न राज्यों की झांकियों की इस दिन राष्ट्रपति के समक्ष परेड कराई जाती है। यह परंपरा पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस वजह से शुरू कराई थी जिससे भारत की रंग-बिरंगी संस्कृति से देश के सभी लोग परिचित हो सकें और पहचान सकें कि वे एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी एक भारत के झंडे तले एक बराबर हैं। इसके साथ यह सवाल भी कुछ लोग उठाते हैं कि संविधान लागू करने का दिन 26 जनवरी ही क्यों चुना गया? इसकी भी एक खास वजह है। स्वतन्त्रता से पहले देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस पार्टी हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाती थी और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को राष्ट्रपति के नाम से पुकारती थी। भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 को ही लिखकर पूर्ण हो गया था। अतः इस बात पर मनन किया गया कि संविधान को किस दिन से भारत में लागू किया जाये। तब यह विचार उभर कर आया कि चूंकि 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस घोषित हो चुका है अतः 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में क्यों न मनाया जाये। इस पर स्वतन्त्रता सेनानियों में मतैक्य बना और 26 जनवरी, 1950 से संविधान लागू करने की तारीख पक्की हुई जिसे गणतन्त्र दिवस का नाम दिया गया। मगर यह केवल समारोह का दिन नहीं है बल्कि एेसा प्रतीकात्मक दिवस है जिसमें भारत की पूरी सत्ता भारत के नागरिकों के प्रति नतमस्तक होती है। राजमार्ग पर जब भारत की तीनों सेनाएं हमारे राष्ट्रपति को सलामी देती हैं तो वे इस देश के प्रजातन्त्र के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करती हैं।

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव भी परोक्ष रूप से भारत के नागरिक ही करते हैं क्योंकि उनके द्वारा चुने गये सांसद व राज्यों के विधायक ही राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता होते हैं। यह मतदाता मंडल ही (इलेक्टोरल कालेज) राष्ट्रपति चुनाव के लिए बनता है जिसे भारत का चुनाव आयोग कराता है। अतः राजपथ पर सेनाएं जब राष्ट्रपति को सलामी देती हैं तो वे भारत के नागरिकों को ही आश्वासन देती हैं कि वे इस गणतन्त्र की रक्षा के लिए कटिबद्ध हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान की जिस कसीदाकारी से सम्पन्न शास्त्रीय संरचना की है उसमें भारत के नागरिक को ही सर्वोपरि रखा गया है। इसलिए गणतन्त्र दिवस भारत के आम नागरिकों का सबसे बड़ा महोत्सव समझा जाता है। यह केवल रस्म अदायगी का दिन नहीं है बल्कि भारत के प्रजातन्त्र की मजबूती के लिए लगातार चौकन्ना रहने का दिन भी है। मगर गणतन्त्र का मतलब केवल हर पांच वर्ष बाद होने वाले चुनावों से ही नहीं है बल्कि हर मोर्चे पर उस गणतन्त्र को मजबूत बनाने से है जिसकी घोषणा 26 जनवरी, 1950 को की गई थी। यह घोषणा और कुछ नहीं बल्कि यह थी कि भारत की सर्वोच्च सत्ता की कुर्सी पर कोई भी भारतीय नागरिक पहुंच सकता है बशर्ते वह उस औहदे के लिए नियत अर्हताओं पर खरा उतरता हो। यही गणतन्त्र की वह अजीम ताकत है जिसका प्रदर्शन 26 जनवरी को हर साल होता है।

हम सब जानते हैं कि जब भारत आजाद हुआ था तो यह अंग्रेजों द्वारा खोखला किया जा चुका था। उस समय देश की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी खेती पर निर्भर थी। पिछले 75 सालों से इसे बनाने में हमारे युगदृष्टा राजनेताओं ने अपना खून-पसीना एक किया है। यह दुष्कर कार्य हम तभी कर सके जब भारत के लोगों ने अपने धर्म व मजहब से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण में योगदान किया। वे हिन्दू-मुसलमान हो सकते थे परन्तु सबसे पहले भारत के नागरिक थे। इसलिए गणतन्त्र दिवस हमें यही सन्देश देता है कि हम सबसे पहले नागरिक बनें और देश निर्माण के लिए अपनी धार्मिक पहचान को अपने घर की चारदीवारी के बीच ही रखें। सामाजिक सौहार्द और भाईचारा ही भारत की पहचान है जिसका विकल्प कुछ नहीं हो सकता। गणतन्त्र की मजबूती तभी मानी जायेगी जब इसका नागरिक आर्थिक रूप से मजबूत होगा और सामाजिक रूप से वैज्ञानिक सोच वाला होगा।

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Aditya Chopra

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