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बढ़ती फीस और सरकारी स्कूल...

बहुत ही अच्छा कदम है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री रेखा गप्ता और मंत्री आशीष सूद…

11:25 AM Apr 19, 2025 IST | Kiran Chopra

बहुत ही अच्छा कदम है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री रेखा गप्ता और मंत्री आशीष सूद…

बहुत ही अच्छा कदम है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री रेखा गप्ता और मंत्री आशीष सूद स्कूल की बढ़ती फीसों की तरफ ध्यान दे रहे हैं। क्योंकि आज महंगाई का जमाना है। बच्चों पर जैसे स्कूल बैग का भार बढ़ता जा रहा है वैसे ही माता​-पिता पर स्कूल फीस का भार भी बढ़ता जा रहा है। हर माता-पिता अपने बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं और बढ़िया स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं।

मुझे याद है मेरे माता-पिता ने मुझे इंग्लिश स्कूल में डाला, फिर तीसरी कक्षा में मुझे सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया। क्यों​कि हम 6 बहनें थीं। स्कूल का खर्चा उस समय के हिसाब से भी ज्यादा था, मेरे ​िपता जी बहुत समर्थ थे परन्तु उनके मन में सरकारी स्कूल के प्रति बहुत आस्था थी। उनके अनुसार सरकारी स्कूल के बच्चे पढ़े हुए बहुत आगे निकलते हैं। मैंने भी दसवीं तक टॉप किया। मुझे स्कॉलरशिप भी मिला। उसके बाद मैडिकल लाइन भी ज्वाइन की। िफर इरादा बदलता गया, क्योंकि पढ़ाई से ज्यादा एक्टिविटीज में ध्यान हो गया। नया-नया टीवी आ गया, फिर 10वीं के एग्जाम के बाद छुट्टियों में अमृतसर दूरदर्शन टीवी पर तीन महीने की अवधि के ​िलए न्यूज रीडर बन गई। फिर मैडिकल लाइन छोड़कर आईएएस बनने की तैयारी में पाॅलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स सब्जैक्ट ले लिया।

मेरे कहने का अर्थ है कि सरकारी स्कूल भी कम नहीं होते अगर शिक्षक ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाएं। कहते हैं न बच्चे की प्रथम गुरु मां है तो दूसरी उसकी शिक्षका।

मेरा मानना है कि महंगी शिक्षा के प्रति एक आकर्षण तो रहता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकारी स्कूल किसी से कम हैं। सरकारी स्कूल दिल्ली के हों या कश्मीर से कन्याकुमारी के सरकारी स्कूलों ने सही मायनों में हमारे शिक्षा के आदर्श डाक्टर रविन्द्र नाथ टैगोर के उन आदर्शों को सिद्ध करके दिखाया है जिसकी बुनियाद पाठशाला के रूप में रखी गयी। शिक्षा के जिस आदर्श की स्थापना सरकारी स्कूल करते हैं वह महंगे स्कूलों में दिखायी नहीं देता। सरकारी स्कूलों में पढ़कर बड़े-बड़े अफसर बनकर सरकार के विभिन्न विभागों में अनेक लोग सेवा कर रहे हैं। शिक्षा गुरुकुल तथा पाठशालाओं से होकर ही आज तकनीकी एवं कम्प्यूटर तथा प्राेफैशनल संस्थानों तक पहुंची है। जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। शिक्षा और हैल्थ सुविधाएं सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाना एक कर्त्तव्य है तो राष्ट्रवासियों के लिए​ शिक्षा एवं हैल्थ सुविधाएं एक अधिकार जैसा होना चाहिए। हैल्थ आैर एजुकेशन सुरक्षा किसी भी देश को महान बनाती है।

आज जिन डाक्टर भीमराव अंबेडकर को एक महान समाज सुधारक और संविधान निर्माता के रूप में जाना जाता है, उनकी स्कूली शिक्षा एक सरकारी स्कूल से ही हुई थी। जिस लोकतंत्र के लिए व्यवस्थाओं की बात उन्होंने की है उसी डेमोक्रेसी का दर्जा आज भारत को एक मंदिर के रूप में दिया जाता है। उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीय संविधान के निर्माण में जो भूमिका उन्होंने निभाई उस शिक्षा की बुनियाद सरकारी स्कूल ही था। इसी कड़ी में देश के मिसाइल मैन ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जो एक महान वैज्ञानिक रहे और भारत को एक मजबूत परमाणु राष्ट्र बनाने में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई, उनकी शुरूआती शिक्षा भी सरकारी स्कूल में ही हुई थी। अनेक लेखक, सम्पादक व पत्रकार, नेता, कलाकार, बड़े-बड़े व्यक्तित्व सरकारी स्कूलों में ही पढ़कर आगे चलकर सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र में आज की तारीख में आइकॉन भी बनें।

मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि प्राइवेट स्कूल में या प्राइवेट संस्थानों में भारी फीस के दम पर या ज्यादा पैसे खर्च करके सफलता नहीं पायी जा सकती। ऊपर लिखे उदाहरण सिद्ध करते हैं कि कम पैसे में आप सरकारी स्कूलों में अच्छी लगन से पढ़कर नाम कमा सकते हैं। पिछले एक दशक में दिल्ली और कई राजधानियों में सरकारी स्कूलों का परिणाम चाहे वह सीबीएसई स्तर पर हो या कॉलेज स्तर पर वह सफलता के दृष्टिकोण से उच्च ही रहा है। इसीलिए मैं कहती हूं कि शिक्षा के मामले में महंगी फीस को महत्व देने के बजाए अगर सरकारी संस्थानों का रास्ता चुन लिया जाये तो वह बुरा नहीं है। कम्पिटीशन बढ़ रहा है यह बात अलग है लेकिन सच्ची मेहनत और लगन बहुत कुछ दे जाती है। यह एक फैशन सा है कि शिक्षा के नाम पर चाहे वह तकनीकी कोर्स है या कोई और प्रोफेशनल कोर्स या मेडिकल साइंस या आईएस या आईपीएस हर तरफ कम्पिटीशन है। मेहनत करने वाला सफल हो जाता है। मैंने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों से पढ़े सैकड़ों स्टूडेंट्स देखे हैं जो आगे चलकर आईएस बने या आईपीएस बनें। इसलिए सरकारी संस्थान जो प्रोफेशनल कोर्स पढ़ाते रहे हैं चाहे वह पॉलिटैक्नीक है या आईटीआई वे आज भी शिक्षा की आदर्श परिभाषा स्थापित करते हैं।

मैं महंगी फीस की विरोधी हूं और ऐसी व्यवस्था की पक्षधर हूं कि शिक्षा हर किसी का अधिकार होना चाहिए। ऐसे माता-पिता हैं जो ज्यादा पैसा नहीं दे सकते। सरकार ने उनके लिए स्कूलों में व्यवस्था कर रखी है क्योंकि वह महंगी नहीं है इसलिए मैं उसका स्वागत करती हूं लेकिन महंगी शिक्षा उन लोगों के लिए है जिन लोगों के पास संपन्नता है। आदर्श शिक्षा के दम पर गरीब लोगों ने मेहनत कर-करके किसी ने आईएएस तो किसी ने आईपीएस तो किसी ने कम्पिटीशन लड़कर खुद को सीए बनाया है।

सरकार से गुजारिश है कि देशभर में बच्चों के लिए हर आयु वर्ग के लिए शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए यद्यपि इस कड़ी में स्वास्थ्य को भी मैं जोड़ रही हूं लेकिन सरकार की आयुष्मान भारत योजना जोकि अब दिल्ली का भी हिस्सा हो चुकी है, के प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूं लेकिन सस्ती शिक्षा रविन्द्र नाथ टैगौर की उस पाठशाला का ही कंसेप्ट है जिसके परिणाम गुणवत्ता और बड़े उच्च दर्जे से जुड़े हुए हैं। ऐसी आदर्श शिक्षा को सौ-सौ बार नमन। यानि सभी की इच्छा होती है कि बड़े से बड़े नामी-गिरामी स्कूल में उनका बच्चा पढ़े। इस​िलए सरकार को देखना जरूरी है कि हर स्कूल की फीस ज्यादा न हो। ऊपर से महंगे स्कूल की किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ डिमांड भी रहती है, सब बंद होनी चाहिए। स्कूल स्वच्छ वातावरण में ईमानदारी से चलने चहिए चाहे वे सरकारी हों या प्राइवेट। नर्सरी के बच्चों के अभिभावकों पर भी दबाव कम होना चाहिए।

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