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तांडवी तेज की ​हुंकार

जम्मू-कश्मीर के जन्नत माने जाने वाले पर्यटक स्थल पहलगाम में आतंकवा​दियों ने…

11:41 AM Apr 23, 2025 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर के जन्नत माने जाने वाले पर्यटक स्थल पहलगाम में आतंकवा​दियों ने…

क्यों निर्दोषों की हत्या करते हो?

क्यों विश्वासघात का मार्ग अपनाते हो?

निहत्थों पर कहर बरपाने का क्या औचित्य?

आओ, एक जंग और करके देख लो

यानि जो संदेश दिया, उसमें निहित भाव है!

निर्जर पिनाक शिव का टंकार उठा हैै,

हिमवंत हाथ में ले अंगार उठा है,

तांडवी तेज फिर से हुंकार उठा है,

लोहित में था जो गिरा, कुठार उठा है,

संसार धर्म की नई आग देखेगा,

मानव का करतब पुनः नाग देखेगा।

जम्मू-कश्मीर के जन्नत माने जाने वाले पर्यटक स्थल पहलगाम में आतंकवा​दियों ने हमला कर 28 लोगों की जान ले ली। जिस तरह से धर्म और नाम पूछकर आतंकवादियों ने हिन्दुओं का नरसंहार किया उससे समूचा राष्ट्र आक्रोश में है। भारत की बेटी जिस की हाथों की मेहंदी का रंग भी अभी फीका नहीं हुआ था और तीन दिन पहले ही उसकी शादी हुई थी, उसकी अपने पति भारतीय नौसेना के लेफ्टीनेंट विनय नरवाल के शव के साथ तस्वीर देखकर किसका दिल नहीं पसीजा होगा। हैदराबाद के आईबी अधिकारी मनीष रंजन को पत्नी और बच्चों के सामने मार दिया गया और उनकी पत्नी मदद की भीख मांगती रही। ऐसी ही कई कहानियां सामने आ रही हैं। ऐसे दृश्य देख पूरा देश सकते में है। यह हमला वैसा ही जैसा हमास के आतंकवादियों ने इजराइल पर किया था।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में काफी बदलाव आया था। आतंकवाद लगातार सिमट रहा था। वादियां और बाजार गुलजार हो उठेे थे। श्रीनगर के लालचौक पर त्यौहार मनाए जाने लगे थे। बागों में ट्यूलिप के फूल खिल उठे थे। मंद-मंद शीतल हवाओं से चिनार के पेड़ झूमने लगे थे। उम्मीदें बंध गई थीं कि एक न एक दिन आतंकवाद मुक्त जम्मू-कश्मीर नई सुबह देखेगा लेकिन बढ़ते पर्यटक और मजबूत होती अर्थव्यवस्था पाक को रास नहीं आई। पहलगाम के भयावह हमले ने एक बार फिर सबको खौफजदा कर दिया। जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं को रास नहीं आ रहा था। इसलिए पाकिस्तान की सेना, सेना प्रमुख तौकिर मुनीर, उसकी खुफिया एजैंसी आईएसआई और नॉन स्टेट एक्टर्स (यानि आतंकवादी संगठनों) ने मिलकर साजिश रच डाली। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपना सऊदी अरब का दौरा बीच में छोड़ कर नई दिल्ली पहुंच गए और आतंकवादी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए रणनीति तैयार करने में जुट गए।

गृहमंत्री अमित शाह हमले के तुरन्त बाद ही श्रीनगर पहुंच गए थे। 1947 में मजहब के आधार पर भारत का बंटवारा हो गया था तो मजहबी उन्माद में डूबे पाकिस्तान ने हमें आज तक गहरे जख्म दिए हैं। आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी साजिशों और सीमा पर उसकी हरकतों ने भारत के लिए चुनौतियां पैदा कर दी थीं। पाकिस्तान ने 1965, 1971 आैर 1999 में कारगिल युद्ध में करारी हार के बावजूद भारत को हजारों जख्मों से लहूलुहान करने की गैर पारम्परिक युद्ध नीति नहीं छोड़ी। भारत 2005 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, 2006 के मुम्बई ट्रेन धमाके और 2008 के मुम्बई आतंकी हमले, 2015 में गुरदासपुर, 2016 में पठानकोट और उरी के हमलों को आज तक भुला नहीं पाया है। आतंकवादियों ने लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद और हमारे धर्मस्थलों को भी नहीं बख्शा। अंततः नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राजनीतिक इच्छाशक्ति के समर्थन से अपने रक्षात्मक रवैये को अलविदा कह दिया। तब भारत ने सितम्बर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और फरवरी 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक करके पाकिस्तान के परमाणु युद्ध की धमकी की हवा निकाल दी थी। आतंकवादी ताकतें जम्मू-कश्मीर में टारगेट किलिंग जारी रखे हुए थी और कुछ बड़ा हमला करने की फिराक में थी। पाकिस्तानी साजिशों के संकेत पाकिस्तानी सेना के प्रमुख मुनीर और आतंकवादी सरगनाओं के भड़काऊ भाषणों से मिलने लगे थे।

आज समूचा राष्ट्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा है। हर देशवासी चाहता है कि पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जाए जैसा इजराइल ने हमास को सिखाया है। पूरा देश चाहता है : –

-भारत जब दुश्मनों से घिरा हो तब एक ही विकल्प बचता है वह अंतिम विकल्प है युद्ध।

-जब शांति के सारे प्रयास असफल हो जाएं तो तलवार उठाना ही धर्म है। क्योंकि तब शांति के पौधों को सींचने के लिए रक्त की ही आवश्यकता होती है।

-जरा सोचिये राम-रावण युद्ध को क्यों नहीं रोका जा सका, भगवान कृष्ण को महाभारत क्यों रचना पड़ा, गुरु गोविन्द सिंह, बंदा बहादुर, महाराणा प्रताप, शिवाजी की तलवारें मध्य युग में बराबर खनकती ही रहीं।

पाकिस्तान को इस धरती पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। पूरी साजिश डिकोड हो चुकी है। अब एक ही विकल्प है वह है पाकिस्तान और पाक प्रायोजित आतंकवाद का सर्वनाश।

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