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संघ और भाजपा दो जिस्म, एक जान हैं !

यह बात तो जगजाहिर है कि संघ और सरकार एक-दूसरे से ऐसे ही जुड़े हैं, जैसे पेट…

11:09 AM Apr 08, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed

यह बात तो जगजाहिर है कि संघ और सरकार एक-दूसरे से ऐसे ही जुड़े हैं, जैसे पेट…

यह बात तो जगजाहिर है कि संघ और सरकार एक-दूसरे से ऐसे ही जुड़े हैं, जैसे पेट में मां के साथ खाने की नली से शिशु जुड़ा रहता है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय का दौरा करके इसके संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर को श्रद्धांजलि दी तो सिद्ध हो गया कि मोदी और भागवत के न केवल हाथ, गले और दिल मिले, बल्कि आत्माओं का भी मिलन हुआ। अब यह फिर हुआ कि संघ कार्यालय पर किसी प्रधानमंत्री ने हाजरी लगाई हो। इससे पूर्व भी संघ के कार्यकर्ता रहे पूर्व प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी भी संघ कार्यालय में 21 अगस्त 2000 को गए थे। नागपुर में संघ कार्यालय है जिसने भारत को हेडगेवार, गोलवारकर, सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय जैसे कर्णधार प्रदान किए हैं देश को।

अयोध्या में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर पूजा के दौरान अपने-अपने व्याख्यान में जहां भागवत जी ने कई बार मोदी जी का गुणगान किया और उनकी तपस्या में राम मंदिर हेतु 11 दिन के उनके उपवास का जिक्र भी किया, जबकि प्रधानमंत्री ने भी सद्भाव का उल्लेख किया। चूंकि आरएसएस विश्व का सबसे शिष्टाचारी व अनुशासित संगठन है और भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी, दोनों वरिष्ठ नेताओं ने अपनी-अपनी छाप छोड़ी।

मीडिया ने मौजूदा दौर के भारत की दो सबसे मज़बूत और प्रचण्ड दमदार हस्तियों अर्थात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरसंघचालक, डॉ. मोहन भागवत के संबंधों को लेकर बीते दस वर्ष में कई प्रकार की चटनी पीसी और यहां तक कहा गया कि सरकार और संघ के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मगर जे.पी. नड्डा ने अवश्य एक बार एक टिप्पणी से संघ के सभी चाहने वालों को बड़ा ही बेचैन कर दिया था कि भाजपा को संघ की आवश्यकता नहीं जिससे लोग न केवल अचंभित हो गए थे, बल्कि कुछ तो सकते में भी आ गए थे कि दूध और शक्कर वाले जैसे संघ-भाजपा के रिश्तों में खटास क्यों पड़ रही है। इस प्रकार की अंदरूनी उथल-पुथल से संघ और भाजपा के खैर ख्वाहों में चिंता बढ़ने लगी और मीडिया ने यहां तक लिख डाला कि भारत दो सबसे शक्तिशाली संगठनों, अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी में आमने-सामने तलवारें खिंच गई हैं, जो कि गलत बयानी से अधिक कुछ नहीं था।

संघ के एक वरिष्ठ विचारक, के अनुसार, मोदी का नागपुर जाना इसलिए भी प्रतीकात्मक है, क्योंकि इससे इतिहास का वह चक्र पूरा हो गया जो एक शताब्दी पहले जिस विचार बीज को डॉ. हेडगेवार ने रोपित किया, वह अपने सहस्त्र-भुजाओं के विराट स्वरूप के साथ देश-विदेश में जनमानस को प्रभावित कर रहा है। इस बात का उल्लेख इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 1925 में अपने जन्म से लेकर आज तक संघ को क्रमिक सत्ता-अधिष्ठान के पूर्वाग्रह, उपेक्षा, तिरस्कार और अंधविरोध का सामना करना पड़ा है। आज उसी शासनतंत्र के शिखर पुरुष, नरेन्द्र मोदी ने न केवल संघ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की है, बल्कि राष्ट्र निर्माण में उसके योगदान की भूरी-भूरी प्रशंसा भी की है।

आरएसएस का जन्म तात्कालिक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ‘इको-सिस्टम” से प्रभावित हो कर हुआ। संघ इसका अपवाद नहीं है परंतु आरएसएस की कार्यपद्धति और उद्देश्य को केवल उसके तत्कालीन संदर्भ तक सीमित नहीं किया जा सकता। भारत के साथ शेष विश्व के प्रति संघ का व्यापक दृष्टिकोण सनातन वैदिक सिद्धांतों ‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति, ‘वसुधैव कुटुंबकम’, और “सर्वे भवंतु सुखिनः” आदि शाश्वत मूल्यों पर आधारित है। इन्हीं चिंतन से प्रेरित होकर संघ बीते 100 वर्षों से एकता, सामंजस्य और राष्ट्र के पुनरुत्थान का प्रयास कर रहा है।

दुनिया जानती है कि संघ स्वयं सत्ता-राजनीति से दूर रहता है परंतु इसके द्वारा प्रदत्त चरित्र निर्माण कार्यक्रम से प्रशिक्षित और प्रेरित कार्यकर्ता केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों का संचालन करते हैं। इस अद्वितीय संबंध को चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य के सहयोग के प्रकाश से समझ सकते हैं। इसी आलोक में प्रधानमंत्री मोदी ने संघ की प्रशंसा करते हुए उसे ‘अमर संस्कृति का महान वट वृक्ष’ बताया है। बीते माह एक अमेरिकी पॉडकास्टर को दिए एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी ठीक कहा था, ‘संघ को समझना इतना सरल नहीं है।’ वास्तव में संघ एक संगठन नहीं, अपितु एक विचारधारा, एक चेतना और सतत् प्रवाहमान राष्ट्रवादी आंदोलन है, जिसका ध्येय मजहब-सम्प्रदाय-जाति की संकीर्ण सीमाओं से परे संपूर्ण समाज को संगठित करना, उसे आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी और राष्ट्रनिष्ठ बनाना है। यही कारण है कि संघ और भाजपा में एक जान, दो जिस्म की परिभाषा बिल्कुल फिट बैठती है।

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