मतदाता सूची पर बवाल !
बिहार में मतदाता सूची को लेकर आम मतदाताओं में जिस प्रकार भ्रम का वातावरण बना हुआ और विपक्षी पार्टियां मतदाता सूची पुनरीक्षण को जिस प्रकार से मुद्दा बना रही हैं उसे देखते हुए चुनाव आयोग का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह सीधे मतदाताओं को यकीन दिलाये कि किसी एक भी वैध मतदाता को मतदाता सूची से बाहर नहीं रखा जायेगा और उसके वोट के अधिकार का पूरी तरह संरक्षण किया जायेगा। चुनाव आयोग ने विगत 24 जून को सूचना जारी कर कहा था कि जिन मतदाताओं के नाम 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं थे उन्हें अपना नाम मतदाता सूची में जुड़वाने के लिए कुछ आवश्यक दस्तावेज जमा करने होंगे। केवल आधार कार्ड होने से किसी मतदाता का नाम सूची में नहीं जोड़ा जायेगा। चुनाव आयोग को यह भी मालूम होना चाहिए कि पिछले मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के कार्यकाल के दौरान सीधे आधार कार्ड से मतदाता सूची को संलग्न करने का अभियान चलाया गया था। मगर इस पर भी कुछ विपक्षी दलों ने ऐतराज जताया था।
दरअसल चुनाव आयोग सीधे मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होता है और बीच में कहीं कोई सरकार नहीं आती। चुनाव आयोग सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपने दायित्व का निर्वाह करता है। वैध मतदाता को पंजीकृत करना उसका कर्त्तव्य होता है। यह भी तथ्य है कि केवल भारत का नागरिक ही मतदाता बन सकता है और इस क्रम में एक भी भारतीय नागरिक छूटना नहीं चाहिए। जहां तक आधार कार्ड का सम्बन्ध है तो इस पर स्पष्ट लिखा हुआ होता है कि यह केवल आवास की पहचान है नागरिकता की नहीं। अर्थात आधार कार्ड भारत में रहने वाले की पहचान करता है न कि उसकी नागरिकता की। मगर दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि किसी भी सरकारी सेवा लेने के लिए आधार कार्ड को ही जरूरी बना दिया गया है। इस विसंगति को दूर करने के लिए चुनाव आयोग ने 11 ऐसे दस्तावेजों की सूची जारी की जिससे यह पता चल सके कि मतदाता वास्तव में भारत का नागरिक है और सूची में जुड़ने योग्य है।
ये 11 दस्तावेज इस प्रकार हैं- 1. केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया पेंशन कार्ड या पहचान पत्र, 2.सरकार या स्थानीय निकाय प्रशासन अथवा बैंक, डाकखाने या जीवन निगम द्वारा 1987 से पूर्व उसके नाम जारी किया गया कोई प्रमाणपत्र या अन्य कागज, 3. किसी मान्य प्रमाणित संस्था द्वारा जारी किया गया जन्म प्रमाणपत्र, 4. पासपोर्ट, 5. हाई स्कूल का प्रमाणपत्र जिसमें जन्म तिथि का उल्लेख होता है, 6. किसी भी मान्य प्रमाणित राज्य संस्था द्वारा जारी किया गया स्थायी निवासी होने का प्रमाणपत्र, 7. वन विभाग द्वारा वनों पर अधिकार होने का जारी प्रमाणपत्र, 8. पिछड़े वर्ग का होने अथवा आदिवासी या अनुसूचित वर्ग से होने का सर्टिफिकेट। बिहार में 2022 में जाति सर्वेक्षण हुआ था जिसमें बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ सात हजार पाई गई थी।
इसमें सामान्य पिछड़े वर्ग ( ओबीसी) की जनसंख्या 27 प्रतिशत थी जबकि अत्यन्त पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के 36 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के 20 प्रतिशत व आदिवासी वर्ग के केवल 1.6 प्रतिशत थे। 9 राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में मतदाता का नाम (बिहार पर यह लागू नहीं होता है क्योंकि यहां यह रजिस्टर बना ही नहीं है)। 10. राज्य या स्थानीय निकाय द्वारा बनाये गये राष्ट्रीय परिवार रजिस्टर में नाम। यह रजिस्टर प्रायः स्थानीय निकाय जैसे नगर पालिका व ग्राम पंचायत आदि बनाते हैं, 11. राज्य सरकार या स्थानीय निकाय प्रशासन द्वारा जारी किया गया कोई भूमि आवंटन प्रमाणपत्र। इस प्रकार इन 11 दस्तावेजों में से कोई एक देना चुनाव आयोग ने मतदाता बनने के लिए जरूरी बना दिया है। इसे लेकर ही बिहार में भारी कोहराम मचा हुआ है और आम जनता में भ्रम का वातावरण फैला हुआ है।
चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी दल 9 जुलाई को बिहार बन्द भी आहूत कर रहे हैं। इससे यह खतरा पैदा हो रहा है कि राज्य में आम जनता व चुनाव आयोग सीधे आमने-सामने आकर खड़े हो गये हैं। यह स्थिति किसी भी रूप में सही नहीं कही जा सकती क्योंकि चुनाव आयोग मतदाता सूची का संरक्षक होता है जिसके आधार पर अधिक से अधिक मतदाता मतदान में भाग लेने के लिए प्रेरित होते हैं। मगर मतदाताओं को यदि यह लगने लगे कि चुनाव आयोग उन्हें मतदाता बनने से महरूम कर रहा है तो लोकतन्त्र के लिए ये हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते लेकिन इस बीच बिहार के चुनाव आयुक्त ने एक अखबार में विज्ञापन जारी करके कहा है कि मतदाता अपना पंजीकरण बिना किसी एक दस्तावेज के भी करा सकते हैं जबकि दूसरी ओर मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि मतदाता सूची में नाम शामिल करने की शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है और 24 जून 2025 के दिशा-निर्देश वैध रहेंगे।
इससे स्थिति और उलझ गई है। चुनाव आयोग ने कहा है कि वह 30 सितम्बर को नई पुनरीक्षित मतदाता सूची जारी कर देगा और इससे पहले 1 सितम्बर तक मतदाता 11 में से कोई एक दस्तावेज जमा करा सकते हैं और अपना फार्म भर कर इसे 25 जुलाई तक स्थानीय पंजीयक गणक को दे सकते हैं। भारत में जाली मतदाता होने का आरोप महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद देश की विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने लगाया था और कहा था कि मतदाता सूची में लाखों नये मतदाताओं के नाम फर्जी तौर पर जोड़े गये थे। चुनाव आयोग ने उसके जवाब में ही यह कदम उठाया लगता है मगर यह काम जितनी जल्दबाजी में किया गया है उससे इस प्रक्रिया की प्रामाणिकता पर सवालिया निशान लग रहे हैं। अतः चुनाव आयोग को इस सन्दर्भ में अपनी विश्वसनीयता से कोई समझौता नहीं करना चाहिए। क्योंकि अगले वर्ष प. बंगाल व तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। वैसे यह पूरा मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है जिस पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है।