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मुद्रा बाजार में गिरता रुपया

किसी भी देश की मुद्रा में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जब गिरावट…

10:58 AM Dec 20, 2024 IST | Aditya Chopra

किसी भी देश की मुद्रा में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जब गिरावट…

किसी भी देश की मुद्रा में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जब गिरावट आती है तो मोटे तौर पर उसे उस देश की अर्थव्यवस्था की सेहत के नजरिये से परखा जाता है। भारत की मुद्रा रुपये का भाव डालर के मुकाबले बहुत नीचे 85 रुपए के पार चला गया है जो बहुत ही चिन्ता की बात है। डालर के मुकाबले रुपये का गिरना बता रहा है कि हमारे आयात व निर्यात कारोबार की स्थिति क्या है। भारत एेसा देश है जो अधिक आयात करता है और इसका निर्यात उसके अनुपात में बहुत कम रहता है जिसकी वजह से भारत का वाणिज्य घाटा बढ़ने की तरफ रहता है। एेसी सूरत में भारत में डालर की मांग अधिक रहती है जिससे रुपया सस्ता होता जाता है। इसके साथ ही राजनैतिक स्तर पर जिस भी देश में अस्थिरता रहती है उसकी मुद्रा डांवाडोल रहती है। मगर भारत में राजनैतिक स्थिरता को कभी खतरा नहीं रहा और प्रत्येक पार्टी की सरकार में यह स्थिरता इस वजह से बनी रही क्योंकि भारत का लोकतन्त्र एेसी अनूठी व्यवस्था है जिसके तहत सरकारों का बदला जाना बहुत सामान्य तरीके से होता है। हमारी आर्थिक नीतियां भी 1991 के बाद से मोटे तौर पर एक समान रही हैं।

1991 से भारत बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के ढांचे को अपनाए हुए है। ये नीतियां स्व. नरसिम्हा राव की सरकार से लेकर वर्तमान मोदी सरकार तक में जारी हैं। यह बात जरूर है कि इस दौरान कुछ सरकारों ने सामान्य गति से काम किया और कुछ ने बहुत तेजी के साथ। नरसिम्हा राव सरकार में जब डा. मनमोहन सिंह वित्त मन्त्री थे तो उन्होंने रुपये को खुले अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से जोड़ने से पहले इसका अवमूल्यन किया था। तब डालर का मूल्य 14 रुपये से ऊपर जाकर स्थिर हुआ था। मगर बाद में बाजार की शक्तियां इसका भाव तय करने लगीं क्योंकि सरकार ने निजी उद्योगों को सीधे विदेश से आयात करने की छूट भी दे दी थी। हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारत जब आजाद हुआ तो रुपये की कीमत एक पौंड के बराबर थी। अर्थात रुपये व ब्रिटिश मुद्रा पौंड का स्तर एक ही था मगर बाद में पौंड की कीमत डालर के मुकाबले गिरने लगी जिससे रुपया भी डालर के मुकाबले सस्ता होने लगा।

खैर 1991 में डालर की कीमत 14 रुपये से ऊपर तय होने के बाद रोजाना खुले मुद्रा बाजार में इसका भाव तय होने लगा और रुपया अपनी शक्ति के अनुसार डालर के मुकाबले ऊपर नीचे होता गया। परन्तु डालर की कीमत में पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह उठान हो रहा है वह भारत की अर्थव्यवस्था को दर्पण दिखाने जैसी बात है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत का व्यापार घाटा क्यों ऊंचाई की तरफ है। हमें मालूम है कि अमेरिका और चीन में कारोबार को लेकर जब ठनी थी तो अमेरिका लगातार मांग करता था कि चीन को अपनी मुद्रा यान का अवमूल्यन करना चाहिए। इसकी वजह यह थी कि अमेरिका का चीन के साथ आयात कारोबार लगातार बढ़ रहा था। भारत में यह विचार भी कुछ आर्थिक पंडितों का रहा है कि रुपये को डालर के मुकाबले पूर्ण परिवर्तनीय बना देना चाहिए। इस बारे में मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान भी विचार हुआ था और एक विशेषज्ञ समिति भी गठित की गई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि रुपये को तब तक पूर्ण परिवर्तनीय नहीं बनाया जा सकता जब तक कि भारत में स्वर्ण एक्सचेंज बाजार स्थापित न किया जाये।

रुपया अभी चालू खाते के तहत ही परिवर्तनीय है। इसका अर्थ यह है कि भारत के व्यापारी अपनी आयात जरूरतों को पूरा करने के लिए जितने डालर खरीदने चाहें खरीद सकते हैं क्योंकि 1991 के बाद से केवल रिजर्व बैंक का इस पर अधिपत्य समाप्त हो चुका है। 1996-97 में जब केन्द्र में देवगौड़ा व इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारें थीं तो डालर की कीमत 20 रुपये के आसपास थी और सोने का भाव चार हजार रु. प्रति तोला के करीब था। उस सरकार के वित्त मन्त्री श्री पी. चिदंबरम थे। यह स्थिति तब थी जब 1990 में भारत को अपनी आयात जरूरतों को पूरा करने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। उस समय वित्त मन्त्री यशवन्त सिन्हा थे। बाद में वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान बाजी पूरी तरह पलट गई थी और भारत ने तीन सौ टन सोना खरीदा था। यह सब हमारी अर्थव्यवस्था की मजबूती के रूप में देखा गया। मगर श्री मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान ही डालर ऊंचा होना शुरू हो गया था जिसकी वजह भारत द्वारा सोने के आयात में कमी न करना था।

डालर और सोने के भाव एक-दूसरे से बंधे रहते हैं। हवाला बाजार में डालर की दर सोने का भाव तय करती है। भारत में 22 कैरेट सोने का भाव फिलहाल 70 हजार रु. प्रति दस ग्राम चल रहा है। इसका मतलब निकलता है कि सोने का अवैध व्यापार बदस्तूर जारी है। डालर को मजबूत करने के लिए सोने का अवैध कारोबार रोकना बहुत जरूरी है। क्योंकि इसके लिए डालर की हवाला दर पर इस मुद्रा को खरीदा जाता है। दूसरे हमें यह भी देखना होगा अर्थव्यवस्था कितनी मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है? कोरोना संकट के बाद इन आर्थिक मानकों में कितना सुधार हुआ है और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की हालत क्या है। मगर डालर जिस गति से नीचे गिर रहा है तो इसका सन्देश सावधान करने वाला ही है। डालर की कीमत जो अफगानिस्तान की मुद्रा में है भारत उस श्रेणी में खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि यह दुनिया का पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है।

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