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शहादत को नमन

06:30 AM Sep 09, 2025 IST | Aditya Chopra
शहादत को नमन
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जब भी मैं अपने परिवार का इतिहास पढ़ता हूं तो मुझे स्वयं पर गर्व होता है। क्योंकि मैं उस परिवार का हिस्सा हूं जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष किया, बल्कि स्वतंत्र भारत में भी राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए अपना बलिदान दिया। 9 सितम्बर 1981 के दिन मेरे परदादा अमर शहीद लाला जगत नारायण जी का बलिदान दिवस है। यद्यपि मेरे पिता श्री अश्विनी कुमार मुझे परिवार की पूरी दास्तां से अवगत कराते रहते थे। मेरे दादा जी रमेश चन्द्र जी ने भी अपने पिता लाला जी की तरह शहादत का मार्ग चुना था। इतिहास के अवलोकन के बाद जितना मैं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समझ पाया उन्हें मैं शब्दों में उतारने की कोशिश कर रहा हूं। लाला जी एक हुतात्मा थे जिन्होंने धर्म और सत्य के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। वे वेदों और महर्षि दयानंद सरस्वती के मार्ग पर चलने वाले एक सच्चे आर्यसमाजी थे। वे अहिंसा में विश्वास करते थे और उन्होंने जीवन में कभी किसी हथियार को हाथ तक नहीं लगाया। उनका मानना था कि कलम हथियार से अधिक शक्तिशाली है। वे आलोचना के प्रति खुले थे और स्वस्थ तरीके से बहस और चर्चा को प्रोत्साहित करते थे। वे सभ्य तरीके से तर्क और युक्ति का प्रयोग करते हुए समाज में व्याप्त बुराइयों की आलोचना करते थे।

पहले आजादी की लड़ाई और देश के स्वतंत्र होने के बाद यानी पहले अंग्रेजी सत्ता और बाद में अपने ही लोगों द्वारा लाला जी को बार-बार प्रताड़ित किया गया, तकलीफें दी गईं। उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक दायित्वों से कभी पलायन नहीं किया। जहर पीकर भी अमृत पीने जैसी मुस्कान उनके चेहरे पर रहती थी। जीवन का अंतिम घूंट भी उन्होंने शहादत का ही पिया। जब पंजाब में सीमा पार के 'मित्रों' की काली करतूतों के कारण अलगाववाद की आग सुलगने लगी थी तो क्या इंटेलीजेंस, क्या सीबीआई, किस-किस ने नहीं कहा, "लाला जी आप स्वयं को सुरक्षित रखें, बाहर व्यर्थ न जाएं और अपनी फिक्र करें। विध्वंसक शक्तियां सत्य और असत्य की गरिमा को नहीं पहचानतीं" लेकिन लाला जी ने कहा- समाज से अलग रहकर, भागकर, घर के कमरे में बंद रह कर कुछ नहीं हो सकता। अगर असत्य से लड़ना है तो समाज और राज्य में रहकर ही लड़ना होगा। अंततः राष्ट्र विरोधी ताकतों ने उन्हें अपनी गोलियों का निशाना बना दिया। लाला जी ने लाला लाजपत राय जी की मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में एक कोष की स्थापना कर अखबार निकालने का काम किया। अखबार का नाम रखा गया 'पंजाब केसरी'।

लाला जी को अंग्रेजों के खिलाफ सम्पादकीय लिखने पर कई बार जेल जाना पड़ा, यातनाएं सहनी पड़ीं। जब भी वे जेल से बाहर आते ओजस्वी लेख लिखते तो फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता। जेल में ही उनकी मुलाकात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से हुई थी। महात्मा गांधी के अनुयायी होने के बावजूद क्रांतिकारियों से उन्हें प्यार था और सम्पर्क भी, क्योंकि लक्ष्य केवल एक था- देश को आजाद कराना। आजादी से पूर्व भारत की आजादी के वास्ते 16 वर्ष तक जेल में काटे लेकिन आजादी के बाद भी सत्ता ने उन्हें बहुत कष्ट दिए। एक प्रश्न मेरे मस्तिष्क में बार-बार उभरता रहता है कि आखिर आतंकवादियों ने ऐसे व्यक्ति की हत्या क्यों की जो अत्यंत प्रभावशाली होने के बावजूद वृद्ध था और जीवन के अंतिम दौर में था। उनकी हत्या नृशंस अपराध था। लाला जी ने आतंकवाद का खुला विरोध किया था लेकिन आतंकवादियों ने उन्हें अपनी गोलियों का निशाना बनाकर उन्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया। मेरे परदादा पंजाब के मंत्री भी रहे और सांसद भी। स्पष्टवादी इतने कि उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियों का भी विरोध किया।

जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो लाला जी के लिए यह लोकतंत्र की हत्या का आघात असहनीय था। उन्होंने कांग्रेस छोड़कर देश में आपातकाल का विरोध ​किया। तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जिन्होंने 16 वर्ष अंग्रेजों की जेल में काटे हों उन्हें आजाद भारत में जेल जाने की क्या परवाह। आपातकाल के बाद कांग्रेस शासन को उखाड़ फैंकने की जयप्रकाश नारायण जी की समग्र क्रांति में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। सोच रहा हूं आज की राजनीति में ऐसे लोग कहां चले गए हैं। वे सिद्धांत प्रियता और विशाल हृदय के प्रतीक थे। उनके अवसान के बाद मेरे दादा रमेश चन्द्र जी ने और उनके बाद मेरे पिता श्री अश्विनी कुमार जी ने कलम को संभाला। आज वही कलम मेरे हाथों में है। मेरी मां श्रीमती किरण चोपड़ा, मेरे अनुज आकाश और अर्जुन चोपड़ा भी मुझे सहयोग दे रहे हैं। मेरी मां वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के माध्यम से बुजुर्गों की सेवा कर लाला जी के दिखाये मार्ग का अनुसरण कर रही हैं। हम सब अपने पूर्वजों के सपनों को साकार करने के लिए संकल्पबद्ध हैं। निसंदेह पंजाब केसरी पर पूर्वजों का आशीर्वाद आज भी बना हुआ है। युग पुरुष लाला जी को हम सब श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमें सत्य पथ पर चलने की शक्ति और ऊर्जा प्रदान करें। कलम के सिपाही को नमन।

जिए जब तक लिखे खबरनामे।
चल दिए हाथ में कलम थामे।।

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Aditya Chopra

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