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शहादत को सलाम

जम्मू-कश्मीर में हुई मुठभेड़ों में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष, कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट्ट, राइफल मैन रवि कुमार और अन्य जवान की शहादत के बाद राष्ट्र कवि हरिओम पवार की यह पंक्तियां याद आ रही हैं।

01:50 AM Sep 15, 2023 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर में हुई मुठभेड़ों में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष, कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट्ट, राइफल मैन रवि कुमार और अन्य जवान की शहादत के बाद राष्ट्र कवि हरिओम पवार की यह पंक्तियां याद आ रही हैं।

‘‘मैं केशव का पाञ्चजन्य भी गहन मौन में खोया हूं,
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उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूं,
जिस माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई, 
चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई,
कुछ बहनों की राखियां जल गई हैं बर्फीली घाटी में, 
वेदी के गठबन्धन खोये हैं, कारगिल की माटी में,
पर्वत पर कितने सिन्दूरी सपने दफन हुए होंगे,
बीस बसंतों के मधुमासी जीवन हवन हुए होंगे।’’
जम्मू-कश्मीर में हुई मुठभेड़ों में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष, कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट्ट, राइफल मैन रवि कुमार और अन्य जवान की शहादत के बाद राष्ट्र कवि हरिओम पवार की यह पंक्तियां याद आ रही हैं। तिरंगे में लिपटे शहीद जवानों के पार्थिव शरीर जब उनके घर की दहलीज पर आए तो हर किसी की आंखों में आंसू थे। देश के लिए अपना सर्वोच्च लुटा देने वाले जवान किसी का बेटा, किसी का पति और किसी का पिता है। कितने ही रिश्ते आज फिर बि​लख-बिलख कर रोये। किसी की गोद, किसी की मांग सूनी हो गई। इनकी करुणा और  पीड़ा को शब्दों में समेट पाना इतना सरल नहीं है। शहीद कर्नल मनप्रीत सिंह हरियाणा के पंचकूला के रहने वाले थे। उनका एक बेटा और बेटी भी हैं। शहीद मेजर आशीष पानीपत के रहने वाले थे और वह तीन बहनों के इकलौते भाई थे। उनकी दो साल की बेटी भी है। जम्मू-कश्मीर के बड़गांव के रहने वाले डीएसपी हुमायूं भट्ट जम्मू-कश्मीर पुलिस के आईजी गुलाम हसन भट्ट के बेटे थे। हुमायूं भट्ट की दो महीने की बेटी है। शहीद जवानों की पत्नियों का क्रंदन दिलों को चीरने वाला था।
शहीद जवानों की अंत्येष्टि के समय आकाश गगन भेदी नारों से गूंज उठा। जवानों की शहादत ने लोगों को एक बार फिर एहसास दिलाया कि वतन की सुरक्षा का बोझ कितना बड़ा होता है। कश्मीर में पिछले तीन साल में यह सबसे बड़ा हमला है जिसमें इतने बड़े अफसरों की शहादत हुई है। इससे पहले हंदवाड़ा में 30 मार्च, 2020 को 18 घंटे चले हमले में कर्नल, मेजर और  सब इंस्पैक्टर समेत पांच अफसर शहीद हुए थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि अनुच्छेेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में कमी आई है। सुरक्षा बलों ने चुन-चुन कर आतंकवादियों को मार गिराया। इस साल जनवरी से अब तक राज्य में 40 आतंकी मारे गए थे। इनमें से आठ ही स्थानीय थे और बाकी सभी पाकिस्तानी हैं। कश्मीर में शांति आतंकवादियों के पाकिस्तान में बैठे आकाओं को सहन नहीं हो पा रही। भूखा, नंगा और कंगाल पाकिस्तान एक बार फिर राज्य में आतंक फैलाने की कोशिश कर रहा है। 
भारत में जी-20 सम्मेलन की सफलता उसे सहन नहीं हो पा रही। पाक अधिकृत कश्मीर का आवाम पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहा है और आवाम चाहता है कि वह भारत में मिल जाए। उधर तालिबान के गुर्गे पाकिस्तान की जमीन हथिया रहे हैं। गृह युद्ध की कगार पर खड़ा पाकिस्तान घाटी में शांति भंग करने के लिए सीमा पार से आतंकवादी भेज रहा है। अब जबकि केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर में चुनावों की तैयारी कर रही है और देर-सवेर उसका राज्य का दर्जा भी बहाल किए जाने की बातें हो रही हैं। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान चाहता है कि राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा फैला दी जाए। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति में काफी परिवर्तन देखने को मिला है और कश्मीरी आवाम राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ने लगा है। सुरक्षा बलों और एनआईए जैसी केन्द्रीय एजैंसियों के कठोर कदमों से आतंकवाद की कमर टूट चुकी है। घाटी भले ही पहले से कहीं अधिक शांत है लेकिन जम्मू क्षेत्र में खतरा बढ़ा है।  लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू दुखदायी है। घाटी में कश्मीरी हिंदुओं और गैर-कश्मीरियों की हत्याओं की सिलसिलेवार घटनाओं से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। 5 अगस्त, 2019 के बाद मारे गए कुल आम नागरिकों में 50 प्रतिशत से अधिक की हत्याएं पिछले आठ महीने में हुईं। इन हत्याओं में पाकिस्तान से सीमाई इलाकों में ड्रोनों से भेजे गए छोटे हथियारों का इस्तेमाल हुआ है। पाकिस्तानी हैंडलर्स अब भी पार्ट-टाइम बेसिस पर आतंकवादियों की भर्तियां कर रहे हैं जो आम नागरिकों को निशाना बनाते हैं।
जम्मू में हिंदू बहुल इलाकों को निशाना बनाने की भी कोशिशें हुईं जैसा कि वर्ष 2000 के आसपास हुआ करता था। 2021 में पुलिस ने लगभग 20 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया और कई आईईडीएस  की बरामदगी हुई जिनका इस्तेमाल हिंदू इलाकों में किया जाना था। वर्षों बाद पिछले साल 2022 की शुरूआत ही जम्मू में हिंदू नागरिकों की हत्याओं के साथ हुई। वहीं, जम्मू में लागातार घुसपैठ की घटनाओं में भी वृद्धि हुई। 
आज फिर देशवासियों की जुबां पर एक ही सवाल है कि आखिर कब तक हमारे जवान अपनी शहादत देते रहेंगे। हमले की जिम्मेदारी लेने वाला संगठन टीआरएफ लश्कर का ही नया रूप है। सुरक्षा बलों को एक बार फिर र नई रणनीति बनाकर काम करना होगा, ताकि जवानों का खून न बहे। देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले वीर जवानों को पंजाब केसरी का शत्-शत् नमन। भारत उनकी शहादत को सलाम करता है और दुख की घड़ी में हम सब शहीदों के परिवारों के साथ खड़े हैं।
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