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वतन को सलाम अर्थात आधा ईमान !

01:56 AM Apr 10, 2024 IST | Shera Rajput
वतन को सलाम अर्थात आधा ईमान

"भारत पे मेरे रहमते परवरदिगार है
कृपा श्री राम की, कान्हा का प्यार है"
-कव्वाल यूसुफ खां निजामी
कितना प्यारा है हमारा हिन्दुस्तान कि हज़रत मुहम्मद साहब (सल्लल.) ने फरमाया था कि हिंद की जानिब से आती हैं ठंडी हवाएं। भारत में आज जो मुस्लमान रह रहे हैं वे वास्तव में राष्ट्र भक्त और संस्कारी हैं, क्योंकि 1947 अर्थात देश के विभाजन के समय इन्होंने भारत को ही अपना वतन समझा और यहीं के होकर रहे, जबकि मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा भटकाए गए मुस्लिम भारत माता का सीना चाक करके सरहद पार चले गए। यह अलग बात है कि आज वे और उनकी पुश्तें पछता रही हैं। तभी भारत रत्न, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा था कि दरिया (पंजाब) को हम दो भागों में नहीं काट सकते। जामा मस्जिद की सीढ़ियों से उन्होंने एक इतना भावुक भाषण दिया था कि जो लोग अपने बिस्तर बंद तैयार कर पुरानी दिल्ली के रेलवे स्टेशन से लाहौर की ट्रेन पकड़ने जा रहे थे उन्होंने अपने बिस्तर बंद खोल दिए क्योंकि मौलाना ने बड़े ही मार्मिक अंदाज में कहा था, "जो चला गया उसे भूल जा, हिंद को अपनी जन्नत बना।"
मुस्लिमों का योगदान
अभी हाल ही में एक बड़ी मार्के की पुस्तक का दिल्ली में विमोचन हुआ, जिसका विषय था, "भारतीय मुस्लमान : एकता का आधार : हुब्बुल वतनी, निसफुल ईमान (राष्ट्रीयता)", यानि देश से प्रेम एक इस्लामी हदीस के अनुसार किसी भी मुस्लिम का आधा ईमान है। प्रो. शाहिद अख्तर जो कि इस पुस्तक के रचियता हैं, बताते हैं कि इसको लिखने का ध्यान उनके मस्तिष्क में उस समय आया जब उन्होंने सरसंघ चालक डा. मोहन भागवत को यह कहते सुना कि मुस्लिमों द्वारा दिए गए योगदान के बिना भारत की कल्पना ही नहीं की जा सकती, जिसे सुन कर उन्हें असीम गौरव की अनुभूति हुई। जिस प्रकार से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते हैं, "सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास," इसमें पूर्ण रूप से हिंदू-मुस्लिम सद्भावना, समरसता और समभाव का समावेश है जिसमें मुस्लिम व अन्य सभी संप्रदाय शामिल हैं। वैसे हमारा मानना है कि देश से प्रेम आधा नहीं बल्कि समूचा ही ईमान है।
बक़ौल मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अध्यक्ष व विचारक इंद्रेश कुमार, यदि हिंदू-मुस्लिम एकता और एकात्मता पर सबसे बढ़िया विचाराधारा जो वसुधैव कुटुंबकम् पर कोई पुस्तक प्रकाशित हुई है तो वह है, "भारतीय मुस्लमान : एकता का आधार: हुब्बल वतनी निसफुल ईमान (राष्ट्रीयता)"। उनका मानना है कि पुस्तक मुस्लिम संप्रदाय के बारे में फैली संभ्रांत विचारधारा और पूर्वागृहों को दूर कर समावेशी व तर्कसंगत और न्यायसंगत विचाराधारा को बढ़ावा देती है, ठीक उसी प्रकार से जैसे सर सैयद अहमद खां ने भारत को ऐसी दुल्हन क़रार दिया जिसकी हिंदू और मुस्लिम दो खूबसूरत आंखें हैं।
‘‘भारत देश अनेकता में एकता और विविधता का स्वर्ग है जिसमें नाना प्रकार के धर्म, पंथ, जातियां, संप्रदाय, संस्कृतियां आपस में इस प्रकार से रच-बस जाते हैं कि विश्व रूपी उद्यान में यह सबसे रंगीन और खुशबूदार गुलदस्ता नज़र आता है," कहते हैं, अत्यब सिद्धीकी, मुस्लिम विचारक व अधिवक्ता। वास्तव में धर्म तो एक ही होता है, भले उसे नाना प्रकार के पंथों के नाम से पुकारा जाए, जैसे भगवान तो एक ही होता है, जैसे सरसंघचालक मोहन भागवत भी आए दिन कहा करते हैं। रास्ते अलग-अलग अवश्य हों, मगर मंजिल तो एक ही है।
विवाद से संवाद की ओर
यादि यह कहा जाए कि देश का भला जब तक नहीं हो सकता जब तक मुस्लिम तबके को विवाद से निकाल कर संवाद के प्रांगण में नहीं लाएंगे तब तक देश प्रगति के मार्ग पर नहीं अग्रसर हो सकता तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस प्रकार से शाहिद अख्तर ने झारखंड में बतौर राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष होने के समय से बेशुमार मुस्लिमों को भारत सरकार की योजनाओं से लाभान्वित किया है उसके कारण सरकार और मुसलमानों में न केवल संवाद के रास्ते खुले हैं, बल्कि सद्भावना का संचार भी हुआ है। एक समय था कि कांग्रेसियों व वामपंथियों के द्वारा बहलाए-फुसलाए व बहकाए जाने पर मुस्लिम संघ और भाजपा का नाम लेने तक को तैयार नहीं थे, मगर फिर सरकार की कुछ अच्छी योजनाओं और शाहिद जैसे सुलझे हुए लोगों द्वारा मुसलमानों और संघ के बीच पुल स्थापित करने तथा भ्रांतियों को दूर करने के बाद काफ़ी बदलाव आ रहा है और लाखों मुसलमान आपसी भाईचारे पर निगाहें केंद्रित कर संघ और भाजपा से जुड़ रहे हैं क्योंकि वे सरकार की वसुधैव कुटुंबकम् के मंत्र से जुड़ते जा रहे हैं जो हम सब की दो दशकों की मेहनत और जुझारू संघर्ष का परिणाम है।
जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास व सबका प्रयास" मंत्र का संबंध है, पुस्तक ने बताया है कि मुस्लिम इस अध्याय का एक महत्वपूर्ण भाग हैं, क्योंकि मोदी जी मुस्लिमों के बारे में कहते हैं कि वे उनके एक हाथ में क़ुरान और एक में कंप्यूटर देखना चाहते हैं। साथ ही वे कहते हैं कि मुस्लिमों को वे अपनी संतान की भांति मानते हैं और उनके साथ वे बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं
यहां इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि शाहिद अपने छात्र काल से ही मुसलमानों को समझाते चले आ रहे हैं कि कांग्रेस उनको मात्र वोट बैंक समझती है और उनको विकास, शिक्षा, आर्थिक संपन्नता आदि से दूर रखना चाहती है। यही कारण है कि कांग्रेस ने उन्हें सदा शोषित किया और उनकी बस्तियों में बजाए स्कूल, कॉलेज, क्रीड़ांगन, उद्यान, डिस्पेंसरियां आदि खोलने के थाने खोले। बावजूद इसके, मुस्लिम कांग्रेस को ऐसे वोट देते चले आए हैं, जैसा कि क़ुरान में कहीं कहा गया हो या हज़रत मुहम्मद (सल्लल.) ने कहा हो, "ऐ मुसलमानों, कांग्रेस को वोट दो!" मुस्लिमों को समझाया जाता है कि चुनाव में अनर्गल बातों से बचें, जैसे कि मुस्लिम क्षेत्रों में शोर मचाना कि उसी को वोट दिया जाए जो भाजपा को हरा सके।
अतः जो भी अच्छा प्रत्याशी हो, भले ही किसी भी पार्टी से हो उसे सत्ता दी जानी चाहिए। इनके वोटों से व इनका दोहन कर, छह दशकों तक कांग्रेस ने सत्ता का सुख भोगा है। मगर मुस्लिम समाज की हालत बद से बदतर होती चली गई। यही सभी बातें मुस्लिम समाज को समझाते चले आए हैं, शाहिद अख्तर जिससे मुस्लिमों और संघ के रिश्तों में माधुर्य का संचार हुआ है। कव्वाल यूसुफ निजामी की दिल छू जाने वाली पंक्तियां :
"मुझे सुकून मिलता है मेरी आजान से
यह देश सुरक्षित है गीता के ज्ञान से।"

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