For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

संघ प्रमुख का ‘ज्ञान- सन्देश’

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत ने यह कह कर कि काशी के ज्ञानवापी क्षेत्र के मुद्दे पर कोई नया आन्दोलन चलाने का कोई इरादा नहीं है और यह मसला अदालत के समक्ष रखे गये साक्ष्यों के आधार पर ही सुलझना चाहिए।

02:27 AM Jun 04, 2022 IST | Aditya Chopra

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत ने यह कह कर कि काशी के ज्ञानवापी क्षेत्र के मुद्दे पर कोई नया आन्दोलन चलाने का कोई इरादा नहीं है और यह मसला अदालत के समक्ष रखे गये साक्ष्यों के आधार पर ही सुलझना चाहिए।

संघ प्रमुख का ‘ज्ञान  सन्देश’
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत ने यह कह कर कि काशी के ज्ञानवापी क्षेत्र के मुद्दे पर कोई नया आन्दोलन चलाने का कोई इरादा नहीं है और यह मसला अदालत के समक्ष रखे गये साक्ष्यों के आधार पर ही सुलझना चाहिए जिसे हिन्दू व मुसलमान दोनों ही पक्षों को मानना चाहिए और सामाजिक सौहार्दता बनाये रखने में योगदान करना चाहिए, पूरी तरह ऐसा राष्ट्रवादी बयान है जिससे हर उदारवादी धर्मनिरपेक्षता का अलम्बरदार भी सहमत हुए बिना नहीं रह सकता। ज्ञानवापी मामले में मूल प्रश्न इतिहास का है जिससे वर्तमान पीढ़ी के हिन्दू और मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। तो मूल प्रश्न यह है कि फिर आज के मुसलमानों को पिछले इतिहास में मुस्लिम आक्रान्ता राजाओं या सुल्तानों अथवा बादशाहों की कारस्तानियों के समर्थन में आंख मूंद कर आगे क्यों आना चाहिए?  केवल समान मजहब के आधार पर ​किसी हिन्दू या मुसलमान राजा के कुकर्मों का समर्थन करना अन्याय का समर्थन करना ही है वह भी तब जब इतिहास चीख- चीख कर गवाही दे रहा हो कि औरंगजेब ने बाकायदा शाही फरमान जारी करके काशी के विश्वनाथ धाम व मथुरा के श्री कृष्ण जन्म स्थान मन्दिर को तोड़ने का आदेश दिया था। औरंगजेब का यह फरमान बीकानेर के संग्रहालय में रखा हुआ है जो मूल रूप से फारसी में है परन्तु इसका अंग्रेजी व हिन्दी में अनुवाद भी इतिहासकारों ने किया है जो निर्विवाद है।
Advertisement
 संघ प्रमुख श्री भागवत ने नागपुर में संघ के विशिष्ट पदाधिकारी सम्मेलन में किये गये अपने उद्बोधन में साफ किया कि मुस्लिम भी इसी देश के हैं और उनके पुरखे भी हिन्दू ही रहे हैं। उन्होंने किसी कारणवश इस्लाम धर्म स्वीकार कर पृथक पूजा पद्धति अपनाई। अतः उनसे किसी भी प्रकार का द्वेष उचित नहीं है। हमारी संस्कृति में पृथक पूजा पद्धति के विरोध के लिए कोई स्थान नहीं रहा है। लेकिन श्री भागवत ने इसके साथ ही एक अत्यन्त महत्वपूर्ण सन्देश देते हुए समस्त हिन्दू समाज को सचेत किया कि वह हर मस्जिद में शंकर या शिवलिंग ढूंढ़ने की बात न करें। वास्तविकता तो यही रहेगी कि मुस्लिम आक्रान्ता राजाओं ने अपनी सत्ता की साख जमाने के लिए मन्दिरों पर आक्रमण किये और उनमें विध्वंस भी किया। श्री भागवत के शब्द ही मैं यहां उद्घृत करता हूं।’’ आजकल जो ज्ञानवापी मुद्दा गरमा रहा है। ज्ञानवापी का अपना इतिहास है जिसे हम अब बदल नहीं सकते हैं क्योंकि इतिहास हमने नहीं बनाया है । इसे बनाने मंे न आज के हिन्दू का हाथ है और न मुसलमानों का। यह अतीत में घटा।
भारत में इस्लाम आक्रान्ताओं के माध्यम से आया। आक्रन्ताओं ने हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया जिससे इस देश पर उनके हमलों से निजात पाने वाले लोगों (हिन्दुओं) का मनोबल गिर सके। एेसे देश भर में हजारों मन्दिर हैं । अतः भारत में आज एेसे मन्दिरों की अस्मिता पुनः स्थापित करने की बात हो रही है जिनकी लोगों के हृदय में विशेष हिन्दू प्रतिष्ठा या मान्यता है। हिन्दू मसलमानों के ​िखलाफ नहीं हैं। मुसलमानों के पुरखे भी हिन्दू ही थे। मगर रोज एक नया मन्दिर-मस्जिद का मामला निकालना भी अनुचित है। हमें झगड़ा क्यों बढ़ाना। ज्ञानवापी के मामले हमारी श्रद्धा परंपरा से चलती आयी है। हम यह निभाते चले आ रहे हैं, वह ठीक है। पर हर मन्दिर में शिवलिंग क्यों ढूंढना ? वो भी एक पूजा है। ठीक है बाहर से आयी है। मगर जिन्होंने अपनाया है वे मुसलमान भाई बाहर से सम्बन्ध नहीं रखते। यह उनको भी समझना चाहिए। यद्यपि पूजा उनकी उधार की है। उसमें वे रहना चाहते हैं तो अच्छी बात है। हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं।’’ इस कथन से साफ है कि संघ काशी के ज्ञानवापी को मुस्लिम विरोध का प्रतीक नहीं बनाना चाहता और न ही एेसा मानता है बल्कि वह इतिहास की आतंकी व आततायी घटना का संशोधन चाहता है। एेसा ही मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान के बारे में है। संघ प्रमुख के बयान से स्पष्ट है कि भारत हिन्दू व मुसलमानों दोनों का ही है मगर दोनों को एक-दूसरे की उन भावनाओं का आदर करना चाहिए जिनसे उनकी अस्मिता परिलक्षित होती है। काशी  विश्व की प्राचीनतम नगरी मानी जाती है और इस देश के हिन्दुओं का मानना है कि इसकी रचना स्वयं भोले शंकर ने की है तो मुसलमानों को भी आगे आकर अपनी हट छोड़नी चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि हिन्दुओं के लिए काशी का वही स्थान है जो मुसलमानों के लिए काबे का। क्योंकि सनातन धर्म इसी देश में अनादिकाल से चल रहा है तो भारत के कण-कण में इस धर्म के चिन्ह बिछे हुए हैं जो बहुत स्वाभाविक हैं क्योंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों की रचना इसी देश में हुई है जिनमें विभिन्न विशिष्ट  स्थानों का वर्णन है और उन्हीं को मिलाकर भारत देश का निर्माण हुआ है। अतः संघ प्रमुख की बातों को पूरा देश मनन करे और देश के संविधान पर पूरा भरोसा रखे।
Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×