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सरदार पटेल और इन्दिरा गांधी

आज 31 अक्टूबर का दिन स्वतन्त्र भारत के इतिहास में बहुत महत्व रखता है।

12:35 AM Oct 31, 2022 IST | Aditya Chopra

आज 31 अक्टूबर का दिन स्वतन्त्र भारत के इतिहास में बहुत महत्व रखता है।

आज 31 अक्टूबर का दिन स्वतन्त्र भारत के इतिहास में बहुत महत्व रखता है। इस दिन एक महान विभूति सरदार वल्लभ भाई पटेल का अवतरण हुआ और दूसरी अजीम हस्ती इन्दिरा गांधी की शहादत हुई। दोनों ने ही भारत राष्ट्र की एकता व मजबूती में अविस्मरणीय योगदान किया। सरदार पटेल स्वतन्त्रता सेनानी थे और दूरदर्शी राजनेता ( स्टेट्समैन) थे जबकि श्रीमती इन्दिरा गांधी एक सफल राजनीतिज्ञ और स्वातंत्र्योत्तर भारत की विशिष्ट नवनिर्माता थीं। निश्चित रूप से सरदार पटेल का काम बहुत बड़ा था क्योंकि उन्हें अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई भारत को खंड-खंड रखने की विरासत पर एक मजबूत और एकीकृत भारत की इमारत खड़ी करनी थी। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने न केवल भारत को दो हिस्सों में बांटते हुए पाकिस्तान का निर्माण किया था बल्कि सात सौ ज्यादा छोटी बड़ी देशी रियासतों के लिए खुद मुख्तार रहने या भारत-पाकिस्तान में से किसी एक स्वतन्त्र राष्ट्र में स्वयं को विलय करने का विकल्प खुला रखा था। अंग्रेज ऐसा  पेंच डाल कर गये थे कि उसके निदान के लिए तत्कालीन कांग्रेस के पास सरदार पटेल जैसा दृढ़ प्रतिज्ञा कुशल रणनीतिकार मौजूद था। 
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सरदार पटेल आजादी के पदार्पण वर्ष 1946-47 के दौरान वायसराय की अध्यक्षता में गठित पं. जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट मिशन अधिशासी परिषद या अन्तरिम सरकार में गृह विभाग संभाल चुके थे। अतः आजादी मिलने पर वह नेहरू जी की राष्ट्रीय सरकार में गृहमन्त्री व उप-प्रधानमन्त्री बनाये गये जिससे देशी रियासतों के भारतीय संघ में विलय की जिम्मेदारी उन्हें मिली और उन्होंने इस कार्य को इतनी कुशलता के साथ किया कि भारतीय क्षेत्र में पड़ने वाली 565 रियासतों ने केवल कुछ को छोड़ कर भारतीय संघ में अपना विलय करना मंजूर किया। परन्तु हैदराबाद के निजाम ने शुरू में खुद को स्वतन्त्र रखने व भीतर से पाकिस्तान के साथ मिलने की इच्छा को जीवित रखा जिसकी वजह सरदार पटेल ने शुरू में बातचीत से निजाम को रास्ते पर लाना चाहा, मगर उसके न मानने पर उन्होंने अक्टूबर 1949 में ‘आपरेशन पोलो’ जैसा पुलिस अभियान चलाया और हैदराबाद रियासत का तब भारत में विलय हुआ। लेकिन इससे पहले ही 1 जून, 1949 को भोपाल रियासत के पाकिस्तान के हामी समझे जाने वाले नवाब ने भी अपनी रियासत का भारतीय संघ में विलय कर दिया था। गुजरात में जूनागढ़ रियासत का नवाब जब पाकिस्तान भाग गया तो उन्होंने इस रियासत में जनमत संग्रह करा कर पहले ही इसका विलय भारत में कर लिया था। उस समय की राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए यह बहुत दुष्कर कार्य था जिसे सरदार पटेल जैसा दृढ़ निश्चयी दूरदृष्टा हल कर सकता था। इसीलिए उनके बारे में एक कवि ने लिखा :
‘‘रहा खेलता सदा समझ कर इस जीवन को खेल
राजनीति का कुशल खिलाड़ी वह सरदार पटेल।’’
परन्तु 31 अक्टूबर को आतंकवाद के खिलाफ लड़ती हुई शहीद हुई प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सरदार पटेल की विरासत को कुछ इस प्रकार आगे बढ़ाया कि उन्होंने न केवल भारत की भौगोलिक सीमाओं का ही विस्तार किया बल्कि उस पाकिस्तान को भी बीच से चीर कर दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया जिसे अंग्रेजों ने अपनी राजनैतिक लालसा को पूरा करने के लिए बनाया था। इन्दिरा जी को नारी शक्ति पुंज कहा गया और साथ ही प्रियदर्शनी भी कहा गया। उन्हें भारतीय राजनीति में आम आदमी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने वाली सफल राजनीतिज्ञ कहा गया और लोगों को मजबूत कर देश को मजबूत बनाने वाली अद्भुत नेत्री के रूप में भी देखा गया। उन्होंने 1974 में भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाया और सिक्किम का भारत में विलय करके देश की भौगोलिक सीमाओं में विस्तर करने वाली पहली प्रधानमन्त्री के रूप में देखा गया। 
1970 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण व राजा-महाराजाओं का प्रिविपर्स खत्म करके अपनी प्रखर समाजवादी छवि बना लेने वाली इन्दिरा गांधी ने राष्ट्रवाद के चरमोत्कर्ष को छूते हुए पाकिस्तान के दो टुकड़े कर डाले और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में बदल डाला। उन्होंने यह कार्य विश्व शक्ति अमेरिका के जबर्दस्त विरोध के बीच किया और राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए बांग्लादेश युद्ध से पहले ही सोवियत संघ के साथ बीस वर्षीय रक्षा सन्धि की। पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति को बदलने वाली इंदिरा गांधी 1975 में एक भूल कर गईं और 18 महीनों के लिए उन्होंने देश को इमरजेंसी में धकेल दिया जिसकी वजह से उनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी आलोचना हुई और भारत के अलग-थलग पड़ जाने की आशंका में उन्होंने 18 महीने बाद इसे हटाकर आम चुनाव कराये जिसमें वह अपनी रायबरेली की लोकसभा सीट भी हार गईं। मगर जनता को इंदिरा गांधी पर इतना यकीन था कि केवल तीन वर्ष बाद ही जब चुनाव हुए तो पुनः इन्दिरा जी भारी गाजे-बाजे के साथ सत्तारूढ़ हुईं। अन्त में 31 अक्टूबर, 1984 में आतंकवाद की शिकार हो गईं। इसके बावजूद उनके बारे में निर्भय हाथरसी की लिखी गई यह कविता आज भी लोगों को याद है,
‘‘वह नीली-पीली आंधी है, वह इन्दिरा नेहरू गांधी है।’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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