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मोदी जी कश्मीर को बचाओ

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11:29 PM Jun 18, 2017 IST | Desk Team

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घाटी में शनिवार को फिर जनाजे उठे। इनमें एक जनाजा अनंतनाग जिला के अचाबल में हुए आतंकवादी हमले में जम्मू-कश्मीर पुलिस के शहीद हुए 6 जवानों में से एक फिरोज अहमद डार का था। एक जनाजा उठा लश्कर-ए-तैयबा के जुनैद मट्टू का जो कि कुलगाम में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारा गया। दोनों के जनाजे में लोग शामिल हुए। फिरोज अहमद डार के जनाजे में तिरंगा दिखाई दिया तो आतंकवादी के जनाजे में पाक का झंडा। इस बीच फिरोज अहमद डार ने 2013 में फेसबुक में जो कुछ लिखा था, वायरल हो रहा था। शहीद डार ने लिखा था कि ”कौन जानता है कि कब्र में जाने के बाद पहली रात हमारे साथ क्या होगा, वहां आप अकेले होंगे, अंधेरा होगा और आप किसी से मदद नहीं मांग सकेंगे। आप पछताएंगे कि आपने अल्लाह के आदेश का पालन नहीं किया, आप अपने कर्मों के साथ वहां कब्र में होंगे अकेले।” ड्यूटी पर अपने कत्र्तव्य का निर्वाह करने वाले फिरोज अहमद डार और अन्य 6 पुलिसकर्मियों को राष्ट्र हमेशा याद रखेगा। इन जनाजों से जम्मू-कश्मीर के दो चेहरे दिखाई दिए, एक देश प्रेम का चेहरा और दूसरा देश विरोधी चेहरा।

बुरहान वानी, सबजार बट और जुनैद मट्टू भी कश्मीरियों के बेटे थे तो आतंकवादियों के हाथों शहीद होने वाले पुलिसकर्मी भी कश्मीरियों के बेटे थे। आतंकवादियों ने जिस तरह से पुलिसकर्मियों को निशाना बनाकर उनके शवों से बर्बरता की, उससे भी कश्मीरियत शर्मसार हुई। इसमें कोई संदेह नहीं कि बुरहान वानी के पिछले वर्ष जुलाई माह में सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद घाटी में हालात बिगड़ते ही गए। वानी के बाद सबजार बट उसका उत्तराधिकारी बन गया था जो पिछली 27 मई को पुलवामा के त्राल में सोईमोह गांव में हुई मुठभेड़ में मारा गया था और अब जुनैद मट्टू को मार गिराया गया है। कश्मीर में फिलहाल शांति की सम्भावनाएं नजर नहीं आ रहीं। ऐसा अकारण नहीं। हैरानी होती है जब वानी, सबजार और अन्य आतंकवादियों की मौतों पर मानवाधिकार का ढिंढोरा पीटने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी और अन्य पुलिसकर्मियों की शहादत पर मौन हो जाते हैं? क्या ऐसे लोग पुलिस वालों को कश्मीरी नहीं मानते? फिरोज अहमद डार की दो छोटी बेटियां अदा और सिमरन जब बड़ी होंगी तो क्या वे अपनी कौम से सवाल नहीं करेंगी कि आखिर उनका कसूर क्या था, जो उन्हें अनाथ बना डाला गया? अरुण जेतली ने कुछ समय पहले कहा था कि कश्मीर में एक वर्ग है जिससे सुरक्षा उपायों के जरिये निपटना आवश्यक है और दूसरा वर्ग है जिसके लिए दोस्ताना नागरिक उपायों की जरूरत है और हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं। सुरक्षा बल और पुलिस आतंकवाद का मुकाबला तो अपनी शहादतें देकर कर रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ उसके आपरेशन के चलते अलगाववादी भी कुछ ज्यादा ही बिलबिलाए हुए हैं लेकिन जहां तक राज्य में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार का सवाल है वह भी आम कश्मीरियों को आतंकवाद से दूर रखने के लिए उनसे राब्ता कायम करने में नाकाम हो रही है। न तो वह आम कश्मीरी युवाओं को आतंकवादी समूहों में शामिल होने से रोकने में सफल रही और न ही वह आम लोगों के लिए दोस्ताना नागरिक माहौल बना पा रही है।

2008 के विधानसभा चुनावों के बाद यूपीए ने भी ऐसी ही नीति अपनाई थी जो कि असफल रही थी। विधानसभा चुनावों में जब घाटी में रिकार्ड तोड़ मतदान हुआ तो लगा था कि कश्मीर में नई सुबह का आगाज होगा क्योंकि वहां के अवाम ने भारत के लोकतंत्र में गहरी आस्था व्यक्त की थी। मुझे लगता है कि केन्द्र सरकार यही सोच रही है कि कश्मीर में मौजूदा आतंकवाद पाकिस्तान की साजिश है। 1990 में पाकिस्तान ने सैकड़ों युवा कश्मीरियों को अफगानियों के लिए स्थापित मुजाहिद्दीन ट्रेनिंग कैम्पों में प्रशिक्षण दिया और घाटी में 5 हजार से अधिक छोटे हथियार पहुंचाए लेकिन अब 27 वर्ष बाद भी हम केवल पाकिस्तान, उसकी सेना और आईएसआई को कोस रहे हैं। समस्या यह भी है कि आज की पीढ़ी से पहले वाली पीढिय़ों के पास परिवार थे, उद्योग थे, नौकरियां थीं और महत्वाकांक्षाएं थीं और इसलिए वह शांति की चाहत में अपनी राजनीतिक मांगों को कम करने के लिए तैयार थीं लेकिन आज की युवा पीढ़ी खासकर 20 वर्ष से कम की आयु वालों के लिए तो कुछ भी नहीं है। उसने कुछ नहीं देखा। उसने सुनी तो गोलियों और बमों की आवाजें। एक के बाद एक आतंकियों को मार गिराए जाने को भी उसने दमनकारी माना और वह उग्र होती गई।

प्रधानमंत्री मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी यही है कि आम युवाओं को आतंकी संगठनों से दूर कैसे रखा जाए। आम युवाओं को आतंक से दूर रखने का अंतिम उपाय यही है कि कश्मीर में महबूबा सरकार को बर्खास्त कर राज्यपाल शासन लगाया जाए। तब राज्यपाल शासन आम लोगों से गहरा सम्पर्क कायम करे और उन्हें चरमपंथी विचारधारा से अलग रखने का माहौल तैयार करे। सेना और अन्य सुरक्षा बल अपना काम करते रहें। मोदी जी कश्मीर को बचाइये, उन्हें अटल जी की तरह कश्मीरियों में विश्वास जगाना होगा, यह काम भाजपा के विधायक भी लोगों के बीच जाकर कर सकते हैं। कश्मीर को शांत बनाने के लिए मोदी जी को पहल करनी होगी, लोगों का भरोसा उन पर कायम है। भारत को अपने दम पर आतंकवाद का मुकाबला करना ही होगा।

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