Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

ऋण लेकर घी पीने वालों पर शिकंजा

NULL

12:19 PM Jun 16, 2017 IST | Desk Team

NULL

देश की अर्थव्यवस्था की छाती पर बहुत बड़ा बोझ है, यह बोझ है गैर-निष्पादित परिसम्पत्तियों का। ऋण लेकर घी पीने वाले विजय माल्या जैसे लोग विदेश में मजे से रह रहे हैं, कुछ गर्मियों के दिनों में सैर-सपाटे के लिए निकले हुए हैं। लंदन में मैच देखने आए विजय माल्या को देखकर चोर-चोर की आवाजें लगीं लेकिन माल्या ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीयों को इस बात की पीड़ा है कि माल्या देश का हजारों करोड़ डकार कर एशो-आराम की जिन्दगी बिता रहा है जबकि देश के किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। लोगों में ऐसी धारणा घर कर चुकी है कि सरकारें कार्पोरेट सैक्टर की हितैषी हैं। बड़े घरानों पर ऋण वसूली के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती जबकि गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। किसानों से ऋण वसूली के लिए बैंक गांवों में मुनादी तक करा देते हैं। ऐसी धारणा को खंडित करने के लिए मोदी सरकार ने कदम उठाए हैंं। रिजर्व बैंक भी सक्रिय हो गया है। रिजर्व बैंक ने ऐसे 12 खाताधारकों को चिन्हित किया है जिनके ऊपर बैंकों के कुल फंसे कर्ज की एक चौथाई राशि है। रिजर्व बैंक ने चिन्हित 12 खातों को इन्साल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के अन्तर्गत कार्रवाई के लायक पाया।

बैंकिंग क्षेत्र संकट में है, 8 लाख करोड़ के कुल एनपीए में 6 लाख करोड़तो राष्ट्रीयकृत बैंकों का है। वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक बढ़ते एनपीए की समस्या को लेकर समान रूप से चिंतित रहे लेकिन गाड़ी अटकी रही है। अब जाकर इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाई है और रिजर्व बैंक को खुद कार्रवाई करने के अधिकार दे दिए गए हैं। सरकारें आमतौर पर औद्योगिक विकास के नाम पर कार्पोरेट जगत को विशेष सुविधाएं देती हैं। नया कम्पनी कानून 2013 में लाया गया था, जिसने 60 वर्ष पुराने कानून की जगह ली थी। इस कानून के मुताबिक नई कम्पनी शुरू करने के लिए केवल एक-दो दिन का समय लगना चाहिए। पहले यह समय सीमा 9-10 दिनों की थी, जिसे मौजूदा समय में कम करके चार-पांच दिनों पर लाया गया है। कम्पनियों को जल्द ऋण देने के लिए बैंक अधिकारियों पर दबाव बनाया जाता है, यह दबाव कार्पोरेट सैक्टर का भी होता है औैर राजनीतिक भी है। कई बार उद्योग और व्यापार सही ढंग से नहीं चल पाते, कई बार उन्हें मंदी का सामना करना पड़ता है, उन्हें लाभ होता नहीं बल्कि ऋण का ब्याज चुकाने में भी परेशानी होती है। मजबूरन उद्योग ठप्प करने पड़ते हैं।  कई बार कम्पनियों की वित्तीय सेहत का परीक्षण किए बिना बैंक उन्हें ऋण दे देते हैं। जब यह ऋण डूबता है तो एनपीए में बदल जाता है। कई बार इसमें बड़े खेल भी हो जाते हैं। कार्पोरेट जगत बैंकों से हजारों करोड़ का ऋण लेकर उसे अन्य काम धंधों में लगा देते हैं और कम्पनी का दीवाला निकाल देते हैं।

जैसा कि माल्या ने बैंक ऋण के पैसे से आईपीएल टीम को खरीदा और अपनी कम्पनी का दीवाला पीट दिया। कर्ज चुकाने में सक्षम उद्योगपति भी जानबूझ कर ऋण नहीं लौटाते। मजबूरन बैंकों को यह राशि बट्टे खाते में डालनी पड़ जाती है। इसी कारण कार्पोरेट जगत के पुनर्गठित कर्ज की व्यापकता और एनपीए में लगातार इजाफा हो रहा है। आज कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां ढिंढोरा पीट रही हैं कि मोदी सरकार कार्पोरेट समर्थक सरकार है लेकिन उद्योगपतियों को अनाप-शनाप ऋण कोई पिछले तीन साल में तो दिए नहीं गए। मनमोहन सिंह शासन के दौरान उद्योगपतियों को संदिग्ध तरीके से ऋण दिए गए। कार्पोरेट सैक्टर का आर्थिक बुनियाद खड़ी करने में महत्वपूर्ण योगदान होता है लेकिन उनकी बैलेंस शीट ही ठीक नहीं होगी तो फिर घाटा ही होगा। विकास के लिए निजी क्षेत्र में निवेश करना जरूरी है। बैंकों के पास धन नहीं होगा तो वे ऋण कैसे देंगे। बढ़ते एनपीए की समस्या का बोझ आम आदमी पर पड़ता है। रिजर्व बैंक की आंतरिक सलाहकार समिति की बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि ऐसे खाते जिसमें मोटी रकम फंसी है, उन पर मुख्य रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाए। ऋण वसूली का काम सरल नहीं है। सरकार और रिजर्व बैंक को ऋण देने और ऋण वसूली की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना होगा। लोगों को यह पता चलना चाहिए कि क्या कार्रवाई की गई और क्या हासिल हुआ। बैंकिंग व्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होती है, यह कमजोर हुई तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। बैंकों को पहले से अधिक सतर्क होकर काम करना पड़ेगा क्योंकि उनके ढीले-ढाले रवैये के कारण ही बैंकिंग व्यवस्था लडख़ड़ाई है। देश की जनता के बीच बैंकिंग तंत्र को अपनी साख बहाल करनी ही होगी। ऋण लेकर घी पीने वालों पर शिकंजा कसना ही होगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article