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रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता

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10:05 AM Jan 21, 2019 IST | Desk Team

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जब कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी की रैली में 22 विपक्षी दलों के नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे रहे थे, उसी समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सूरत के हजीरा में वज्र के-9 पर सवार होकर होवित्जर तोप के बारे में जानकारी ले रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपना अन्दाज है और अपने तेवर हैं। उन्होंने लार्सन एण्ड ट्रबो की होवित्जर तोप निर्माण इकाई का उद्घाटन किया। यह पहली निजी निर्माण इकाई होगी जहां स्वचालित के-9 वज्र होवित्जर तोपों का निर्माण किया जाएगा। एल एण्ड टी ने 2017 में मेक इन इण्डिया की पहल के तहत भारतीय सेना को वज्र टी 155 मिलीमीटर ट्रैक्ड सैल्फ प्रोपेल्ड तोप प्रणालियों की 100 इकाइयों की सप्लाई करने के लिए 4500 करोड़ का अनुबंध हासिल किया था।

किसी भी देश के लिए उसकी सुरक्षा उसकी प्राथमिकताओं में सर्वोपरि है। देश कितना ही शक्तिशाली और समृद्ध क्यों न हो, उसे अपनी सुरक्षा की चिन्ता हमेशा बनी रहती है। दुश्मन आपकी आर्थिक प्रगति को तहस-नहस करने के लिए, आपके संसाधनों पर कब्जा करने के लिए या फिर विस्तारवादी कारणों से हमला करके आपको तबाह कर सकता है इसलिए देश अपनी सुरक्षा व्यवस्था को चौकस रखते हैं। अपने को अत्याधुनिक हथियारों, मिसाइलों, लड़ाकू हवाई जहाजों, पनडुब्बियों इत्यादि से लैस रखना पड़ता है ताकि कोई भी आपकी तरफ आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं कर सके। हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है कि ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ यानी इस धरती के संसाधनों को केवल वीर या शक्तिशाली भोग पाते हैं। भारत की विडम्बना यह रही कि-

यहां जीप खरीदने में दलाली हो जाती थी,
यहां तोप खरीदने में दलाली हो जाती थी,
हर जगह बैठे थे दलाल यहां,
हैलिकॉप्टर खरीद में भी दलाली हो जाती थी,
हर सौदे में गुरु घंटाली हो जाती थी।

भारत प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरता रहा। हम चीन से एक और पाकिस्तान से चार युद्ध झेल चुके हैं। हमारे पास अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अत्याधुनिक हथियार भी होने चािहएं। भारत आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार आयात करने वाला देश है। रक्षा के मामले में हमेशा के लिए आयात पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता कई कारणों से आवश्यक है। हथियार बेचने वाले देश मनमानी कीमत वसूल करते हैं। हथियार निर्माता विकसित देश बांह मरोड़ने के लिए भी जाने जाते हैं। सोवियत संघ हमारे लिए काफी मददगार साबित हुआ। सोवियत संघ के विखण्डन के बाद रूस भी हमारे लिए काफी मददगार साबित हुआ। आज भी हम रक्षा जरूरतों को पूरी करने के ​लिए उस पर निर्भर हैं। बदलते परिदृश्य में यह जरूरी है कि भारत रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बने।

भारत वर्षों से आधुनिक हथियारों का खरीदार बना रहा लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार ने दृढ़ता का परिचय देते हुए शस्त्र निर्यातक बनने का बीड़ा उठाया है। देश में संसाधनों की कमी नहीं है। राजनीतिक साहस की जो कमी रही, उस कमी को मोदी सरकार ने पूरा कर दिया। मोदी सरकार ने मेक इन इण्डिया के तहत रक्षा उत्पादन को प्राइवेट सैक्टर के लिए खोला। अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में पहला हल्का लड़ाकू विमान उड़ाया गया था। वाजपेयी जी ने इसका नामकरण तेजस किया था। तब से आज तक इसे फाइनल स्वरूप में आने में काफी समय लग गया।

अर्जुन टैंक, पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, नाग, आकाश, ब्रह्मोस मिसाइल का विकास पहले ही हो चुका है। भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के अनवरत, अथक प्रयास से यह सम्भव हो सका है, जिसके लिए संगठन के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस आत्मनिर्भरता को हासिल करने में हमें न्यूनतम विदेशी सहायता ही मिली है। अब इनके उत्पादन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उत्पादन में निजी क्षेत्र की भी भागीदारी सुनिश्चित की गई जिसमें इनका द्रुतगति से उत्पादन हो सके। यह अच्छी बात है कि अमेरिकी हल्की होवित्जर तोपों को टक्कर देने वाली हल्की होवित्जर तोपों का भारत में स्वदेशी तकनीक से विकास कर लिया गया है। इन तोपों की मदद से सीमा पार स्थित पहाड़ी चोटियों पर दुश्मन के सैन्य ​ठिकानों को तहस-नहस किया जा सकता है। गौरतलब है कि अमेरिकी बीएई सिस्टम्स से दो साल पहले भारतीय थलसेना को 145 होवित्जर तोपें मुहैया कराने का आर्डर दिया गया था। ये तोपें खासकर पर्वतीय चोटियों पर तैनात की गईं।

चूंकि इन तोपों को पहाड़ी चोटियों पर तैनात किया जाता है इसलिए इनका वजन कम रखा जाता है। चोटियों पर कुछ मिनटों के भीतर इन्हें हेलिकॉप्टर की मदद से पहुंचाया जाता है। इसी खासियत की वजह से सेनाओं ने अल्ट्रा लाइट होवित्जर तोपों को तैनात ​करना शुरू​ किया है। रेगिस्तान की रेतों में भी यह तोप घूम-घूमकर दुश्मन के छक्के छुड़ा सकती है। स्वदेशी होवित्जर तोप दो किस्मों में विकसित की गई है-स्टील और टाइटेनियम। स्टील से बनी तोप 6.8 टन वजन की है जबकि टाइटेनियम से बनी तोप पांच टन से कम वजन की है। इन तोपों के निर्माण में विशेष लाइट वेट मैटीरियल का इस्तेमाल किया गया है।

पहाड़ी इलाके में भारतीय थलसेना की रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप इन तोपों का डिजाइन किया गया है। रणक्षेत्र में इन्हें हेलिकॉप्टरों की मदद से तैनात किया जाता है। इन्हें रेलवे और सड़क मार्ग से भी रणक्षेत्र में भेजा जा सकता है। डिजिटल फायर कंट्रोल, गोला दागने की ऊंची दरें, विश्वसनीयता और आसान मेन्टेनेंस इनकी खासियत है। इसकी मारक दूरी 75 किलोमीटर है। ये तोपें प्रति मिनट 75 गोले दाग सकती हैं। चूंकि चीन और पाकिस्तान से लगी अधिकतर सीमा पर्वतीय इलाका है इसलिए भारतीय थलसेना को हल्की तोपों की भारी संख्या में जरूरत होगी इसलिए माना जा रहा है कि भविष्य में भारतीय थलसेना की जरूरतें स्वदेशी उत्पादन द्वारा पूरी की जा सकेंगी। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन ने भी रक्षा साजो-सामान विनिर्माण इकाइयों के लिए औद्योगिक गलियारे का उद्घाटन किया। ये सभी कदम इस बात के संकेत हैं कि वह दिन अब दूर नहीं जब हम अपने रक्षा उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर नहीं रहेंगे और पूरी दुनिया में रक्षा उपकरणों का निर्यात कर सकेंगे।

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