बुजुर्गों की सेवा करें, तिरस्कार नहीं
उत्तर प्रदेश की रामनगरी अयोध्या में मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। किशन दासपुर के पास परिजन एक बुजुर्ग महिला को देर रात सड़क पर छोड़कर फरार हो गए थे। जिसके बाद अब बुजुर्ग महिला की मौत की खबर आ रही है। इससे पहले परिजन महिला को ई-रिक्शा से लाए और उसे अकेला छोड़कर चले गए। यह पूरी घटना सीसीटीवी में कैद हो गई, जिसमें दो लोग महिला को छोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और आरोपियों को पकड़ने का प्रयास कर रही है। इस घटना ने शहर भर में आक्रोश फैला दिया है। सोशल मीडिया पर भी देशभर से क्रोध मिश्रित संवेदना से भरे मैसेज की बाढ़ सी आई हुई है। कुछ दिनों पहले मुंबई में हाल ही में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया था। जहां एक पोता अपनी कैंसर पीड़ित दादी को कचरे के ढेर में फेंक गया था। जिसके बाद पुलिस ने पीड़ित महिला यशोदा गायकवाड़ के पोते का पता लगाया।
हालांकि अपनी सफाई में पोते ने कहा कि उसने दादी को कचरे में नहीं फेंका। उनको घर से निकलने की आदत थी लेकिन पुलिस जांच में साफ हो गया है कि पोता झूठ बोल रहा है। उसने ही दादी यशोदा को कूड़े के ढेर में फेंका था। ये दो घटनाएं तो बानगी भर हैं। बुजुर्गों से अपमान, प्रताड़ना, तिरस्कार और असंवेदनशील व्यवहार की खबरें प्रायः हम सुनते-पढ़ते रहते हैं। अफसोस इस बात का है कि समाज में बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशीलता बढ़ती जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बुजुर्ग परिवार के मुखिया होने के साथ एक मार्गदर्शक में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। अफसोस इस बात का है कि आधुनिकता की इस दौड़ में हम अपने बुजुर्गों की अहमियत भूल जाते हैं।
देश में औद्योगीकरण और नगरीकरण के विस्तार के साथ परिवार के मूल स्वरूप में भी व्यापक परिवर्तन हुए हैं। बदलते सामाजिक परिवेश में संयुक्त परिवारों का विखंडन बड़ी तेजी से एकल परिवार के रूप में हुआ है। अब गिने-चुने परिवारों में ही संयुक्त परिवार की अवधारणा देखने को मिलती है, जहां दो-तीन पीढ़ियां एक ही छत के नीचे साथ रहती हैं। शहरों में एकल परिवार का ही बोलबाला है। हालांकि अब गांव भी समाजीकरण की इस प्रक्रिया से अछूते नहीं रह गए हैं। विघटित संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था के एकल स्वरूप ने आधुनिक और परंपरागत-दोनों पीढ़ियों को समान रूप से प्रभावित किया है।
एक तरफ जहां आज की कथित आधुनिक पीढ़ी परंपरागत पालन-पोषण, बुजुर्ग सदस्यों के प्यार-दुलार और सामाजिक मूल्यों-संस्कारों से दूर होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ एकल पारिवारिक व्यवस्था ने बुजुर्गों को एकाकी जीवन जीने को विवश किया है। देश में बुजुर्गों का एक तबका ऐसा भी है जो या तो अपने घरों में तिरस्कृत व उपेक्षित जीवन जी रहा है, या फिर वृद्धाश्रमों में अपनी जिंदगी बेबसी के साये में बिताने को मजबूर है। समाज में बुजुर्गों पर होने वाले मानसिक और शारीरिक अत्याचार के तेजी से बढ़ते मामलों ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। परिजनों से लगातार मिलती उपेक्षा, निरादर भाव और सौतेले व्यवहार ने वृद्धों को काफी कमजोर किया है। बुजुर्ग जिस सम्मान के हकदार हैं, वह उन्हें नसीब नहीं हो पा रहा है। यही उनकी पीड़ा की मूल वजह है। दरअसल, देश में जन्म दर में कमी आने और जीवन-प्रत्याशा में वृद्धि की वजह से वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ी है लेकिन दूसरी तरफ गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा, समुचित देखभाल के अभाव और परिजनों से मिलने वाली उपेक्षा की वजह से देश में बुजुर्गों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। भारत इस वक्त दुनिया का सबसे युवा देश है।
यहां युवाओं की तादाद 65 फीसद है लेकिन बीते दिनों अमेरिका के जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2050 तक आज का युवा भारत तब ‘बूढ़ा’ हो जाएगा। उस समय देश में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना बढ़ जाएगी। सवाल यह है कि क्या तब हम अपनी ‘वृद्ध’ जनसंख्या की समुचित देखभाल की पर्याप्त व्यवस्था कर पाएंगे? विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर हर 6 में से 1 बुजुर्ग के साथ किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार होता है परंतु यह आंकड़ा वास्तविकता से बहुत कम हो सकता है क्योंकि बुजुर्ग अधिकांशतः अपमान या डर के कारण इन घटनाओं की रिपोर्ट नहीं करते। एक शोध के मुताबिक भारतीय घरों में कई तरीकों से बुजुर्गों को प्रताड़ित किया जा रहा है। इनमें परिजनों द्वारा अपमान, गाली-गलौच, उपेक्षा, आर्थिक शोषण और शारीरिक उत्पीड़न जैसे अमानवीय तरीके प्रमुख शामिल हैं। रिपोर्ट में यह बात भी उभर कर सामने आई है कि सताए गए 82 फीसद बुजुर्ग अपने साथ हुए बुरे बर्ताव की शिकायत दर्ज नहीं कराते हैं। वे इन मामलों को पारिवारिक मान कर छोड़ देते हैं या भविष्य की असुरक्षा को सोच कर भूल जाना पसंद करते हैं। हालांकि जिस गति से देश में बुजुर्गों के मान-सम्मान में कमी आई है, वह हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के अवमूल्यन को परिलक्षित करती है।
भारत में वृद्धों की सेवा और उनकी रक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं। केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए वर्ष 1999 में राष्ट्रीय नीति बनाई थी। इसके बाद 2007 में ‘माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक’ संसद में पारित किया गया। वर्ष 2015 में सरकार द्वारा बुजुर्गों को किसी तरह की स्वजनों से कोई परेशानी ना हो इसके लिए सख्त कानून बनाया गया। हमारा समाज किस दिशा की ओर जा रहा है, विचार करने की जरूरत है, क्योंकि इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि नैतिक जिम्मेदारी समझने की बजाय बुजुर्ग माता-पिता की सुरक्षा के लिए हमें कानून बनाने पड़ रहे हैं। घर के बुजुर्गों की सुरक्षा की जिम्मेदारी महज सरकारी दायित्व मान कर युवाओं का अपने कर्त्तव्यों से मुंह मोड़ना अनुचित है।
बुजुर्ग अवस्था, मानव जीवन की संवेदनशील अवस्था होती है। एक निश्चित आयु के बाद बुजुर्गों को कई तरह की शारीरिक-मानसिक समस्याओं से गुजरना पड़ता है। आज जो पीढ़ी युवावस्था में है वह कल वृद्धावस्था में पहुंचेगी। यदि हम आज बुजुर्गों के लिए संवेदनशील नहीं हैं तो आने वाली पीढ़ियां हमारे लिए भी वैसी ही होंगी। यह एक सामाजिक चक्र है जिसमें मानवीय व्यवहार की बुनियादी भावना को बनाए रखना आवश्यक है। आज जरूरत है कि हम केवल बुजुर्गों के अधिकारों के लिए आवाज़ न उठाएं, बल्कि उन्हें वह गरिमा दें जिसके वे हकदार हैं।