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सेवा, समर्पण, संस्कार...

आंखें नम हैं, बहुत मुश्किल है लिखना। परन्तु लिखना तो होगा। आज 5 साल हो रहे हैं…

10:39 AM Jan 18, 2025 IST | Kiran Chopra

आंखें नम हैं, बहुत मुश्किल है लिखना। परन्तु लिखना तो होगा। आज 5 साल हो रहे हैं…

सेवा  समर्पण  संस्कार

आंखें नम हैं, बहुत मुश्किल है लिखना। परन्तु लिखना तो होगा। आज 5 साल हो रहे हैं परन्तु हमेशा लगता है वो मेरे आसपास हैं। मुझे काम करने के लिए प्रेरित करते हैं।

एक लेखक होना, संपादक होना, क्रिकेटर होना और बलिदान के मार्ग पर चलते हुए सत्यता का कवच बनकर सामाजिक सेवा को आगे बढ़ाना, कई बार अपने लाइफ पार्टनर अश्विनी कुमार जी के बारे में सोचती हूं कि इतने सारे रिश्ते कोई कैसे निभा सकता है। लेकिन उन्होंने हर रिश्ते को मानवता की खातिर बेखौफ होकर निभाया और समाज के साथ-साथ देश के लिए इसी आवरण के तहत उन परंपराओं को आगे बढ़ाया जिसकी स्थापना अमर शहीद लाला जगत नारायण जी और अमर शहीद रमेश चंद्र जी ने की थी। लोगों के बीच में िमन्ना जी के नाम से पुकारे जाते और सबकी जुबां पर यही नाम रहता है।

किसी चीज की ललक और कर्त्तव्य निष्ठा क्या होती है यह अश्विनी कुमार ही जानते थे और वह ही इसे निभाते थे। एक आर्यसमाजी होने के नाते संस्कार उनके रोम-रोम में बसे थे। साप्ताहिक हवन यज्ञ से लेकर सामाजिक समरसता के रिश्ते जिस तरह से उन्होंने निभाए और नैतिकता को जिस तरह से उन्होंने निभाया, मेरा मानना है कि ऐसा कोई हो ही नहीं सकता। उनकी पुण्यतिथि को हम एक प्रेरणा और सामाजिक सेवा दिवस के रूप में मनाते हैं। क्योंकि उनका मानना था कि जब हम किसी चीज को खुद निभाते हैं, खुद करके दिखाते हैं तभी दुनिया के सामने एक उदाहरण बन सकते हैं। सामाजिक मर्यादाओं के मामले में अश्विनी कुमार सचमुच एक उदाहरण ही थे। वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के तत्वावधान में हम 18 जनवरी को ब्लूकार्ड धारकों के लिए सहायता वितरण कार्यक्रम एवं निःशुल्क हैल्थ कैम्प के रूप में मनाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। समाज के कमजोर वर्ग के साथ-साथ उनके आर्थिक उत्थान का अभियान आज भी जारी है और हमारी आखिरी सांस तक मानवता के लिए समर्पित यह मिशन जारी रहेगा।

मुझे याद है लाला जगत नारायण देश और समाज के एक वह अग्रणी नेता थे जिनके हर कदम को लेकर सबकी निगाहें होती थी कि वह अच्छाई  के मार्ग पर चल रहे हैं और हमें भी उसी पर चलना है। यही चयन अश्विनी कुमार जी ने किया। वह सामाजिक मूल्यों की रक्षा और नैतिकता की सुरक्षा को लेकर सदा सतर्क रहे और खुल्लम-खुल्ला सामाजिक बुराइयों का विरोध करते थे। जीवन में आज भी कुछ आडंबर और बुराइयां हैं जो समाज का हिस्सा हैं लेकिन अश्विनी कुमार इन सामाजिक बुराइयों का खुल्लम-खुल्ला विरोध करते थे। उदाहरण के तौर पर मेरी शादी आर्य समाज के विधानों के तहत हुई और एक रुपये के साथ हुई। क्योंकि लाला जी दहेज विरोधी थे और उन्होंने सारी जिंदगी समाज में दहेज को कुरीति माना। आगे चलकर इसी मंत्र को अश्विनी कुमार ने स्वीकार किया। मेरे तीनों पुत्रों की शादी आदित्य नारायण, आकाश और अर्जुन सवा रुपये के साथ ही हुई और सामाजिक नियमों की उस सुरक्षा की कड़ी के तहत हुई जिसमें दहेज की कोई जगह नहीं है। आज तक घर में यही परंपरा चल रही है।

सामाजिक रिश्तों के मामलों में वह बुजुर्गों के सम्मान के सबसे बड़े ध्वजवाहक थे। इसीलिए मैं उनकी हर बात को प्रेरणा के तौर पर स्वीकार करती हूं क्योंकि उनकी हर बात में संस्कारों के साथ-साथ प्रेरणा छिपी होती थी। उदाहरण के तौर पर जब हमने वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब शुरू किया तो मुझे याद है हजारों बुजुर्गों की जो कि घर की संतानों से सताए हुए थे और अपना आत्म सम्मान तलाश रहे थे या अकेलेपन का दंश झेल रहे थे। दर्द उनकी चिट्ठियों में होता था और मुझे कहते थे कि इनके सम्मान की रक्षा करो और कोई प्लेटफार्म बनाओ। मेरा समर्थन हमेशा साथ था और हमेशा रहेगा। उनके इन्हीं शब्दों को लेकर मैंने यह झंडा उठा लिया और वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब सामाजिक मूल्यों की रक्षा, नैतिकता और बुजुर्गों के सम्मान का सूत्रधार बनकर लाखों लोगों से जुड़कर मानवता और प्रेरणा का एक कारवां बन चुका है।

जीवन में अच्छा बुरा समय हर एक के साथ आता-जाता रहता है। लेकिन अश्विनी कुमार जी ने सबकुछ झेला लेकिन सामाजिक सेवा और मूल्यों की रक्षा अपने आपको दांव पर लगाकर की। वह कहते थे कि हम जो सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हैं, बुजुर्गों के सम्मान की रक्षा करते हैं तो यह सब निभाने का अंदाज आना चाहिए। राजनीतिक रूप से और सामाजिक रूप से वह हर सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के साथ भी मैत्री संबंध निभाते थे और कहते थे कि अपनी बात और अपना सच सबके पास पहुंचाने के लिए मेरी कलम मेरे पास है। बेखौफ लिखूंगा, सच लिखूंगा और कभी समझौता नहीं करूंगा। उनकी यह अलख और मशाल आज भी जल रही है। जहां आदित्य नारायण, अर्जुन और आकाश इसे सफलतापूर्वक निभा रहे हैं वहीं परिवार के सभी सदस्य और बच्चे सेवा भावना के साथ इसी परंपरा पर चल रहे हैं।

कुल मिलाकर अगर संस्कारों के फूलों की महक को हमने आत्मसात किया है तो कांटों की पीड़ा भी झेली है। जीवन वही जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीया जाये। अश्विनी कुमार ने यह सब न केवल निभाया बल्कि प्रमाणित करके दिखाया। संस्कार खुद निभाएं और समाज के लिए और देश के लिए एक उदाहरण बनें तो इससे बढ़कर कुछ नहीं। अश्विनी कुमार एक ऐसे ही उदाहरण रहे हैं। उनके निमित्त सेवा और संस्कार दिवस को हम एक प्रेरणा के रूप में ले रहे हैं। बस आपका प्यार और आशीर्वाद मिलता रहे, इसी भरोसे और विश्वास के साथ अश्विनी कुमार को उनकी अर्धांग्नि होने के नाते कोटि-कोटि नमन।

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Kiran Chopra

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