'चीनी हथियारों की कई कमियां सामने आईं...', ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र कर बोले श्रीकांत कोंडापल्ली
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में चीन मामलों के विशेषज्ञ और पूर्वी एशियाई अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अहम टिप्पणी की. उन्होंने बताया कि इस ऑपरेशन के दौरान चीन की सैन्य तकनीक की कई खामियां सामने आईं. खासकर 9 और 10 मई को जब ब्रह्मोस मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ, तब चीन के ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और अन्य हथियार ठीक से काम नहीं कर पाए. इससे यह स्पष्ट होता है कि चीन की सैन्य तकनीक में कुछ गंभीर कमजोरियां हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोंडापल्ली ने इस ऑपरेशन के जरिए भारत की हवाई क्षमता के प्रदर्शन की भी सराहना की. उन्होंने कहा कि आज के समय में जब पाकिस्तान, चीन और तुर्की जैसे देश मिलकर एक साथ काम कर रहे हैं, तब भारत के लिए एक मजबूत वायु रक्षा प्रणाली बेहद ज़रूरी हो गई है.
सेना की रणनीति और नेतृत्व की सोच
वहीं बीते दिन शुक्रवार को सेना के उप प्रमुख (क्षमता विकास और संधारण), लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने 'न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजीज' कार्यक्रम में बोलते हुए ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े कई अहम बिंदुओं को साझा किया. उन्होंने बताया कि यह ऑपरेशन आधुनिक युद्ध की जटिलता को दर्शाता है, जिसमें तकनीक, रणनीति और खुफिया जानकारी का समावेश किया गया.
लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने बताया कि भारत को इस संघर्ष में दो मोर्चों पर तीन दुश्मनों का सामना करना पड़ा, पाकिस्तान सामने था, चीन तकनीकी और सामरिक मदद दे रहा था, और तुर्की ने ड्रोन सहित कई हथियार उपलब्ध कराए. पाकिस्तान की सेना में 81% सैन्य उपकरण चीन के हैं, जो इस गठजोड़ की गंभीरता को दिखाते हैं.
भारत की संवेदनशील सूचनाएं लीक
लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान को भारत के कुछ महत्वपूर्ण सैन्य क्षेत्रों की लाइव जानकारी चीन से मिल रही थी. उन्होंने कहा कि चीन के लिए यह ऑपरेशन एक 'लाइव लैब' की तरह था, जहाँ वह अपने हथियारों का परीक्षण कर रहा था. इससे भारत की वायु सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की आवश्यकता और स्पष्ट हो गई है.
सटीक हमला और संदेश की स्पष्टता
इस ऑपरेशन में 21 लक्ष्यों की पहचान की गई थी, जिनमें से 9 पर सटीक हमले किए गए. यह फैसला अंतिम समय में लिया गया ताकि रणनीतिक संदेश साफ भेजा जा सके. उन्होंने कहा कि यह दिखाने के लिए तीनों सेनाओं ने मिलकर यह कार्रवाई की कि भारत एक संयुक्त और सशक्त बल है. लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने कहा कि युद्ध को रोकने का फैसला भी उतना ही अहम था जितना कि उसे शुरू करना. उन्होंने इस फैसले को ‘समय पर लिया गया बुद्धिमान कदम’ बताया.