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शाहीन बाग : मानव धर्म निभाओ

इस समय कोरोना वायरस भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए खौफ का कारण बना हुआ है। सबसे बड़ी चुनौती इसके वायरस को फैलने से रोकना है।

11:09 AM Mar 18, 2020 IST | Aditya Chopra

इस समय कोरोना वायरस भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए खौफ का कारण बना हुआ है। सबसे बड़ी चुनौती इसके वायरस को फैलने से रोकना है।

इस समय कोरोना वायरस भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए खौफ  का कारण बना हुआ है। सबसे बड़ी चुनौती इसके वायरस को फैलने से रोकना है। इस महामारी के विकराल रूप धारण करने से पहले सीएए यानी नागरिक संशोधन विधेयक कानून को लेकर देशभर में प्रदर्शन जारी थे। दिल्ली के दंगों ने देश को हिलाकर रख दिया था। कोरोना वायरस के चलते सीएए के खिलाफ प्रदर्शन रुक गए हैं क्योंकि लोग इकट्ठे होने से कतराने लगे हैं लेकिन दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शन 94वें दिन भी जारी है। घोर संकट की स्थिति में क्या इस धरने का कोई अर्थ है? यह सवाल उन लोगों के सामने है जो शाहीन बाग में धरने पर बैठे हैं। 
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कुछ दिन पहले तक यहां हजारों की भीड़ जमा रहती थी। महिलाएं  सुबह ही चूल्हा-चौका कर धरने पर आकर बैठ जाती थी लेकिन अब इनकी संख्या भी काफी कम होकर रह गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए दो वार्ताकारों की बात भी धरने पर बैठने वाले लोगों ने नहीं मानी थी। देशभर के स्कूल, कालेज, सिनेमाघर और शॉपिंग माल बन्द कर दिए गए हैं। भारत पूरे विश्व से कट गया है क्योंकि उड़ानें बन्द हैं। दिल्ली में भी केजरीवाल सरकार ने 31 मार्च तक 50 से अधिक लोगों की मौजूदगी वाले धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अनुमति नहीं देने का ऐलान किया है। 
सरकार की घोषणा शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया के बाहर प्रदर्शन पर भी लागू है। दूसरी तरफ शाहीन बाग में धरने पर बैठी महिलाओं का कहना है कि ‘‘उन्हें कोरोना वायरस से नहीं बल्कि सीएए, एनआरसी और एनपीआर से डर लगता है। हमें मरना होगा तो हम घर में बैठने पर भी मर जाएंगे। हमें यहां बैठने का शौक नहीं है, सरकार सीएए वापस ले लेगी तो हम धरने से उठ जाएंगे।’’ ये शब्द फिल्मी संवाद की ही तर्ज पर बोले गए प्रतीत होते हैं। दिल्ली सरकार की घोषणा के बाद भी शाहीन बाग में लोग इकट्ठे हो गए। फैज अहमद फैज की कविताएं पढ़ी जा रही हैं और विविधता में एकता के नारे लगाए जा रहे हैं। 
प्रख्यात लेखिका सुश्री ‘लैैरी में’ की रिपोर्ट क्राइम अगेंस्ट ह्यूमैनिटी-2019 ने पूरे विश्व में उथल-पुथल मचा दी थी। तब से अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक उत्पीड़न से सम्बन्धी प्रकरणों को और अधिक गम्भीरता से लिया जाने लगा। अमरीका और यूरोप के कुछ देशों में हाल में ही नागरिक संशोधन कानूनों में धार्मिक उत्पीड़न से ग्रसित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रावधानों में प्राथमिकता दिखाई देने लगी है। भारत के पड़ोसी देशों में मानवाधिकार उल्लंघन और अल्पसंख्यक उत्पीड़न की शिकायतें हदें पार कर रही थी। पाकिस्तान से हिन्दू समुदाय के लोग भारत में आकर शरण मांगने लगे थे। भारत सरकार ने मानव धर्म निभाते हुए पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिखों, जैन, बौैद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता देने के लिए नागरिक संशोधन कानून पारित किया। यह बात सही है कि कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश के मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया क्योंकि तीनों देश इस्लामिक हैं और वहां पर मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं।
जब इस कानून का कोई प्रभाव भारतीय मुस्लिमों या नागरिकों पर है ही नहीं तो फिर विरोध का भी कोई औचित्य नहीं लेकिन इस कानून को लेकर अल्पसंख्यकों में भ्रम का वातावरण इस कदर सृजित किया गया कि दंगों की पृष्ठभूमि तैयार हो गई। ऐसा वातावरण सृजित किया गया कि वर्तमान सरकार अल्पसंख्यकाें को निशाना बना रही है, इससे मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक हो जाएंगे। समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों ने इस कानून को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे रखी है। उनका कहना है कि यह कानून संविधान सम्मत नहीं और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो देश में सभी को बराबरी का अधिकार देता है।
कानून में अगर कोई खामी है तो देश के लोगों को सड़कों पर उतरकर आन्दोलन करने का अधिकार है। भूख-हड़ताल करना, धरना देने सहित अहिंसक आन्दोलन का अधिकार देशवासियों को है, यह अधिकार भी संविधान के तहत लोगों को मिला हुआ है। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट इस कानून की समीक्षा कर रहा है तो शाहीन बाग के धरने का कोई औचित्य नज़र नहीं आ रहा। शाहीन बाग में धरने पर बैठे लोगों को कोरोना वायरस से उत्पन्न स्थिति​ को देखते हुए मानव धर्म अपनाना चाहिए। अगर धरने पर बैठा एक भी व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो गया तो सभी के लिए नई मुसीबत पैदा हो जाएगी। कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने वाले लोगों को भी आईसोलेशन वार्ड में रखना पड़ेगा। विरोध अपनी जगह है लेकिन इन्सान का पहला धर्म मानव धर्म है। मानवीय जीवन की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। 
इस्लाम ने भी पूरी दुनिया को मानवता का संदेश दिया है। इस्लाम का अर्थ होता है शान्ति जो मानव प्राप्त करता है, एक सत्य ईश्वर-अल्लाह के सामने नतमस्तक हो जाता है और वह भी बिना किसी शर्त के, ऐसे व्यक्ति को अरबी भाषा में मुस्लिम कहा जाता है। जिसका अर्थ होता होता है इस्लाम को मानने वाला और इस्लाम पर चलने वाला। प्रेमभाव से मानवता की सेवा करना हर धर्म का संदेश है। अब बस बहुत हो गया। शाहीन बाग वालों को मानवता की रक्षा के लिए अपना आन्दोलन खत्म कर देना चाहिए। जहां तक कानून का सवाल है, उन्हें देश की सर्वोच्च अदालत पर भरोसा रखना चाहिए।
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