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बेशर्म चीन की बेहयाई !

04:01 AM Apr 03, 2024 IST | Aditya Chopra
बेशर्म चीन की बेहयाई

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन 2003 से ही अनर्गल दावे ठोकते आ रहा है और भारत के अभिन्न अंग को अपना भौगोलिक हिस्सा बताने की हिमाकत करता आ रहा है। भारत सरकार ने हर बार इसका माकूल जवाब देने की कोशिश की है परन्तु चीन अपनी हरकतों से बाज आने का नाम नहीं लेता। यह अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों के नाम बदल कर उनका चीनीकरण करना चाहता है और दुनिया को बताना चाहता है कि ये इलाके उसकी क्षेत्रीय संस्कृति के अंग रहे हैं। हकीकत तो यह है कि अरुणाचल से लगा तिब्बत भी चीन का सांस्कृतिक हिस्सा नहीं है क्योंकि यहां की बौद्ध संस्कृति सदियों से भारतीय समन्वित संस्कृति का हिस्सा रही है। कैलाश मानसरोवर झील इसी तिब्बत में स्थित है जिसकी तीर्थ यात्रा पर हजारों भारतीय हर वर्ष जाते हैं परन्तु 2003 में भारत की तत्कालीन वाजपेयी सरकार से एक एेतिहासिक गलती हुई कि इसने तिब्बत को चीन का स्वायत्तशासी अंग स्वीकार कर लिया जबकि इससे पहले तक भारत का रुख तिब्बत के बारे में अलग था और यह इसे स्वायत्तशासी स्वतन्त्र देश के रूप में मान्यता देता था जिसकी निर्वासित सरकार भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर में ही बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के नेतृत्व में काम करती थी।
2003 में वाजपेयी सरकार ने जब तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार किया तो बदले में चीन ने सिक्किम प्रान्त को भारत का हिस्सा स्वीकार कर लिया मगर इसके तुरन्त बाद अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकना शुरू कर दिया। इस वर्ष चीन ने अपना एक मानचित्र प्रकाशित किया जिसमें पूरे अरुणाचल को चीन का हिस्सा दिखाया गया। इसे लेकर तब भारत की संसद में बहुत शोर-शराबा हुआ और वाजपेयी सरकार ने चीन को कड़ा विरोध पत्र लिखा लेकिन इसके बाद 2004 में जब केन्द्र में सत्ता बदल हुआ और डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार काबिज हुई तो उसके तुरन्त बाद अरुणाचल को चीन ने पुनः अनर्गल दावे करने शुरू कर दिये और इस राज्य में भारत सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों पर आपत्ति उठानी शुरू कर दी तथा भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरों का भी विरोध करना शुरू किया जिसका भारत की ओर से कड़ा जवाब दिया गया और कहा गया कि अरुणाचल प्रदेश सांस्कृतिक व ऐतिहासिक रूप से हमेशा से भारत का ही अंग रहा है जिस पर चीन का दावा पूरी तरह गलत व बनावटी है और यह उसकी विस्तारवादी सोच का नतीजा है परन्तु 2003 में जब वाजपेयी सरकार ने तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार किया था तो दोनों देशों के बीच एक सैद्धांतिक समझौता हुआ था कि भारत व चीन के बीच सीमा विवाद को निपटाने के लिए एक उच्च स्तरीय कार्यदल का गठन किया जायेगा जिसमें भारत की ओर से इसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होंगे और चीन की ओर से उनके समकक्ष मन्त्री होंगे।
भारत में सरकार एक सतत् प्रक्रिया होती है अतः 2004 में केन्द्र में मनमोहन सरकार के गठित हो जाने पर इस समझौते पर अमल शुरू हुआ और कार्यदल ने अपना काम करना शुरू कर दिया। 2005 में गठित इस कार्यदल की अभी तक 29 बैठकें हो चुकी हैं मगर नतीजा ढाक के तीन पात रहा है। मगर मनमोहन सरकार में रक्षामन्त्री व विदेश मन्त्री रहे स्व. प्रणव मुखर्जी ने बहुत दूरदर्शिता का परिचय देते हुए चीन को इस फार्मूले पर सहमत कर लिया था कि दोनों देशों के सीमा क्षेत्रों में जो स्थान जिस देश की प्रशासनिक व्यवस्था के तहत चल रहा हो वह उसी का अंग माना जायेगा। इसकी वजह यह थी कि चीन सीमा क्षेत्रों को लेकर बार-बार अवधारणा का प्रश्न उठाता था जिसकी वजह से उसकी फौजें भारत के नियन्त्रण क्षेत्रों में अतिक्रमण कर देती थीं। अरुणाचल प्रदेश जिसे 1962 तक नेफा कहा जाता था वहां भारत की आजादी के बाद से ही शुरू से भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था बहुत मजबूत रही है और यहां के लोग न केवल हिन्दी जानते और बोलते हैं बल्कि स्वयं को पक्का भारतीय भी मानते हैं परन्तु चीन से लगे इलाकों में बौद्ध संस्कृति का बाहुल्य है जो कि भारत की मिश्रित संस्कृति का ही अभिन्न अंग है। चीन द्वारा अरुणाचली स्थानों का नाम बदलने के पीछे असली कारण यही है कि वह येन-केन-प्रकारेण इन्हें अपना बताने की जुगत बैठा सके। हाल ही में उसने अरुणाचल के तीन स्थानों के नाम बदल दिये हैं जिनमें 11 रिहायशी बस्तियां, 12 पर्वतों के नाम, 4 नदियों के नाम, एक तालाब व एक पहाड़ी रास्ता शामिल है। सवाल यह है कि इन जगहों या नदियों-पहाड़ों के नाम बदलने से क्या हासिल होगा? ये स्थान रातोंरात भारतीय सीमा से बदल कर चीन की सीमा में तो नहीं चले जाएंगे। मगर चीन समझता है कि एेसा करने से अरुणाचल के इन हिस्सों पर उसका दावा पक्का हो जायेगा। यही सोचकर वह लगातार अरुणाचल के इलाकों में कुछ नई बस्तियां भी बसा रहा है। उसका यह कार्य उसे अरुणाचल की जनता की निगाहों में एक अतिक्रमणकारी ही सिद्ध कर रहा है और वस्तु स्थिति भी यही है। 1962 से चीन की स्थिति एक अतिक्रमणकारी देश की ही है।

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Aditya Chopra

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