शेख हसीना और बंगलादेश
बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और उनके धर्मस्थलों पर लगातार…
बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और उनके धर्मस्थलों पर लगातार हमलों के बीच वहां की अंतरिम यूनुस सरकार ने भारत को राजनयिक संदेश भेजकर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। बंगलादेश सरकार का कहना है कि शेख हसीना को न्यायिक प्रक्रिया के तहत वापिस लाया जाए ताकि वह मुकदमों का सामना कर सकें। शेख हसीना के खिलाफ हत्या, अपहरण और देशद्रोह समेत 225 से अधिक मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं। भारत और बंगलादेश के बीच इस संवेदनशील मुद्दे पर सब की नजरें लग गई हैं। बंगलादेश ने यह कदम उठाकर भारत के सामने कूटनयिक चुनौती फैंक दी है। फिलहाल भारत ने बंगलादेश द्वारा भेजे गए पत्र का जवाब यह कहकर दे दिया है कि फिलहाल हमारे पास इस मामले पर देने के लिए कोई टिप्पणी नहीं है। भारत के जवाब से यह स्पष्ट है कि शेख हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर उसे कोई जल्दी नहीं है। ऐसा लगता है कि बंगलादेेश के कामचलाऊ प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस अपना प्रधानमंत्री पद पक्का करने के लिए चाल चल रहे हैं। वे इस समय कट्टरपंथियों और भारत विरोधी जेहादी शक्तियों के पूरी तरह से दबाव में हैं। अब वह खुद उन ताकतों का हिस्सा साबित हो रहे हैं जो हिन्दुओं और ईसाइयों पर अत्याचार करके बंगलादेश को फिर से पीछे धकेलना चाहती हैं। शेख हसीना से उनकी निजी रंजिश का असर भी भारत से संबंधों पर देखा जा रहा है। बंगलादेेश की स्थिति भारत के लिए काफी चिंताजनक है।
अब सवाल यह है कि भारत के पास विकल्प क्या-क्या हैं। भारत और बंगलादेश के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी और 2018 में इसमें संशोधन किया गया था। भारत ने मानवीय आधार पर शेख हसीना की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें भारत में रहने की अनुमति दी है। अगस्त महीने में बंगलादेश में व्यापक हिंसक विरोध-प्रदर्शनों के बीच शेख हसीना इस्तीफा देकर भारत आ गई थीं। तब से ही वह भारत में किसी सुरक्षित स्थान पर रह रही हैं। एक हिंदू भिक्षु एवं नए अल्पसंख्यक अधिकार समूहों में से एक के नेता, चिन्मय दास की गिरफ्तारी के बाद उपजे हिंसक विरोध व झड़प की घटनाएं इस बात के स्पष्ट सबूत, अगर जरूरी मानें तो हैं कि बंगलादेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति नाजुक बनी हुई है। हिंसक विरोध व झड़प की इन घटनाओं के चलते चटगांव की एक अदालत में एक वकील की मौत हो गई। ‘सनातनी हिंदुओं’ का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह (जिसे बंगलादेश सोम्मिलितो सनातनी जागरण जोत कहा जाता है) के हजारों लोगों के विरोध-प्रदर्शन की एक प्रमुख मांग है कि मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार देश के उन 20 मिलियन धार्मिक अल्पसंख्यकों -हिंदुओं, ईसाइयों और बौद्धों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, जिन्हें इस्लामी बहुसंख्यक भीड़ द्वारा निशाना बनाया गया है। जाहिर तौर पर शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों को निशाना बनाकर किए गए विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा की 2,000 से ज्यादा दर्ज घटनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय के कम से कम नौ सदस्य मारे गए हैं और इसमें एक सांप्रदायिक कोण भी दिख रहा है।
इन परिस्थितियों के बीच अगर भारत शेख हसीना को ढाका भेजता है तो यह संदेश जाएगा िक भारत अपने मित्रों की रक्षा करने में सक्षम नहीं है। प्रत्यर्पण से इंकार करने पर बंगलादेश से तनाव बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि असाधारण परिस्थितियों में भारत किसी भी व्यक्ति को प्रत्यर्पित करने से इंकार कर सकता है। खासकर जब उसकी जान को खतरा हो या निष्पक्ष सुनवाई पर संदेह हो। प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद-6 में कुछ ऐसे प्रावधान है जिनमें उन हालात का जिक्र है जिनके तहत शेख हसीना प्रत्यार्पण नहीं हो सकता। इनमें से एक प्रावधान कहता है कि जिसके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया है, उस पर लगे आरोप यदि न्यायिक प्रक्रिया के हित में और सद्भावना के तहत नहीं हैं तो अनुरोध खारिज हो सकता है। संधि के मुताबिक प्रत्यर्पण से जुड़ा मसला सियासी मकसद से जुड़ा न हो। हसीना के खिलाफ ढाका स्थित अन्तर्राष्ट्रीय अपराध प्राधिकरण ने मानवता विरोधी अपराध व जनसंहार केस में वारंट दिया है। जिन हालात में उन्हें देश छोड़ना पड़ा है, उसका हवाला देते हुए भारत इसे सियासी मामला बताते हुए प्रत्यर्पण का अनुरोध खारिज कर सकता है।
भारत स्पष्ट रूप से बंगलादेश के आरोपों को राजनीतिक द्वेष से लगाए गए आरोप करार देकर प्रत्यर्पण का आग्रह खारिज कर सकता है। भारत लम्बे समय तक मामले को लटका सकता है और शेख हसीना भारत में कानूनी लड़ाई भी लड़ सकती है। हो सकता है कि निश्चित रूप से शेख हसीना उनके साथ बंगलादेश में गलत व्यवहार िकए जाने की आशंकाओं को अदालत में रख सकती हैं। ऐसा करने के लिए उन्हें सिर्फ अदालत में अपील करनी होगी। भारत को इस मामले में कूटनीितक समाधान की तलाश है। इसके लिए शेख हसीना के लिए किसी तीसरे देश में शरण की सम्भावनाओं पर विचार िकया जा सकता है। भारत को इस मुद्दे पर सावधानीपूर्वक कदम उठाना होगा। मानवीय, कानूनी और कूटनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। भारत बंगलादेश को याद दिलाना चाहेगा कि अगर 1971 में भारत साथ न देता तो बंगलादेश का कभी उदय नहीं होता लेकिन कट्टरपंथियों की जमात यह सब याद नहीं रखना चाहती। भारत की दोनों सीमाओं पर मजहबी उन्मादियों का जमावड़ा चिंता की बात तो है लेकिन भारत दोनों मोर्चों पर इनका मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है।