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शेख हसीना की चौथी पारी

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09:59 AM Jan 09, 2019 IST | Desk Team

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बांग्लादेश के आम चुनावों में रिकार्ड जीत दर्ज करने वाली अवामी लीग की नेता शेख हसीना ने चौथी बार देश की कमान सम्भाल ली है। शेख हसीना को भी उम्मीद नहीं होगी कि 300 सदस्यीय संसद की 96 फीसदी सीटें उनके खाते में आएंगी। आम चुनावों में विपक्ष का लगभग सफाया हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन नेशनल यूनिटी फ्रंट के खाते में महज 7 सीटें आई हैं। विपक्ष भले ही चुनावों में गड़बड़ी के आरोप लगा रहा है लेकिन शेख हसीना के गठबंधन ने विपक्ष के आरोपों को खारिज कर दिया है। शेख हसीना लगातार 3 बार चुनाव जीतकर पहले ही इतिहास रच चुकी हैं।

उनसे पहले कोई भी प्रधानमंत्री लगातार 10 वर्ष भी अपने पद पर नहीं रहा है। बांग्लादेश की सियासत लम्बे समय तक शेख हसीना और खालिदा जिया के इर्द-गिर्द घूमती रही है। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अध्यक्ष खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामले में जेल में सजा काट रही हैं। उनके बेटे तारिक रहमान को शेख हसीना को जान से मारने के षड्यंत्र में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है और वह लन्दन में निर्वासन में रह रहा है। बांग्लादेश के चुनाव में भारत विरोधी रुख नहीं देखा गया जो कि भारत के लिए सकारात्मक और सुखद संकेत है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लाम के पक्षधर तत्व कई बार भारत विरोधी रुख को भड़काते रहे हैं। शेख हसीना की जीत ने कट्टरपंथी इस्लाम को हवा देने वालों को करारी शिकस्त दी है।

आम चुनाव में जमात-ए-इस्लामी की सक्रियता भारत के लिए चिन्ता का विषय रही क्योंकि उसकी जड़ें पाकिस्तान के कट्टरवादी जेहादी संगठनों से जुड़ी हैं। जब बीएनपी सत्ता में थी और खालिदा जिया प्रधानमंत्री थीं तो भारत आैर बांग्लादेश के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए थे। बांग्लादेश ने तब उत्तर पूर्व भारत में आतंकवादी वारदातें भी कराई थीं। बीएनपी का कट्टरवाद भारत विरोधी रहा है जबकि शेख हसीना की अवामी लीग की विचारधारा कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ रही है। शेख हसीना के शासन की बड़ी उपलब्धि यही रही है कि उन्होंने पाकिस्तान समर्थक और अतिवादी ताकतों को पनपने नहीं दिया। भारत की सभी सरकारों का शेख हसीना सरकार से सहयोग बना रहा है। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए फरक्का बांध समझौते के सिलसिले में ढाका गए थे।

वर्ष 2015 में भूमि समझौतों पर हस्ताक्षर ऐतिहासिक रूप से भारत की सफलता थी। भूमि हस्तांतरण की बाधाओं को खत्म कर बांग्लादेश आैर भारत आर्थिक सम्बन्धों को बढ़ा रहे हैं। बांग्लादेश भारत के निर्यात के लिए महत्वपूर्ण बाजार बन चुका है। भारत ने चीन को पछाड़कर बांग्लादेश के बाजार में अपनी जगह बनाई है। शेख हसीना की सरकार के सत्तारूढ़ होने से बांग्लादेश को दिए जाने वाले आर्थिक सहयोग में बढ़ौतरी होगी बल्कि जापान की मदद से भारत हिन्द महासागर में जो ढांचागत परियोजनाएं लगाने की योजना बना रहा है, उसमें बांग्लादेश भी भागीदार होगा। भारत, जापान और बांग्लादेश के मध्य दक्षिणी बांग्लादेश के पायरा में बंदरगाह बनाने की बात काफी आगे बढ़ चुकी है। चीन भी बंदरगाह के निर्माण का ठेका प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहा है।

पायरा पोर्ट की खासियत यह है कि भारतीय समुद्र तट से इसकी दूरी काफी कम है और पूर्वोत्तर क्षेत्र को शेष भारत से जोड़ने में यह काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। पायरा पोर्ट का निर्माण भारत और जापान की तरफ से घोषित दक्षिण अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के तहत किया जाएगा। यह परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी बैल्ट रोड इनिशियेटिव (बीआरआई) का जवाब मानी जा रही है। भारत और बांग्लादेश दोनों कई औद्योगिक परियोजनाओं में सहयोग कर रहे हैं। अब दोनों देश बंदरगाह विकास पर ध्यान दे रहे हैं। इससे सिलीगुड़ी रूट पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी। भारत-बांग्लादेश डीजल आपूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछा रहे हैं। यह परियोजना 2020 तक पूरी हो जाएगी। आने वाले दिनों में भारत और बंगलादेश के कई अन्य परियोजनाओं पर आगे बढ़ने की उम्मीद है।

सवाल यह है कि आखिर शेख हसीना को प्रचंड बहुमत क्यों मिला? इसका मुख्य कारण यह है कि उनकी पार्टी अवामी लीग का जन्म बंगलादेश के मुक्ति संग्राम से हुआ था। वह बंगलादेश के महान स्वाधीनता सेनानी और बांग्लादेश सरकार के प्रथम राष्ट्रपति राष्ट्रीयजनक बंगबंधु के नाम से मशहूर शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। तख्तापलट में उनके पिता और तीन भाई मारे गए थे। इसके बाद भी उन्हें राजनीतिक सफलता नहीं मिली। बांग्लादेश में जनरल इरशाद के सैनिक शासन के खिलाफ उन्होंने जो मुहिम छेड़ी, उसके दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्हें जनरल इरशाद के बाद भी जनरल की पत्नी खालिदा जिया से कड़ी टक्कर लेनी पड़ी। उनकी छवि एक संघर्षशील नेत्री की रही है। अन्ततः उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान के लिए दलाली करने वाली ताकतों की कमर तोड़ दी। उनकी छवि कट्टरपंथी न होकर उदारवादी है इसलिए वह बंगलादेश के लोगों की पहली पसन्द बनी हुई हैं।

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