भोपाल में शिवभक्त राहुल गांधी!
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कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने भोपाल में रोड शो करके मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के प्रचार का श्रीगणेश कर दिया है। राज्य की राजधानी भोपाल में जिस तरह श्री गांधी को शिवभक्त कहकर प्रचारित किया गया है उसकी कुछ लोग आलोचना कर सकते हैं मगर हकीकत से मुंह नहीं मोड़ सकते। हकीकत यह है कि चुनावों में धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल तो दूर की बात है बल्कि संसद के भीतर ही इसे प्रयोग करने से गुरेज मिटता जा रहा है। नये राष्ट्रपति श्री कोविन्द द्वारा शपथ ग्रहण के बाद संसद के प्रथम संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करने के उपरान्त जिस तरह कुछ सांसदों ने जय श्रीराम का उद्घोष किया था, वह भी अनोखी घटना थी। चुनावी प्रचार के दौरान धार्मिक आवरण की ओट से मतदाताओं पर निशाना साधना कोई नई कला नहीं है। इसका विकास बहुत करीने के साथ स्वतन्त्र भारत के पहले आम चुनावों में ही हो चुका था जो 1952 में हुए थे परन्तु कांग्रेस पार्टी द्वारा भी इसका सहारा लेना इस तथ्य का प्रमाण है कि देश की राजनीति में वह आधारभूत परिवर्तन आया है जिसने मतदाताओं की पहचान को हिन्दू और मुसलमान में मुखर रूप से उभारना शुरू कर दिया है।
निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य परिवर्तन नहीं है फिर भी इसका मुकाबला करने के लिए वही तकनीक अपनानी पड़ सकती है जिसे ‘लोहे से लोहे को काटना’ कहते हैं। भारत की धर्म प्राण जनता को अपने सम्मोहन में बांधने के लिए राजनैतिक दल एेसे मुद्दे उछालते रहे हैं जिससे उनकी धार्मिक भावनाओं को राजनैतिक रंग देकर वोटों मंे तब्दील किया जा सके और उनकी गोलबन्दी इसी आधार पर की जा सके। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के भेद को प्रकट करने के लिए इसी धार्मिक भेदभाव को आधार बनाया जाता है और इस प्रतियोगिता में एक को दूसरे के खिलाफ भड़का तक दिया जाता है परन्तु राजनीति ने करवट जिस तरह ली है उसमें चुनावी प्रतियोगिता ने बहुसंख्यक समाज के भीतर ही दलीय प्रतियोगिता का माहौल बना दिया है। इसकी वजह यही है कि राजनीतिक दलों तक की पहचान बहुसंख्यकवादी और अल्पसंख्यक समर्थक दलों में होने लगी है जबकि भारत का प्रजातन्त्र धर्म के आधार पर किसी मतदाता मंे भेदभाव नहीं करता और संविधान तो स्पष्ट निर्देश देता है कि प्रत्येक वयस्क केवल मतदाता है।
इसके साथ ही संविधान कहता है कि धर्म पूरी तरह निजी मामला है मगर यह राजनीतिज्ञों को भी एक व्यक्ति के रूप में इसी आधार पर देखता है। अतः राजनीतिज्ञ का धार्मिक चोला भी उसके साथ-साथ ही चलता है और उसी मंे उसकी हिन्दू या मुसलमान या अन्य कोई पहचान छिपी रहती है परन्तु अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह करते समय उसकी पहचान गायब हो जाती है और वह मात्र एेसा ‘सत्ता अधिकार प्राप्त नागरिक’ हो जाता है जिसके लिए सभी धर्म बराबर होते हैं और इसके आधार पर वह किसी भी अन्य नागरिक के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। अतः राहुल गांधी का शिवभक्त होना यह सिद्ध करता है कि वह अपनी हिन्दू पहचान को मुखर रखना चाहते हैं परन्तु वह राजनीतिज्ञ भी हैं और समाज के हर तबके का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। अतः उन्हें भोपाल की मशहूर मस्जिद मंे भी जाकर सजदा करना चाहिए और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों को भी भरोसा दिलाना चाहिए कि उनकी सियासत हिन्दोस्तानियों की सियासत है। हालांकि यह राजनीति के वैचारिक पक्ष के रसातल का दौर कहा जा सकता है जिसमें नीति और सिद्धान्त को पीछे रखकर आदमी की पहचान को आगे रखा जा रहा है, ‘भेड़चाल’ को चुनावी सफलता की कुंजी माना जा रहा है परन्तु यह भारतीय संस्कृति और स्वतन्त्र भारत की सियासत का स्थायी भाव नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह वह देश है जिसमे भारत के बंटवारे के बाद यहां रह रहे पाकिस्तान की जनसंख्या से ज्यादा मुसलमानों ने कभी भी अपना नेता किसी मुस्लिम राजनीतिज्ञ को नहीं माना। उन्हें हिन्दू पहचान रखने वाले नेताओं की नीतियों और नीयत पर ही हमेशा विश्वास रहा।
हम भारत की जिसे हिन्दू संस्कृति कहते हैं उसे लगातार प्रवाहमान बनाये रखने में भी इस समुदाय ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। अतः हम जिस ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की बात करते हैं वह भारत की मिली-जुली ‘गंगा-जमुनी’ संस्कृति के अलावा और कुछ नहीं है। क्योंकि यहां कोई भी हिन्दू पर्व या त्यौहार मुसलमानों की ‘श्रममूलक’ उपस्थिति के बिना पूरा हो ही नहीं सकता। शादी-ब्याह के समारोहों के आयोजन से लेकर देवस्थानों के निर्माण तक में अल्पसंख्यक समुदाय की शिरकत प्रमुख रहती है। अतः मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष श्री कमलनाथ ने राज्य में ‘धार्मिक पर्यटन मार्ग’ के निर्माण का जो वादा मतदाताओं से किया है वह पूरी तरह इसी रास्ते से होकर गुजरेगा। राज्य में भगवान शंकर के देवस्थानों की पूरी शृंखला है और इन्हें जोड़ने की जो परियोजना श्री कमलनाथ ने प्रस्तुत की है वह राज्य की जनता में यह भरोसा दिलाती है कि सरकारी नीतियां कुछ साधू-सन्तों को सुविधा देने के स्थान पर उसे सीधे सुविधा देने के लिए बनेंगी। हम इसे उदार हिन्दुत्व की श्रेणी मंे रखने की भूल नहीं कर सकते क्योंकि उज्जैन के महाकालेश्वर से लेकर गहन गुफाओं के बीच स्थित भगवान शंकर के मन्दिर मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर की अपूर्व गाथा हैं।
भोपाल के निकट ही ‘भोजपुर’ में भगवान शंकर का शिवलिंग दुनिया में सबसे ऊंचा और विशाल माना जाता है जिसका जलाभिषेक करने के लिए भी दुर्गम शिला पट्टिका का सहारा लेना पड़ता है मगर राजनीति केवल यहीं समाप्त नहीं हो जाती बल्कि वह जनता की मूल समस्याओं के समाधान का मार्ग खोजने की कला होती है और लोकतन्त्र में राजनैतिक दल उसका उन आर्थिक मुद्दों पर विश्वास जीतना चाहते हैं जो उसे परेशान किये रहते हैं। इसीलिए विकास का मन्त्र राजनैतिक दलों का ‘आमुख सूत्र’ होता है। प्रत्येक राजनैतिक दल जनता को विकास का भरोसा दिलाता है। अतः जब भोपाल में शिवभक्त राहुल गांधी ने यह कहा कि ‘किसान का कर्ज माफ-बिजली बिल हाफ’ तो सिद्ध हो गया कि मतदाता की हर पहचान के पहले उसकी जेब कुछ पूछती है और वह सवाल यह होता है कि ‘धेला नहीं पास-मेला लगे उदास।’