श्राद्ध
श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने का एक पवित्र कर्म है। यह पितरों की आत्मा की शांति व अपने परिवार के कल्याण के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इससे घर-परिवार में सुख, समृद्धि और आशीर्वाद बना रहता है। यह ऋणचुकाने का प्रतीक है माता-पिता और पूर्वजों के प्रति।
आजकल यह भी प्राय: देखने को मिलता है कि बच्चे जीते जी तो अपने माता-पिता को पूछते नहीं, सेवा नहीं करते परन्तु उनके जाने के बाद बड़े-बड़े श्राद्ध करते हैं, पुण्यतिथि मनाते हैं।
ऐसे केस मेरे सामने आते हैं कि इंसानियत पर विश्वास ही उठ जाता है। एक बेटे ने अपनी मां को इसलिए कैद रखा कि वो सारी प्रोपर्टी उसके नाम कर दे। यहां तक कि उसे अपने बड़े बीमार बेटे से भी नहीं मिलने दिया। वो मां उससे इतना डरती थी, उसके कमरे में कैमरे लगा रखे थे। फिर भी अंतिम समय में उनके घर के नौकर को उन पर तरस आया और वो अपनी बड़ी बहू से वीडियो कॉल कर माफी मांगती रही, आशीर्वाद देती रही और अपनी मजबूरी बताती रही, परन्तु क्या फायदा।
ऐसे ही पिछले सप्ताह हमारी पश्चिम विहार की शाखा की एक सदस्य ने हमारी ब्रांच हैड को गुहार लगाई कि उनके दो बेटे-बहुएं उन्हें बहुत तंग कर रहे हैं, खाना भी नहीं देते और उनसे साइन करवाना चाहते हैं और उनसे उनकी एफडी भी मांग रहे हैं। जब उन्होंने मेरे से बात की तो पहले मैं बहुत ही हैरान हुई। इतने अच्छे परिवार के बेटे भी यही करते हैं तो मैंने वहां की लोकल पुलिस को जो सीनियर सिटीजन के लिए है, को कहा कि सिर्फ बात करें और बच्चों को समझाएं, हो सकता है कहीं मां-बाप की गलती भी हो। हमारा मकसद किसी को डराना नहीं, हम सिर्फ यह चाहते हैं कि बेटे अपने मां-बाप की उम्र का ख्याल रखते हुए उन्हें तंग न करें, उन्हें प्यार और सम्मान दें। साथ में समय पर खाना दें और मां-बाप भी उन्हें प्यार करें। क्योंकि मां-बाप जब बहुत तंग हो जाते हैं तभी शिकायत करते हैं। अभी हल्का सा फोन ही गया तो दोनों बेटे-बहुओं ने सुध ली और अपनी गलती मानी। मां-बाप से माफी मांगी और उनकी सेवा करने का, ध्यान रखने का, समय से खाना देने का वायदा किया।
धन्य हैं ऐसे बेटे-बहुएं जिन्होंने जल्दी ही अपनी गलती को सुधार लिया और श्राद्ध पक्ष में अपने जीवित माता-पिता की सेवा शुरू कर दी। माता-पिता ने उन्हें एफडी भी दे दी। यानि माता-पिता अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर जाते हैं, उन्हें सिर्फ प्यार और मान-सम्मान चाहिए।
आज सभी बेटों को, बच्चों को, बहुओं को यही कहूंगी कि श्राद्ध का असली महत्व समझें। माता-पिता के जीते जी उनकी सेवा कर लें, बाद में तो कुछ नहीं रखा। सभी यही कहते हैं कि श्राद्ध करना आत्मा की शांति और अपने मन के अपराध बोध को कम करने का भी साधन माना जाता है। भले ही जीवन में माता-पिता की सेवा न की हो परन्तु मेरा मानना है कि जीते जी सेवा करना, उन्हें अच्छे से खाना खिलाना ही सबसे उत्तम है।
उनसे जबरदस्ती उनकी जायदाद न लें, न उनसे जबरदस्ती वसीयत करवायें। जो उनका दिल करे, उनको अपने मन से, दिल से, अन्तिम समय में जीने देना चाहिए। यही सच में सेवा है!